
सुप्रीम कोर्ट एससी एसटी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकारी नौकरियों में एससी-एसटी श्रेणी के लोगों को इस सुविधा का लाभ पहले की तरह मिलता रहेगा। फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने कहा कि नागराज मामले में दिए गए जजमेंट को सात जजों की पीठ को पुनर्विचार के लिए रेफर करने की भी जरूरत नहीं है। नागराज प्रकरण में 2006 के फैसले में अनुसूचित जातियों (एससी) एवं अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को नौकरियों में तरक्की में आरक्षण देने के लिए शर्तें तय की गई थीं। इसके साथ ही संविधान पीठ ने केंद्र सरकार का यह अनुरोध भी ठुकरा दिया कि एससी/एसटी को आरक्षण दिए जाने में उनकी कुल आबादी पर विचार किया जाए।
केंद्र और राज्यों की सरकारों को राहत
केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों ने विभिन्न आधारों पर इस फैसले पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया था। इसमें एक आधार यह था कि एससी-एसटी समुदायों के लोगों को पिछड़ा माना जाता है और जाति को लेकर उनकी स्थिति पर विचार करते हुए उन्हें नौकरियों के भीतर तरक्की में भी आरक्षण दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि नागराज फैसले के मुताबिक आरक्षण के लिए डेटा चाहिए। लेकिन शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्यों की सरकारों की दलील को स्वीकार करते हुए राहत के तौर पर राज्य को वर्ग के पिछड़ेपन और सार्वजनिक रोजगार में उस वर्ग के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता दिखाने वाला मात्रात्मक डेटा एकत्र करने की बाध्यता को समाप्त कर दिया है। अदालत के इस फैसले से साफ है कि सरकारी नौकरी में प्रमोशन में एससी-एसटी को आरक्षण पहले की तरह जारी रहेगा। बता दें कि 30 अगस्त को सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुनवाई पूरी करने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
क्या था नागराज मामले में फैसला?
जस्टिस एम नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी-एसटी के लिए प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था को लागू करने से पहले राज्यों को उनके पिछड़ेपन, सरकारी सेवाओं में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और संपूर्ण प्रशासनिक दक्षता से जुड़े कारणों की जानकारी देनी होगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक सरकार एससी/एसटी को प्रमोशन में आरक्षण तभी दे सकती है, जब डेटा के आधार पर तय हो कि उनका प्रतिनिधित्व कम है और यह प्रशासन की मजबूती के लिए जरूरी है। राज्य सरकारें संविधान के अनुच्छेद 16-4ए और अनुच्छेद 16-4बी के तहत एससी-एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण दे सकती हैं, लेकिन 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने इन प्रावधानों के इस्तेमाल की शर्तों को सख्त बना दिया था।
केंद्र का पक्ष
केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने तर्क दिया था कि एससी-एसटी तबके को आज भी प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है। केंद्र सरकार ने सर्वोच्च अदालत से कहा कि 2006 के फैसले पर पुनर्विचार की तत्काल जरूरत है। केंद्र ने कहा कि एससी-एसटी पहले से ही पिछड़े हैं, इसलिए प्रमोशन में रिजर्वेशन देने के लिए अलग से किसी डेटा की जरूरत नहीं है। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि जब एक बार उन्हें एससी-एसटी के आधार पर नौकरी मिल चुकी है तो पदोन्नति में आरक्षण के लिए फिर से डेटा की क्या जरूरत है? उन्होंने कहा कि पिछड़ेपन की धारणा उनके पक्ष में है। उन्होंने कहा था कि एससी-एसटी समुदाय लंबे समय से जातिगत भेदभाव का सामना कर रहा है और इस तथ्य के बावजूद कि इस समुदाय के कुछ लोग अच्छी स्थिति में पहुंचे हैं, जाति का कलंक उनसे जुड़ा हुआ है।
Updated on:
26 Sept 2018 04:25 pm
Published on:
26 Sept 2018 11:06 am
बड़ी खबरें
View Allविविध भारत
ट्रेंडिंग
