सोबती ने अपनी शुरुआती पढ़ाई दिल्ली और शिमला से की। पढ़ाई के दौरान ही उनका रुझान लेखन की तरफ बढ़ने लगा। इस क्षेत्र में शुरुआत भी उन्होंने कविताओं से की थी। लेकिन बाद में उनका रुख फिक्शन की ओर हो गया। खास बात यह है कि फिक्शन लिखने में उन्हें कई पुरस्कार भी मिले। उन्होंने अपनी रचनाओं में महिला सशक्तिकरण और स्त्री जीवन की जटिलताओं का जिक्र किया था। सोबती को राजनीति-सामाजिक मुद्दों पर अपनी मुखर राय के लिए भी जाना जाता है।
इन पुरस्कारों से नवाजा गया
सोबती अपने जीवन के आखिरी वर्षों तक साहित्यिक कार्यों से जुड़ी रहीं। उनके पात्रों के किरदार यथार्थ के काफी करीब थे। सोबती को 1980 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। वहीं, भारतीय साहित्य जगत में महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें 2017 में ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया। 2018 में उनका ऑटोबायोग्राफिकल नॉवेल ‘गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान’ रिलीज हुआ था।
– सूरजमुखी अंधेरे के
– दिलोदानिश
– जिन्दगीनामा
– ऐ लड़की
– समय सरगम
– मित्रो मरजानी सोबती के उपन्यास मित्रो मरजानी को हिंदी साहित्य में महिला मन के मुताबिक लिखी गई बोल्ड रचनाओं में गिना जाता है। 2015 में देश में असहिष्णुता के माहौल से नाराज होकर उन्होंने अपना साहित्य अकादमी अवॉर्ड वापस लौटा दिया था। उनके एक और उपन्यास जिंदगीनामा को हिंदी साहित्य की कालजयी रचनाओं में से माना जाता है।