
हिन्दी के विख्यात आलोचक-साहित्यकार नामवार सिंह का निधन, यहां पढ़ें उनकी ये मशहूर कविताएं
नई दिल्ली। हिन्दी के विख्यात आलोचक और साहित्यकार नामवर सिंह अब इस दुनिया में नहीं रहे। पीछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे नामवर सिंह ने दिल्ली के एम्स में अपनी अंतिम सांसे ली। उन्होंने हिंदी में आलोचना विधा को नई पहचान दी। उनकी पहचान एक आलोचक की है। लेकिन इनके अलावा उन्होंने कई कविताओं की रचनाएं भी की हैं। पढ़िए नामवर सिंह की दिल को छू लेने वाली कविताएं....
1. उनये उनये भादरे
उनये उनये भादरे
बरखा की जल चादरें
फूल दीप से जले
कि झुरती पुरवैया की याद रे
मन कुएं के कोहरे-सा रवि डूबे के बाद इरे
भादरे।
उठे बगूले घास में
चढ़ता रंग बतास में
हरी हो रही धूप
नशे-सी चढ़ती झुके अकास में
तिरती हैं परछाइयाँ सीने के भींगे चास में
घास में।
2. मंह मंह बेल कचेलियाँ
मँह-मँह बेल कचेलियाँ, माधव मास
सुरभि-सुरभि से सुलग रही हर साँस
लुनित सिवान, सँझाती, कुसुम उजास
ससि-पाण्डुर क्षिति में घुलता आकास
फैलाए कर ज्यों वह तरु निष्पात
फैलाए बाहें ज्यों सरिता वात
फैल रहा यह मन जैसे अज्ञात
फैल रहे प्रिय, दिशि-दिशि लघु-लघु हाथ !
3. विजन गिरिपथ पर चटखती
विजन गिरीपथ पर चटखती पत्तियों का लास
हृदय में निर्जल नदी के पत्थरों का हास
'लौट आ, घर लौट' गेही की कहीं आवाज़
भींगते से वस्त्र शायद छू गया वातास ।
4. कभी जब याद आ जाते
नयन को घेर लेते घन,
स्वयं में रह न पाता मन
लहर से मूक अधरों पर
व्यथा बनती मधुर सिहरन
न दुःख मिलता न सुख मिलता
न जाने प्राण क्या पाते!
तुम्हारा प्यार बन सावन,
बरसता याद के रसकन
कि पाकर मोतियों का धन
उमड़ पड़ते नयन निर्धन
विरह की घाटियों में भी
मिलन के मेघ मंड़राते।
झुका-सा प्राण का अंबर,
स्वयं ही सिंधु बन-बनकर
ह्रदय की रिक्तता भरता
उठा शत कल्पना जलधर
ह्रदय-सर रिक्त रह जाता
नयन-घट किंतु भर आते
कभी जब याद आ जाते।
Updated on:
20 Feb 2019 11:22 am
Published on:
20 Feb 2019 10:44 am
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