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केंद्र ने की पहल, सबके लिए बने यूनिफॉर्म सिविल कोड

कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने विधि आयोग को चिट्ठी लिखकर समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के तरीकों पर सलाह मांगी है

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Sunil Sharma

Jul 02, 2016

uniform civil code

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नई दिल्ली। केंद्र सरकार देश में समान आचार संहिता लागू करने की तैयारी में है। कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने विधि आयोग के चेयरमैन को चिट्ठी लिखकर समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के तरीकों पर सलाह मांगी है। आजादी के बाद यह पहला मौका है जब किसी सरकार ने समान आचार संहिता पर विधि आयोग से उसकी राय मांगी है। संसद यदि समान आचार संहिता विधेयक को पारित कर देती है तो देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून लागू होगा। अभी हिंदू और मुस्लिमों के लिए अलग-अलग कानून हैं। इन कानूनों के दायरे में संपत्ति, शादी, तलाक और उत्तराधिकारी जैसे विषय आते हैं।

छिड़ सकती है बहस
मोदी सरकार के इस कदम से राजनीतिक गलियारों में नई बहस छिड़ सकती है, क्योंकि देश में समान आचार संहिता लागू करने को लेकर राजनीतिक पार्टियां एकमत नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट कर चुका दखल से इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल समान आचार संहिता पर कानून बनाने संबंधी एक यचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र और संसद को निर्देश देने से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था। प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा कि वह इस बारे में संसद को कोई निर्देश जारी नहीं कर सकता। दिल्ली के एक भाजपा नेता ने मुस्लिम महिलाओं के साथ कथित भेदभाव का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट से दखल देने की मांग की थी।

1985 का शाहबानों केस
1985 में शाहबानो केस भी इस मामले में नजीर बना था, जब सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि शाहबानों को उसके पूर्व पति से गुजारा भत्ता मिलना चाहिए। अदालत ने इसके लिए बानो को समान नागरिक संहिता के लिए आवेदन का भी सुझाव दिया था। तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने शीर्ष अदालत के इस फैसले को पलटने को संसद में विधेयक पेश किया था।

क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड
यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ भारत के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक कानून से है। सामान्य अर्थों में समान नागरिक संहिता एक सेक्युलर (पंथनिरपेक्ष) कानून होता है, जो सभी धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से लागू होता है। दूसरे शब्दों में, अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग सिविल कानून न होना ही समान नागरिक संहिता की मूल भावना है। यह किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है। हालांकि पर्सनल लॉ बोड्र्स इसका हमेशा से विरोध करते रहे हैं।

अंग्रेजों के समय उठी थी मांग, कांग्रेस कभी नहीं रही लागू करने के पक्ष में
भारतीय संविधान की धारा 44 के अंतर्गत इसे लागू करना सरकार का दायित्व है, लेकिन चूंकि ये नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है, लिहाजा इसे लागू करना बाध्यकारी नहीं है। ये एक दिशा-निर्देश है। कांग्रेस इसे लागू करने के पक्ष में नहीं है, उसका हमेशा यह तर्क रहा है कि इसे लागू करने का उचित समय नहीं आया। सबसे पहले 1840 में यह मांग उठी थी कि देश में एक जैसा कानून होना चाहिए।

सरकार के एजेंडे का हिस्सा
भाजपा और मोदी सरकार के एजेंडे में यूनिफॉर्म सिविल कोड हमेशा से ही रहा है। अब हम सरकार में है और हमने लॉ कमीशन से यही जानने के लिए सलाह मांगी है कि इसे लागू करने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं।
- सदानंद गौड़ा, कानून मंत्री

जयपुर में भी उठी थी मांग
तीन तलाक के खिलाफ विद्रोह के स्वर जयपुर में भी बुलंद हो चुके हैं। इस संबंध में तीन महीने पहले जयपुर निवासी आफरीन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। दरअसल, आफरीन को उसके पति ने स्पीड पोस्ट से तलाकनामा भेजा था। इसके बाद आफरीन ने भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन के समर्थन से तीन तलाक के खिलाफ अर्जी लगाई।

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