
नई दिल्ली। पाकिस्तान हर मामले में भारत से प्रतिस्पर्धा करता रहा है। लेकिन एक क्षेत्र ऐसा भी है जिसमें पाकिस्तान आठ साल पहले एंट्री मारने के बावजूद पिछड़ गया। अब चाहते हुए भी पाकिस्तान स्पेस वार में भारत का पीछा नहीं कर सकता। इस लिहाज से आप कह सकते हैं कि स्पेस वार में पाकिस्तान अपने धुर विरोधी व पड़ोसी भारत से बढ़त बनाने के बाद भी पिछड़ गया।
यही कारण है कि आज स्पेस साइंस की दुनिया में भारत की तूती बोलती है और पाकिस्तान की चर्चा तक नहीं होती। पाकिस्तान की स्थिति का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि 1960 से लेकर 2019 तक में पाकिस्तान केवल पांच रॉकेट छोड़ने में सफल हुआ।
असुरक्षा बोध से बाहर नहीं निकल सका पाकिस्तान
ऐसा इसलिए कि 1965, 1971 में भारत—पाकिस्तान युद्ध और 1974 में पहले परमाणु परीक्षण के बाद पाकिस्तानी हुक्मरानों की प्राथमिकता बदल गई। पाकिस्तान का फोकस पूरी तरह से स्पेस साइंस से हटा दिया गया।
पाकिस्तान के इतिहास में ये दोनों ऐसे पड़ाव हैं जिसके बाद से पाकिस्तान भारत से असुरक्षा महसूस करने लगा। साथ ही भारत के साथ हथियारों की होड़ में शामिल हो गया।
भारत से हर बार मिली करारी पराजय की वजह से पाक के हुक्मरानों का ध्यान परमाणु बम बनाने पर केंद्रित हो गया। जबकि इस अवसर का लाभ उठाते हुए भारत आज चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला है।
चांद के दक्षिण ध्रुव पर पहुंचने वाला भारत दुनिया का पहला राष्ट्र होगा। ऐसा कर भारत अमरीका, रूस और चीन सहित सभी देशों को चौंकाने का काम करेगा।
9 साल पहले शुरू हुआ था सुपरको का स्पेस मिशन
दरअसल, पाकिस्तान ने 16 सितंबर, 1961 में स्पेस एंड अपर एटमॉसफेयर रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (SUPARCO) बनाया। वह भी भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के आधिकारिक गठन से करीब आठ साल पहले लेकिन आज वो स्पेस वार की रेस में दूर दूर तक नहीं है।
इसके उलट इसरो की स्थापना 1969 में हुई थी। उससे पहले भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी का नाम इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च था। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने अपने बलबूते पूरी दुनिया में अपनी धाक जमाई।
यही वजह है अंतरिक्ष विज्ञान के मामले में भारत के सामने पाकिस्तान का कोई वजूद ही नहीं है। सिर्फ चीन ही है जो भारत से कुछ मामलों में आगे है लेकिन उसके भी अभियानों ने दुनिया को उतना हैरान नहीं किया जितना इसरो ने किया।
1960 में पाक ने पूरी दुनिया को चौंका दिया
1960 में कराची में पाकिस्तान-अमरीकी काउंसिल का लेक्चर चल रहा था। स्पीकर ने प्रो. अब्दुस सलाम ने अपने एक बयान से पूरी दुनिया को चौंका कर रख दिया। इस लेक्चर के दौरान प्रो. सलाम ने इस बात का ऐलान किया कि पाकिस्तान अब स्पेस एज में दाखिल होने वाला है। बहुत जल्द हम अंतरिक्ष में एक रॉकेट भेजने वाले हैं।
अगले दिन अब्दुस सलाम के भाषण का हिस्सा अगले दिन दुनिया के तमाम जाने-माने अख़बारों के पहले पन्नों पर छपा। बाद में अब्दुस सलाम विज्ञान के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार जीतने वाले पहले मुसलमान और पाकिस्तानी बने।
उपलब्धियों से भरे थे सुपरको के शुरुआती दिन
स्पेस एंड अपर एटमॉसफेयर रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (SUPARCO) सुपरको के दौर सफलताओं से भरा रहा। इंग्लैंड और अमरीका में रिसर्च करने वाले कई पाकिस्तानी वैज्ञानिक कराची आकर इससे जुड़ गए।
उस दौर में विज्ञान की दुनिया में प्रो. अब्दुस सलाम की तूती बोलती थी। उन्हें कुछ लोग पाकिस्तान का होमी भाभा भी कहते थे।
प्रो. सलाम ने जनरल अयूब खान के सहयोग से पाकिस्तानी स्पेस कार्यक्रम को 1960 से 1970 के दौरान काफी आगे बढ़ाया। अमरीका ने उस दौर में अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में पाकिस्तान के काम को सराहा था।
लेकिन जनरल याह्या खान और प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के दौर में प्राथमिकताएं तेज़ी से बदलीं।
इसका सीधा असर यह हुआ कि पाकिस्तान स्पेस की दुनिया में पिछड़ता गया और भारत उतनी की तेजी से कदम बढ़ाते हुए अपने दम पर चांद और मंगल पर पहुंच गया। आज भारत का चंद्रयान—2 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर कदम रख नया इतिहास रचेगा।
अंतरिक्ष मिशन के पीछे था अमरीका का हाथ
वर्ष 1960-61 में पाकिस्तान ने अमरीका की मदद से अपना स्पेस प्रोग्राम को शुरू किया था। इसका प्रमुख मक़सद मौसम विज्ञान सम्बंधी जानकारी जुटाना था। स्पेस मिषन के लिए पाकिस्तान को रॉकेट अमरीका से मिले थे।
अमरीकी रॉकेट को पकिस्तान में मॉडिफाई किया गया। इसी को पाकिस्तान के पहले रॉकेट रहबर-1 के नाम से जाना गया। इसे कराची स्थित सुपारको यानी पाकिस्तान स्पेस एंड अपर एटमॉस्फियर रिसर्च कमिशन ने अंतरिक्ष से छोड़ा था।
Updated on:
06 Sept 2019 12:21 am
Published on:
06 Sept 2019 12:11 am
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