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गंगा के लिए जंग: जीडी अग्रवाल की मौत के बाद भूख हड़ताल पर बैठे संत गोपालदास, पुलिस लेकर गई एम्स

गंगा को बचाने के लिए प्रोफेसर जी.डी.अग्रवाल के बाद अब संत गोपाल दास भी भूख हड़ताल पर बैठ गए।

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Chandra Prakash Chourasia

Oct 13, 2018

GD Agarwal

गंगा के लिए जंग: जीडी अग्रवाल की मौत के बाद भूख हड़ताल पर बैठे संत गोपालदास, पुलिस लेकर गई एम्स

नई दिल्ली। गंगा को अविरल और निर्मल बनाने के लिए प्रोफेसर जी.डी. अग्रवाल के बाद अब संत गोपाल दास भी भूख हड़ताल पर बैठ गए। गोपाल दास उत्तराखंड में हरिद्वार के उसी मैत्री सदन में भूख हड़ताल शुरू पर बैठे जहां प्रो.अग्रवाल (स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद) ने 112 दिन तक भूख हड़ताल की थी। शनिवार की उनकी तबियत बिगड़ने के बाद उन्हें ऋषिकेष एम्स में भर्ती कराया गया। जहां उनकी हालत अब स्थिर बनी हुई है।

112 दिन की भूख हड़ताल के बाद जीडी अग्रवाल का निधन

बता दें कि 11 अक्टूबर को गंगा को निर्मल बनाने के लिए 112 दिन तक भूख हड़ताल करने वाले आईआईटी कानपुर के पूर्व प्रोफेसर जी.डी. अग्रवाल का ऋषिकेश के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में दो दिन पहले निधन हो गया। उन्होंने इसी आश्रम में भूख हड़ताल की थी और सरकार पर अपनी मांगों के लिए दबाव बनाने के वास्ते भूख हड़ताल के 110वें दिन से उन्होंने जल भी त्याग दिया था। स्वामी सानंद ने अपना शरीर ऋषिकेश एम्स के छात्रों के उपयोग के लिए दान कर दिया गया। डॉक्टरों ने बताया कि उनके शरीर में कीटोन की मात्रा बहुत अधिक हो गई थी, इसके चलते उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनका निधन हो गया। डॉक्टर भले इसे बीमारियों के कारण दिल का दौरा कहें लेकिन उनका निधन तो गंगा की बदहाली के कारण दिल पर लगे आघात से हुआ।

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जारी रहेगी गंगा के लिए जंग

कनखल आश्रम के प्रवक्ता ने कहा गंगा सफाई के लिए आंदोलन जारी रहेगा। इसके लिए गंगा जागरण यात्रा कनखल से शुरू होकर दिल्ली के लिए रवाना होगी। राष्ट्रीय राजधानी से यात्रा पांच समूहों में बँटेगी और देश के विभिन्न हिस्सों के लिए रवाना होकर निर्मल गंगा के लिए जन जागरण करेगी।

नदी स्वच्छता पर लंबे समय से लड़ी लंबी लड़ाई

आइआइटी रूड़की से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले अग्रवाल रूड़की विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर रहे थे। गंगा समेत अन्य नदियों की सफाई को लेकर उन्होंने पहली बार 2008 में हड़ताल की थी। इस दौरान उन्होंने सरकार से नदी के प्रवाह पर जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण को रद्द करने पर सहमति कराने में सफलता भी हासिल की थी। इसके बाद वे यूपीए सरकार के दौरान तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने व्यक्तिगत रूप से उनके साथ बातचीत में सरकार के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भी किया था।