पत्रिका इंटरव्यू: 'प्राथमिकता समूह को टीका दे 90 फीसदी मौतें रोक सकेंगे'
- बेसब्री भरे इंतजार के बाद कोरोना टीके चुनिंदा लाभार्थियों तक पहुंच रहे हैं। लेकिन लगाने वालों में हिचकिचाहट साफ दिख रही है।

बेसब्री भरे इंतजार के बाद कोरोना टीके चुनिंदा लाभार्थियों तक पहुंच रहे हैं। लेकिन लगाने वालों में हिचकिचाहट साफ दिख रही है। इससे जुड़ी आशंकाओं पर डॉ. वीके पॉल (कोविड टीकों की नेशनल टास्क फोर्स के चेयरमैन) से मुकेश केजरीवाल की बातचीत..
प्र. टीका लंबे इंतजार के बाद पहुंचा फिर भी इतनी आशंकाएं क्यों?
टीकों के प्राथमिकता समूह में डॉक्टरों से ले कर अस्पताल के सफाई कर्मी तक हैं। सच है कि इनमें से कुछ को हिचकिचाहट है। लेकिन यह कुछ समय की बात है। उनकी शंकाएं दूर होनी चाहिएं। लेकिन यह समय बर्बाद करने का नहीं है। लाखों लोग लगातार लगवा भी रहे हैं।
प्र.कितने लोगों को टीकों की जरूरत होगी और उन्हें कब तक लगा सकेंगे?
माना जा रहा है कि टीकों से या संक्रमण की वजह से 70-80त्न लोगों में सुरक्षा आ जाए तो कोरोना को रोका जा सकेगा। अभी 30 करोड़ लोग हमारी प्राथमिकता समूह में हैं। उन्हें टीका लगा कर हम इससे होने वाली मौतों को 80-90त्न तक कम कर सकेंगे। महामारी कोई हो, मौतें रोक लें तो बड़ी राहत मिलेगी और हम उसे झेल सकेंगे। अभी हमारा लक्ष्य यही है। हो सकता है इतने लोगों को टीका लगाने तक महामारी काबू होने लगे और हमें 70त्न लोगों को टीके लगाने की जरूरत नहीं रहे। जरूरत हुई तो 70त्न लोगों को लगाए जाएंगे।
प्र. ऐसा तो नहीं कि एक टीका जिसके फेज-3 के प्राथमिक आंकड़े भी नहीं आए, उसकी वजह पूरी आशंका हो?
यह कहना ठीक नहीं है कि यह सिर्फ कोवैक्सीन की वजह से है। यह टीकों को ले कर सामान्य हिचकिचाहट है। दोनों ही टीकों को लेकर है। कोविशिल्ड बहुत अधिक साइट पर लगाया जा रहा है, क्योंकि उसकी सप्लाई ज्यादा है। लोगों को समझना चाहिए कि लगाने वाले अपने साथ ही परिवार की सुरक्षा कर रहे हैं। दुनिया के अधिकांश देशों में टीका है ही नहीं। अधिकांश देश ना तो बना सकते हैं और ना ही खरीद सकते हैं। हम खुशकिस्मत हैं कि दो टीके हमारे पास हैं। जो लोग नहीं ले रहे हैं, उनसे मैं हाथ जोड़ कर अपील कर रहा हूं कि वे इससे इंकार नहीं करें।
'डब्ल्यूएचओ के फ्रेमवर्क में ही कोवैक्सीन का उपयोग'
प्र.लगाया जा रहा एक टीका क्लीनिकल ट्रायल में है। लाभार्थियों के नाम चुनने से पहले उनकी रजामंदी लेते हैं?
दोनों टीकों के लगाए जाने का फैसला रेगुलेटर ने किया है, जहां वैज्ञानिक और विशेषज्ञ हैं। दुनिया के किसी टीके को अभी सामान्य अनुमति नहीं मिली है। क्योंकि इनके फायदे बहुत अधिक हैं और खतरा नहीं के बराबर है। कोवैक्सीन तरक्की में थोड़ा पीछे था तो बहुत सोच-समझ कर तय किया गया कि उसके लिए डब्लूएचओ के फ्रेमवर्क में उपलब्ध व्यवस्था का इस्तेमाल कर इसका उपयोग किया जाए। ट्रायल मोड में है तो उसे लगाने
वालों पर सक्रिय रूप से नजर रखी जा रही है।
प्र.जो ट्रायल में है और जिसे लगाने से पहले खतरे बता कर कंसेंट फार्म भरवाया जाता है, उसे अपने शीर्ष डॉक्टरों को लगाना कितना उचित?
दो अलग-अलग बातें हैं। पहला कि हमारे रेगुलेटर ने पाया है कि इन दोनों टीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है। दूसरा हमने माना है कि सबसे पहले हमें अपने स्वास्थ्य कर्मियों को सुरक्षित करना है। सारी दुनिया ने अपने स्वास्थ्य कर्मियों को ही ऊपर रखा है। फिर इस चीज में हमें विश्वास है।
प्र. कुछ लोग सोचते हैं जब सारी सावधानियां रखनी ही है तो टीका क्यों लें?
सिर्फ सावधानी से महामारी जाती तो दुनिया टीकों के पीछे क्यों दौड़ती। मत भूलिए कि सारी सावधानियों के बाद इतनी तबाही हुई। भारत में डेढ़ लाख जानें गईं। टीके से आपकी सुरक्षा बढ़ जाएगी। पूरी व्यवस्था मजबूत होगी। अर्थव्यवस्था में गति आएगी। स्कूल-कॉलेज व्यवस्थित खुल सकेंगे। सावधानी और टीका दोनों मिल कर इसे खत्म कर पाएंगे।
प्र. जिनको कोरोना ठीक हो चुका, क्या उन्हें टीका नहीं देना चाहिए?
ना तो किसी देश ने ना ही डब्लूएचओ ने ऐसी सिफारिश की है। आम राय है कि सभी प्राथमिकता समूहों को लगाया जाए। चाहे उन्हें संक्रमण हुआ हो या नहीं।
प्र. टीका नहीं लेने वालों पर कार्रवाई की भी बात हो रही है...
वैक्सीन लगाना आपकी मर्जी पर है। स्वैच्छिक है। जोर-जबर्दस्ती की बात नहीं।
प्र. पीएम ने मीडिया वालों को कोरोना वारियर बताया था, फिर प्रायोरिटी ग्रुप में क्यों नहीं?
सबसे पहले उन्हें लगा रहे हैं जो स्वास्थ्य ढांचे को सुचारू रख सकें। उपलब्धता बढऩे के साथ और विचार करेंगे।
प्र. उठते सवालों को देख, क्या कोवैक्सीन को कुछ समय स्थगित करने का विचार किया जा रहा है?
ऐसा कोई विचार नहीं है। कोवैक्सीन को तेजी से अपनाया जा रहा है। कुछ लोगों को हिचकिचाहट है, दूर हो रही है।
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