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मोतियाबिंद में मरीजों को नहीं करना पड़ेगा ऑपरेशन, 2023 तक बाजार में आ रही है नई आईड्राॅप

Highlights- मोतियाबिंद के इलाज (Cataract treatment) के लिए ऑपरेशन ही एकमात्र विकल्प है- इस ऑपरेशन में डॉक्टर द्वारा अपारदर्शी लेंस (Opaque lens) को हटाकर मरीज़ की आंख में प्राकृतिक लेंस के स्थान पर नया कृत्रिम लेंस आरोपित किया जाता है, कृत्रिम लेंसों (Artificial lenses) को इंट्रा ऑक्युलर लेंस (Intra ocular lens) कहते हैं- उसे उसी स्थान पर लगा दिया जाता है, जहां आपका प्रकृतिक लेंस लगा होता है

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मोतियाबिंद में मरीजों को नहीं करना पड़ेगा ऑपरेशन, 2023 तक बाजार में आ रही है नई आईड्राॅप

मोतियाबिंद में मरीजों को नहीं करना पड़ेगा ऑपरेशन, 2023 तक बाजार में आ रही है नई आईड्राॅप

नई दिल्ली. मोतियाबिंद (cataracts) जिसे हम सफेद मोतिया (White cataract) भी कहते हैं, जिसमे आंख के प्राकृतिक पारदर्शी लेंस का धुंधलापन हो जाता है। मोतियाबिंद के इलाज (Cataract treatment) के लिए ऑपरेशन ही एकमात्र विकल्प है। इस ऑपरेशन में डॉक्टर द्वारा अपारदर्शी लेंस (Opaque lens) को हटाकर मरीज़ की आंख में प्राकृतिक लेंस के स्थान पर नया कृत्रिम लेंस आरोपित किया जाता है, कृत्रिम लेंसों (Artificial lenses) को इंट्रा ऑक्युलर लेंस (Intra ocular lens) कहते हैं, उसे उसी स्थान पर लगा दिया जाता है, जहां आपका प्रकृतिक लेंस लगा होता है। पर अब वैज्ञानिकों की एक बड़ी कोशिशों से लोगों को राहत मिलेगी।

लैब टेस्ट में साबित हुई सफल

भारत सरकार के इंस्टीट्यूट ऑफ नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी (Government of India Institute of Nano Science and Technology), मोहाली के वैज्ञानिकों की टीम ने दर्द या बुखार कम करने के लिए दी जाने वाली दवा एस्पिरिन (Aspirin) से नैनोरोड्स ( to Nanorods) (अत्यंत महीन कण) डेवलप किए हैं, जो अंधेपन की बड़ी वजह मोतियाबिंद को रोकने के लैब टेस्ट में सफल साबित हुए हैं।

2023 तक आएगी बाजार में

देश में एस्पिरिन से नैनोरोड्स डेवलप करने का यह पहला मामला है। अगर आगे सारे टेस्ट कामयाब रहे तो 2023 तक इसकी दवा आईड्राॅप के रूप में बाजार में आ जाएगी।

देश में 1.2 करोड़ लोग दृष्टिहीन हैं

देश में करीब 1.2 करोड़ लोग दृष्टिहीन हैं। इनमें से 66.2% दृष्टिहीनता मोतियाबिंद के कारण ही है। देश में हर साल इसके 20 लाख नए केस आते हैं। इस शोध टीम की प्रमुख डॉ. जीबन ज्योति पांडा ने बताया कि उम्र बढ़ने से, म्यूटेशन से या अल्ट्रावॉयलेट रेज के आंखों पर सीधे पड़ने के कारण आंखों में लैंस बनाने वाले क्रिस्टलीय प्रोटीन की संरचना बिगड़ जाती है। इसके कारण अव्यवस्थित प्रोटीन जमा होकर एक नीली या भूरी परत बनाते हैं, जिससे लेंस की पारदर्शिता खत्म होती जाती है। इसे ही मोतियाबिंद कहते हैं।

जानिए, मोतियाबिंद के लक्षण

- दृष्टि में धुंधलापन या अस्पष्टता
- बुजुर्गों में निकट दृष्टि दोष में निरंतर बढ़ोतरी
- रंगों को देखने की क्षमता में बदलाव क्योंकि लेंस एक फ़िल्टर की तरह काम करता है
- रात में ड्राइविंग में दिक्कत आनाजैसे कि सामने से आती गाड़ी की हैडलाइट से आँखें चैंधियाना
- दिन के समय आँखें चैंधियाना
- दोहरी दृष्टि (डबल विज़न)
- चश्मे के नंबर में अचानक बदलाव आना

जानिए, क्या है कारण

- उम्र का बढ़ना
- डायबिटीज
- अत्यधिक मात्रा में शराब का सेवन
- सूर्य के प्रकाश का अत्यधिक एक्सपोजर
- मोतियाबिंद का पारिवारिक इतिहास
- उच्च रक्तदाब
- मोटापा
- आंखों में चोट लगना या सूजन
- पहले हुई आंखों की सर्जरी
- कार्टिस्टेरॉइड मोडिकेशन का लंबे समय तक इस्तेमाल
- धुम्रपान


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