बता दें कि बीते साल 24 जुलाई को वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलात विभाग से तबादला किए जाने के तत्काल बाद ही उन्होंने नाराज होकर 31 अक्टूबर 2019 से वीआरएस की घोषणा कर दी थी।
अपने एक ब्लॉग में डॉ. गर्ग ने कहा कि हम दोनों के बीच कामकाज के नजरिए से अच्छे और परिणाम मूलक संबंध नहीं रहे। उनका मुझ पर विश्वास नहीं था। वह मेरे साथ काम करके बहुत सहज नहीं थीं। सीतारमण मेरा तबादला वित्त मंत्रालय से बाहर कराना चाहती थीं। मैं कहीं और काम करना नहीं चाहता था। पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली की तारीफ करते हुए गर्ग ने कहा कि उनको अर्थव्यवस्था की गहरी जानकारी थी। जेटली के साथ उनके अच्छे संबंध रहे।
व्यक्तिगत संबंधों में भी खटास आई डॉ. गर्ग ने कहा कि आरबीआइ के आर्थिक पूंजीगत ढांचे, आंशिक क्रेडिट गारंटी योजना, गैर बैंकिेंग संस्थाओं के पूंजीकरण जैसे विषयों पर भी उनके बीच गंभीर मतभेद पैदा हो गए थे। इसके अलावा बहुत जल्द ही उनके बीच व्यक्तिगत संबंधों में खटास आ गई और कामकाजी संबंध भी गैर उत्पादक हो गए। सीतारमण जून 2019 में भी मुझे वित्त मंत्रालय से बाहर करना चाहती थीं। लेकिन पता नहीं क्यों 5 जुलाई के बजट तक सरकार ने उनकी बात नहीं मानी।
प्रमुख सचिव को भी बताया डॉ. गर्ग के अनुसार, संबंधों में आई इस तल्खी के विषय में पीएमओ के तत्कालीन अवर प्रमुख सचिव पीके मिश्रा को भी बताया था। हम दोनों ने ही तय किया कि सबसे अच्छा यही होगा कि मैं नए वित्त मंत्री को कामकाज के लिए रास्ता दूं। मिश्रा ने मुझे कोई भी अन्य पद चुनने का विकल्प दिया, लेकिन मैंने प्रधानमंत्री और उनका धन्यवाद जता कर बताया कि मैंने वीआरएस का फैसला कर लिया है। नौकरी के अंतिम दिन 30 अक्टूबर 2019 को मैने अपने आर्थिक सुधारों संबंधी प्रस्ताव पीएम को देने के लिए मिश्रा को सौंपे।
फिर काम का क्या आनंद सीतारमण से मतभेद जताने के बावजूद गर्ग ने वीआरएस का प्रमुख कारण कामकाज को बताया है। उनके अनुसार सरकार ने 2019 के अंतरिम बजट में वर्ष 2030 तक 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की महत्वकांक्षा जताई थी, लेकिन बाद में मुझे लगा कि इस बड़े एजेंडे पर काम का अवसर फिसलता जा रहा है। यदि इस पर काम का मौका नहीं मिले तो फिर सरकार में काम करने का मजा नहीं है। यही वीआरएस का पहला कारण था।