
unique hospital of india
नई दिल्ली। निजी अस्पतालों में गरीब मरीजों के लिए 10 फीसदी बेड आरक्षित होते हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में यह खाली ही पड़े रहते हैं। हालांकि समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें इस बात की जानकारी है और वो खुद से आगे आकर लोगों की मदद करते हैं।
एक ऐसा ही मामला राजधानी दिल्ली में सामने आया। यहां बिहार के पटना से एक दुकान का कर्मचारी रामबाबू (27) पहुंचा। पटना में ब्रेन ट्यूमर की जानकारी लगने के बाद वो इलाज कराने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) पहुंचा। यहां इलाज के लिए उसे छह महीने बाद का नंबर मिला और वो परेशान हो गया क्योंकि उसके पास इतना वक्त नहीं बचा था।
किसी निजी अस्पताल में इलाज कराना उसके बस से बाहर की बात थी। हालांकि इस बीच अशोक अग्रवाल नामक एक वकील उनके लिए भगवान का दूत बनकर सामने आया। अशोक ने रामबाबू से कहा कि निजी अस्पतालों में आर्थिक रूप से कमजोर यानी ईडब्ल्यूएस कैटेगरी के व्यक्तियों का मुफ्त इलाज भी हो सकता है। सरकारी जमीन पर निर्मित निजी अस्पतालों में गरीबों के निशुल्क इलाज के लिए यह नीति बनाई गई थी।
रामबाबू को यह जानकारी देने के बाद अशोक अग्रवाल उसको लकर पटपड़गंज स्थित मैक्स अस्पताल गए। यहां पर रामबाबू को भर्ती करवाया और अब उसका इलाज चल रहा है। समाचार एजेंसी आईएएनएस को रामबाबू के भाई श्यामबाबू (35) ने बताया कि उसे 24 घंटे सिर में असहनीय दर्द रहता था। पटना में एक डॉक्टर ने उसे दिल्ली ले जाने के लिए कहा। इसके बाद उसको लेकर 18 जुलाई को एम्स आए।
एम्स में छह माह बाद नंबर आने का पता चला तो न ही इतना लंबा इंतजार किया जा सकता था और न ही जल्द किसी निजी अस्पताल में इलाज। इसके बाद किसी जानकार ने वकील अशोक अग्रवाल से मिलने के लिए कहा। मैक्स अस्पताल में रामबाबू के लिए कैंसर विभाग में एक अलग बेड की व्यवस्था करवाई गई।
अशोक अग्रवाल कहते हैं कि रामबाबू जैसे हजारों मरीज निजी अस्पतालों में ईडब्ल्यूएस कैटेगरी में आरक्षित बेड का लाभ उठा सकते हैं। प्रावधान है कि निजी अस्पतालों में 10 फीसदी बेड इस कैटेगरी के लिए आरक्षित हैं। उन्हें करीब दर्जन भर ऐसे मामले देखने को मिले, जिनमें पीड़ित व्यक्ति इलाज का खर्च उठाने में असमर्थ था। ऐसे व्यक्तियों को उन निजी अस्पतालों में भेजा गया, जहां सरकारी नीति के मुताबिक चैरिटी बेड (खराती बिस्तर) की व्यवस्था की गई है।
तीस हजारी अदालत परिसर स्थित अपने चैंबर में हर अशोक अग्रवाल इलाज के लिए मदद चाहने वाले गरीबों से शनिवार को मिलते हैं। यहां पर वह एक इकरारनामा करवाते हैं कि मरीज ईडब्ल्यूएस श्रेणी से आते हैं और महंगा इलाज का खर्च वहन नहीं कर सकते।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने कम खर्च पर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा मुहैया करवाने के उद्देश्य से 1949 में निजी अस्पताल-स्कूल खोलने पर काफी रियायती दरों में जमीन आवंटित करने का फैसला किया था। निजी अस्पतालों में काफी गरीब वर्ग के लोगों का इलाज नहीं हो रहा था, इसलिए अग्रवाल ने 2002 में अदालत में एक याचिका दायर की।
दिल्ली हाईकोर्ट ने 2007 में आदेश दिया कि गरीबों के लिए आरक्षित बिस्तरों से लाभ अर्जित करने पर अस्पतालों पर भारी जुर्माना लगाया जाए। दिल्ली सरकार ने 2012 में अस्पतालों को दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले का अनुपालन करने का आदेश दिया। इसके अंतर्गत अस्पतालों में गरीबों के लिए 10 फीसदी बेड रिजर्व रखने और उन बिस्तरों पर भर्ती मरीजों के लिए मुफ्त दवा-जांच सुविधा देने के साथ ही ओपीडी मरीजों में से 25 फीसदी ईडब्ल्यूएस मरीजों को मुफ्त सलाह की सुविधा देने का प्रावधान किया।
चैरिटीबेड्स डॉट कॉम नामक एक वेबसाइट के जरिये भी दिल्ली-एनसीआर में रोजाना गरीब मरीजों के लिए निजी अस्पतालों में उपलब्ध 650 बिस्तरों की जानकारी दी जाती है। चोपड़ा कहते हैं कि जब भी कोई कॉल करता है तो वे सरकारी अस्पताल जाते हैं और मरीजों को वहां से लेकर सीधे निजी अस्पतालों में पहुंचाते हैं। उन्हीं मरीजों की मदद करते हैं, जो निर्धनता रेखा के नीचे यानी बीपीएल श्रेणी में आते हैं।
Updated on:
12 Aug 2018 05:59 pm
Published on:
12 Aug 2018 05:57 pm
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