सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने विधायिका से कहा कि वह राजनीति से अपराधीकरण को समाप्त करने के लिए कानून बनाने पर विचार करे। शीर्ष अदालत ने कहा कि जिन लोगों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले लंबित हैं, विधायिका में उनके प्रवेश और कानून बनाने में उनकी भागीदारी को रोकने के लिए कानून बनाने की जरूरत है। अपने आदेश में पीठ ने इस बात पर जोर दिया है कि नागरिकों को अपने उम्मीदवारों का रिकॉर्ड जानने का पूरा अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सभी राजनीतिक दलों से कहा है कि वो पार्टी की वेबसाइट पर दागी नेताओं के बारे में सभी आपराधिक रिकॉर्ड्स अपलोड करें। पार्टी की वेबसाइट पर इसे डालना कोर्ट ने अनिवार्य बताया है। कोर्ट के इस आदेश से तय हो गया है कि भले ही नेताओं के चुनाव लगाने पर शीर्ष अदालत ने रोक नहीं लगाई है, लेकिन पब्लिक डोमेन में ये जानकारियां सभी राजनीतिक पार्टियों की वेबसाइट पर उपलब्ध होंगी।
भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई पांच जजों की पीठ कर रही थी। इस पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आरएफ नरिमन, जस्टिस एम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल थीं। अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अपनी दलील में कहा था कि ज्यादातर मामलों में आरोपी नेता बरी हो जाते हैं। इसलिए सदस्यता रद्द करने जैसा कोई आदेश न दिया जाए। इसके बाद कोर्ट ने इस मुद्दे पर अहम फैसला आज सुना दिया है।
भाजपा नेता अश्चिवनी उपाध्याय ने इस याचिका के जरिए मांग की थी कि अगर किसी व्यक्ति को गंभीर अपराधों में पांच साल से ज्यादा सजा हो और किसी के खिलाफ आरोप तय हो जाएं तो ऐसे व्यक्ति या नेता के चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए। इसके अलावा याचिका में ये मांग भी की गई है कि अगर किसी सासंद या विधायक पर आरोप तय हो जाते हैं तो उनकी सदस्यता रद्द होनी चाहिए।