
vishnu narayan dutt singh
लखनऊ। 38 साल लंबी लड़ाई। कोर्ट-कचहरी के लंबे चक्कर। मुकदमेबाजी में लाखों खर्च। अरबों की संपत्ति के वारिस निराश हो चुके थे। फिर अंतिम हथियार के रूप में सूचना के अधिकार का प्रयोग किया गया। महज दस रुपए के खर्च पर सिर्फ दस माह के भीतर एक अरब की संपत्ति का स्वामित्व मिल गया।
यह रोचक कहानी लखीमपुर खीरी की ओयल स्टेट के राजपरिवार से जुड़ी है। राजपरिवार को आरटीआइ की वजह से 93 साल बाद अपने राजमहल पर कब्जा मिल गया है। ओयल रियासत के पूर्व बड़े राजा विष्णु नारायण दत्त सिंह व कुंवर हरि नारायण सिंह ने बताया कि 1928 में ओयल रियासत के तत्कालीन राजा युवराज दत्त सिंह ने महल अंग्रेज अफसरों को किराये पर दिया था। इसमें डिप्टी कलक्टर का आवास व कार्यालय था। लीज 30 साल के लिए थी। आजादी के बाद यह किरायेदारी अगले 30 साल के लिए बढ़ा दी गई। युवराज की मृत्यु (1984) के बाद ओयल परिवार को किराया मिलना बंद हो गया। सरकार ने शर्त रखी कि महल के कागजात लाइए, तभी किराया मिलेगा। यहां से कानूनी लड़ाई शुरू हुई।
समस्या बताई और राह निकली -
युवराज दत्त सिंह के पोते कुंवर प्रद्युम्न नारायण दत्त सिंह ने 28 अगस्त, 2019 को आरटीआइ एक्टीविस्ट सिद्धार्थ नारायण को समस्या बताई। फिर जिलाधिकारी कार्यालय खीरी, राजस्व विभाग व अन्य विभागों को पार्टी बनाते हुए राजमहल के मूल दस्तावेजों की मांग की गई। 27 मार्च, 2020 को इस बारे में लिखित सूचना मिली।
93 साल बाद फिर मिल गया कब्जा-
महल के स्वामित्व से जुड़े सभी मूल दस्तावेज 21 अक्टूबर, 2020 को राजपरिवार को मिले। इस आधार पर एक अरब रुपए के महल के स्वामित्व का दावा कोर्ट में पेश किया गया। तब राजपरिवार को 93 साल बाद फिर से कब्जा मिल गया।
Published on:
22 Feb 2021 08:54 am
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