
नई दिल्ली। नदियों में प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है, जो विश्व के अनेक भागों में अरबों रुपए की संपत्ति को निगल जाती है। एक बार फिर वही विनाश लीला पिछले कुछ दिनों से बिहार और असम सहित देश के पूर्वोत्तर राज्यों में जारी है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि बाढ़ से निपटने के लिए सरकार की क्या नीतियां और योजनाएं रहती हैं।
बाढ़ से राहत दिलाने के लिए सुदूर-संवेदी उपग्रहों और मौसम विज्ञान केंद्र हैं। इसके बावजूद बाढ़ से होने वाले विनाशलीला को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सका है।
हरे-भरे खेत, लहलहाती फसलें, बाग, घर-मकान देखते ही देखते पानी में डूब गए हैं या नदियों की तेज धारा के साथ बह गए हैं। बाढ़ की विभीषिका से 70 लाख से ज्यादा लोग और लाखों पशु प्रभावित हुए हैं।
आपदा प्रबंधन के तहत उठाए गए कदम
फिलहाल, बिहार और असम सहित अन्य क्षेत्रों में बाढ़ की विभीषिका से निपटने के लिए एनडीआरएफ की टीमें, सेना के जवानों, नौसैनिकों, नावों, एयरफोर्स के हेलिकॉप्टर सहित स्वंयसेवी संगठनों व स्थानीय प्रशासन 24 घंटे काम पर लगे हुए हैं।
बाढ़ पीड़ितों के लिए राज्य सरकारों ने राहत सामग्री मुहैया कराने के साथ राहत कैंप भी लगाए हैं।
इन राज्यों ने बाढ़ ने धारण किया विकराल रूप
बिहार और पूर्वोत्तर के राज्यों में बाढ़ से हाहाकार मचा हुआ है। 70 लाख से ज्यादा लोग अभी तक बाढ़ से प्रभावित हो चुके हैं।
बाढ़ से मरने वालों की संख्या 40 पार कर चुकी है। इस प्राकृतिक आपदा में लोगों की मदद के लिए एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें 24 घंटे मुस्तैद हैं।
लेकिन जमीनी हकीकत इतने खराब हैं जिसे शब्दों में बयां करना संभव नहीं है।
भारत में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र
भारत में प्रतिवर्ष किसी न किसी भाग में बाढ़ आती है। ब्रह्मपुत्र, गंगा एवं सिंधु की नदियों से असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा एवं पंजाब में भयंकर बाढ़ आती है।
उड़ीसा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान भी बाढ़ से प्रभावित होते रहते हैं।
देश में लगभग 400 लाख हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ के खतरे वाला है। यह देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का आठवां भाग है।
हर साल औसतन 77 लाख हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित होता है। 35 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की फसलें नष्ट हो जाती हैं।
बाढ़ नियंत्रण में सरकार विफल क्यों
इससे पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि बाढ़ की स्थिति को उत्पन्न होने से रोकने के लिये प्रतिरोधात्मक उपाय न अपनाकर बाढ़ आने पर बचाव एवं राहत कार्यों पर अधिक ध्यान दिया गया है।
वर्षा के पानी को जलग्रहण क्षेत्रों (कैचमेन्ट एरिया) में ही जगह-जगह चेक-डैम, मिट्टी के बांध एवं बंधियों तथा जलाशयों का निर्माण करके बाढ़ को नियंत्रित किया जा सकता है पर ऐसा नहीं हो रहा है।
भारत में इस दिशा में किए गए प्रयास अपर्याप्त एवं अनियोजित हैं। जिन क्षेत्रों में ऐसा कर लिया गया है वहां बाढ़ की विभीषिका बहुत बड़ी सीमा तक कम हो गई है।
सरकारी स्तर पर बाढ़-नियंत्रण को लेकर दीर्घावधि योजनाएं
1. राष्ट्रीय बाढ़-प्रबंधन कार्यक्रम
2. जलाशयों का निर्माण
3. बाढ़ का पूर्वानुमान एवं चेतावनी
4. समुद्री क्षेत्रों में बाढ़-नियंत्रण
5. ब्रह्मपुत्र बाढ़-नियंत्रण बोर्ड
6. पंचवर्षीय योजनाओं में अलग से धन की व्यवस्था
7. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन
जिम्मेदार कारण
हर साल बाढ़ की भीषण स्थिति के लिए प्राकृतिक और मानवीय कारणों को जिम्मेदार माना जा सकता है।
प्राकृतिक कारणों में असमान वर्षा सर्वाधिक प्रमुख कारण है। भारत एक असमान वर्षा वाला देश है।
70 से 90 प्रतिशत वर्षा मॉनसून के चार महीनों-जून से सितंबर में ही हो जाती है।
इन महीनों में कहीं बहुत कम तो कहीं बहुत अधिक बारिश होती है।
जहां तक मानवीय कारणों की बात है तो अधिकाधिक भूमि को खेती योग्य बनाने, घरेलू व व्यावसायिक कार्यों में लकड़ी का प्रयोग करने, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, प्रदूषण का स्तर बढ़ना, प्रतिवर्ष गर्मी में इजाफा होना, भू-क्षरण एवं नदियों, शहरीकरण, औद्योगीकरण आदि को जिम्मेदार माना जा सकता है।
Updated on:
16 Jul 2019 05:22 pm
Published on:
16 Jul 2019 03:17 pm
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