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चहेतों को अखिलेश सरकार ने रेवड़ियों की तरह बांटे थे यश भारती पुरस्कार, कई सपा कार्यकर्ता भी शामिल

अखिलेश यादव सरकार ने यश भारती पुरस्कार को चहेतों को रेवड़ियों की बांटा था। इनमें कई सपा कार्यकर्ता थे।

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Akhilesh Yadav with Yash Bharti winners last year

Akhilesh Yadav with Yash Bharti winners last year

नई दिल्ली।अखिलेश यादव सरकार ने यश भारती पुरस्कार को चहेतों को रेवड़ियों की बांटा था। इनमें कई सपा कार्यकर्ता थे। इसका खुलासा आरटीआई के तहत मिली जानकारी में किया गया है। अखिलेश यादव सरकार के लिए सैफई महोत्सव का आयोजन करने वाले एक टीवी एंकर; मुख्यमंत्री कार्यालय में एक अधिकारी जिसने अपने नाम की सिफारिश स्वयं की; एक शोधकर्ता जिसने मेघालय में दो महीने के 'फील्ड वर्क' को एक उपलब्धि के रूप में दर्शाया; ज्योतिष और मनोविज्ञान पर आधारित अनूठी और हस्तनिर्मित कपड़ों के निर्माण की क्रांतिकारी विचारधारा का स्व-स्टाइल संस्थापक; ये सभी उम्मीदवार मुख्यमंत्री के चाचा शिवपाल सिंह यादव और एक स्थानीय संपादक द्वारा अनुशंसित उम्मीदवार रहे। यह 2012 से 2017 के बीच यूपी सरकार की आकर्षक यश भारती पुरस्कार के विजेताओं का उदाहरण है। यह जानकारी सूचना के अधिकार के तहत मिली है।

मिलती है 50,000 रुपए की आजीवन मासिक पेंशन
ये पुरस्कार, समाज में जागरूकता बढ़ाने के लिए दिए जाते हैं। इसके तहत एक बार में 11 लाख रुपए की धनराशि मिलती है। इसके अलावा 50,000 रुपए की जीवनभर की मासिक पेंशन मिलती है। यश भारती पुरस्कार को 1994 में अखिलेश सिंह यादव के पिता और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने शुरू किया था, लेकिन बीच में बसपा और भाजपा ने अपने शासन के दौरान इसे बंद कर दिया था।

कई सपा कार्यकर्ताओं पर अखिलेश सरकार ने किया था एहसान
आरटीआई कानून के तहत 2012-17 के समय के 200 पुरस्कार विजेताओं में से 142 के नामांकन के बारे में जानकारी मिली है। इसके आवेदनों में से योग्य के चयन की कोई निश्चित प्रक्रिया नहीं थी। कई विजेता समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता थे, जिन पर अखिलेश सरकार ने एहसान किया और एक तरह से प्रदेशकार ने उन्हें संरक्षण दिया गया। कई आवेदन मुख्यमंत्री के कार्यालय से सीधे भेजे गए थे, जबकि आधिकारिक तौर पर पुरस्कारों का काम संस्कृति विभाग के अंर्तगत आता है।

21 विजेताओं ने सीएमओ को पत्र लिखकर खुद के मांगा पुरस्कार
आरटीआई रिकॉर्ड से पता चलता है कि कम से कम 21 विजेताओं ने सीधे सीएमओ (मुख्यमंत्री कार्यालय) को पत्र लिखकर खुद के लिए पुरस्कार की मांग की। सपा के नेताओं ने कम से कम छह पुरस्कार विजेताओं की सिफारिश की थी, जिनमें अखिलेश के चाचा शिवलपाल यादव ने दो और आजम खान ने एक आवेदनकर्ता की सिफारिश की थी। अखिलेश सरकार के पूर्व मंत्री राजा भैया ने दो नामों की सिफारिश की थी। हिंदुस्तान टाइम्स, लखनऊ के स्थानीय संपादक सुनीता आरोन ने तीन विजेताओं की सिफारिश सीएमओ को ई-मेल करके की। 2015 में सपा सरकार द्वारा पेश किए गए आजीवन पेंशन के प्रावधान के कारण योगी आदित्यनाथ सरकार इन पुरस्कारों की समीक्षा कर रही है क्योंकि एक पुरस्कार विजेता की उम्र केवल 19 साल है, जो कि एक आईएएस अधिकारी की बेटी है।

इस साल अब तक नहीं खर्च किया गया एक भी पैसा
सांस्कृतिक विभाग की संयुक्त निदेशक अनुराधा गोयल ने बताया कि इस वर्ष, 2017-18 के दौरान, 4.66 करोड़ रुपए इस पेंशन के लिए निर्धारित किए गए थे, अब तक कोई पैसा खर्च नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि संस्कृति निदेशालय ने पुरस्कारों की समीक्षा के लिए कहा है। हालांकि, जब यूपी के संस्कृति मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा, यश भारती पुरस्कार और पेंशन पर सरकार ने कुछ करने का सोचा है, लेकिन हमने अभी कोई भी फैसला नहीं लिया है। इन पुरस्कारों को रद्द भी किया जा सकता है।

हर अच्छे काम को बंद करना चाहती है भाजपाः सपा प्रवक्ता
संपर्क करने पर सपा के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा, भाजपा हमारी सरकार द्वारा किए गए हर अच्छे काम को बंद करना चाहती है। यश भारती पुरस्कार से विभिन्न क्षेत्रों से व्यक्तित्वों को सम्मानित करना था। प्रत्येक पुरस्कार प्राप्तकर्ता का चयन उच्च स्तरीय समिति द्वारा तय प्रक्रिया के तहत किया गया था।

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