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नई दिल्ली। कोरोना संक्रमण ( coronavirus ) के चलते भारी संख्या में यूरोप और अमरीका में लोगों की जान जा रही है। लेकिन भारत के बिहार ( Bihar ) में इस वायरस से संक्रमित लोगों में इसका असर कम दिख रहा है। एक तरफ जहां विदेशों में कई मरीजों को वेंटिलेटर की जरूरत हो रही है, वहीं बिहार में अब तक किसी भी मरीज को वेंटिलेटर पर ले जाने की जरूरत नहीं हुई है।
पिछले दो दिनों में बिहार में कोरोना मरीजों की संख्या में अचानक तेजी आई है। शुक्रवार सुबह 10 बजे तक के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में संक्रमण के 60 केस हो चुके हैं। इनमें से 15 लोग पूरी तरह ठीक होकर अपने-अपने घर जा चुके हैं, जबकि एक शख्स की जान गई है।
इस बात को मेडिकल साइंस और मीडिया ( Medical Science and Media ) में गौर किया जाने लगा है। चर्चा इस बात की है कि एक तरफ जहां पूरी दुनिया में वेंटिलेटर ( Ventilator ) की मारामारी मची है वहीं बिहार में अब तक किसी भी कोरोना मरीज को वेंटिलेटर या आईसीयू में रखने की जरूरत नहीं हुई है।
बिहार में अब तक जितने भी कोरोना संक्रमित मरीज आए हैं उन सबको केवल अलग वॉर्ड में क्वारंटीन करके और मलेरिया की दवाई खिलाकर ठीक किया जा रहा है। बिहार की राजधानी पटना के नालंदा मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में कोरोना मरीजों का इलाज हो रहा है। यहां अबतक केवल दो कोरोना पॉजिटिव मरीज को इमरजेंसी वॉर्ड में शिफ्ट करने की नौबत आई है। आइए हम आपको बताते हैं कि इन पहलुओं पर विशेषज्ञों की राय क्या है?
जानें एक्सपर्ट्स की राय?
ठाकुर हार्ट हॉस्पिटल मधुबनी/ पटना की निदेशक डॉ. कामिनी झा ठाकुर ( Dr Kamini Jha Thakur ) का कहना है कि बिहार के लोगों का इम्यूनिटी सिस्टम बेहतर होने के पीछे कई वहज हैं। पहला यहां की अधिकांश आबादी आज भी टेडिशनल फूड पर निर्भर है। दूसरी बात ये है कि बिहार के लोग आज भी ग्राउंड वाटर का उपयोग करते हैं। भूजल का उपयोग करने से पानी में विद्यमान सभी मिनरल शरीर को मिलता है। इसलिए बिहार का पानी आरओ और एक्वागार्ड वाले पेयजल के बेहतर माना जाता है। तीसरी बात बिहारी बाय कंडिशन हार्डशिप लाइफ जीते हैं। इसलिए अभी तक बिहारी में कोरोना का महानगरों की तुलना में बहुत कम असर देखने को मिला है।
वहीं दिल्ली के धर्मशिला हॉस्पिटल के कॉर्डियो डिपार्टमेंट के निदेशक डॉ. एके पांडेय ( Dr Ak Pandey) भी कामिनी झा के विचार से सहमत हैं। लेकिन उनका कहना है कि इसे क्षेत्र विशेष के संदर्भ में नहीं देखा जा सकता हैं ऐसा इसलिए कि इंडियन क्लाइमेट सिस्टम में ही काफी विविधता है। जहां तक खान पान की बात है अर्बन एरिया को छोड़ दें तो दक्षिण भारतीय हों या उत्तर भारतीय या फिर किसी भी क्षेत्र के भी लोग आज भी नेचुरल फूडिंग पर निर्भर हैं। सीजनल फूड प्राकृतिक रूप से उनके लाइफ का अहम हिस्सा होता है। सबसे अहम बात यह है कि भारतीय मौसमी विविधता की वजह से कई तरह के इनफेक्शन के प्रभाव में आते रहते हैं। इसलिए उनके इम्यूनिटी का लेवल हमेशा अमेरिकंस और यूरोपियंस से बेहतर होता है।
दिल्ली विश्वविद्यालय बीआर अंबेडकर रिसर्च सेंटर के प्रोफेसर रमेश चंद्र ( Prof Ramesh Chandra ) का कहना है कि कोरोना वायरस के प्रभाव को आप बिहार, इंडिया या अन्य भौगोलिक सीमाओं के आधार पर आकलन नहीं कर सकते। ऐसा इसलिए कि मेडिकल साइंस में क्षेत्र विशेष का महत्व नहीं होता। इतना जरूर है कि जिस क्षेत्र के लोग रफ-टफ लाइफ या जिनका जीवन हार्ड होता है वो जल्द किसी वायरस से प्रभावित नहीं होते। ऐसा इसलिए कि हार्ड लाइफ जीने वालों का इम्यूनिटी सिस्टम दूसरों की तुलना में बेहतर होता है।
मलेरिया की वजह से प्रतिरोधक क्षमता हुई मजबूत
मेडिकल साइंस ( Medical Science ) के कुछ जानकारों का कहना है कि बिहार में मलेरिया का भी काफी प्रभाव है। हर साल कई लोगों में मलेरिया की शिकायत होती है। जानकार यह मानते हैं कि मलेरिया का सामना करते-करते बिहार के लोगों की वायरस प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि हो गई होगी। गौर करने वाली बात यह भी है कि कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के इलाज में मलेरिया की दवाई कारगर साबित हो रही है। अमरीका ने भारत से मलेरिया की दवाई जोर देकर मांग करने के पीछे एक वजह यह भी हो सकता है।
Updated on:
10 Apr 2020 03:17 pm
Published on:
10 Apr 2020 03:05 pm
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