
अमरीकी महिला ने शादी के लिए स्वामीजी को किया प्रपोज
एक बार जब स्वामी विवेकानंद अमरीका गए थे, एक महिला ने उनसे शादी करने की इच्छा जताई। जब स्वामी विवेकानंद ने उस महिला से ये पूछा कि आप ने ऐसा प्रश्न क्यो किया?
महिला का उत्तर था कि वो उनकी बुद्धि से बहुत मोहित है और उसे एक ऐसे ही बुद्धिमान बच्चे की कामना है, इसीलिए उसने स्वामी से ये प्रश्न कि क्या वो उससे शादी कर सकते हैं और उसे अपने जैसा एक बच्चा दे सकते हैं?
उन्होंने महिला से कहा कि क्योंकि वो सिर्फ उनकी बुद्धि पर मोहित हैं, इसलिए कोई समस्या नहीं है। उन्होंने कहा, मैं आपकी इच्छा को समझता हूं। शादी करना और इस दुनिया में एक बच्चा लाना और फिर जानना कि वो बुद्धिमान है कि नहीं, इसमें बहुत समय लगेगा। इसके अलावा ऐसा हो इसकी गारंटी भी नहीं है। इसके बजाय, आपकी इच्छा को तुरंत पूरा करने हेतु मैं आपको एक सुझाव दे सकता हूंू। मुझे अपने बच्चे के रूप में स्वीकार कर लें। इस प्रकार आप मेरी माँ बन जाएंगी और इस प्रकार मेरे जैसे बुद्धिमान बच्चा पाने की आपकी इच्छा भी पूर्ण हो जाएगी।
जब स्वामीजी ने राजा को बताया क्यों करते हैं हम मूर्ति पूजा
स्वामी विवेकानंद को एक राजा ने अपने भवन में बुलाया और कहा कि तुम हिन्दू लोग मूर्ती की पूजा करते हो! मिट्टी, पीतल, पत्थर की मूर्ती का! मैं ये सब नही मानता। ये तो केवल एक पदार्थ है। उस राजा के सिंहासन के पीछे किसी आदमी की तस्वीर लगी थी। विवेकानंद जी कि नजर उस तस्वीर पर पड़ी। विवेकानंद जी ने राजा से पूछा राजा जी, ये तस्वीर किसकी है?
राजा बोला, मेरे पिताजी की।
स्वामी जी बोले कि उस तस्वीर को अपने हाथ में लीजिए।
जब राजा ने तस्वीर हाथ में ली तो स्वामी ने राजा से कहा, अब आप उस पर थूको!
राजा बोला, आप यह क्या बोल रहे हैं?
स्वामी जी ने कहा, उस तस्वीर पर थूकिए!
राजा गुस्से से लाल पीला हो गया बोला, स्वामी जी, आप होश मे तो हैं ना? मैं ये काम नहीं कर सकता।
स्वामी जी बोले क्यों? ये तस्वीर तो केवल एक कागज का टुकड़ा है, और जिस पर कूछ रंग लगा है। इसमे ना तो जान है, ना आवाज, ना तो ये सुन सकता है, और ना ही कूछ बोल सकता है। इसमें ना ही हड्डी है और ना प्राण। फिर भी आप इस पर कभी थूक नहीं सकते। क्योंकि आप इसमे अपने पिता का स्वरूप देखते हो। आप इस तस्वीर का अनादर करना अपने पिता का अनादर करना ही समझते हो।
वैसे ही, हम हिंदू भी उन पत्थर, मिट्टी, या धातु की पूजा भगवान का स्वरूप मान कर करते हैं। भगवान तो कण-कण में है, पर एकआधार मानने के लिए और मन को एकाग्र करने के लिए हम मूर्ती पूजा करते हैं। तब राजा ने स्वामी जी के चरणों में गिर कर क्षमा मांगी।
माँ की महिमा
स्वामी विवेकानंद जी से एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया," माँ की महिमा संसार में किस कारण से गायी जाती है?
स्वामी जी मुस्कराए, उस व्यक्ति से बोले, पांच सेर वजन का एक पत्थर ले आओ । जब व्यक्ति पत्थर ले आया तो स्वामी जी ने उससे कहा, अब इस पत्थर को किसी कपड़े में लपेटकर अपने पेट पर बांध लो और चौबीस घंटे बाद मेरे पास आओ तो मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा।
स्वामी जी के आदेशानुसार उस व्यक्ति ने पत्थर को अपने पेट पर बांध लिया और चला गया । पत्थर बंधे हुए दिनभर वो अपना काम करता रहा, किन्तु हर पल उसे परेशानी और थकान महसूस हुई । शाम होते-होते पत्थर का बोझ संभाले हुए चलना फिरना उसके लिए *****ह्य हो उठा । थका हुआ वह स्वामी जी के पास पंहुचा और बोला कि मंै इस पत्थर को अब और अधिक देर तक बांधे नहीं रख सकूंगा। एक प्रश्न का उत्तर पाने क लिए मै इतनी कड़ी सजा नहीं भुगत सकता।
स्वामी जी मुस्कुराते हुए बोले कि पेट पर इस पत्थर का बोझ तुमसे कुछ घंटे भी नहीं उठाया गया। माँ अपने गर्भ में पलने वाले शिशु को पूरे नौ माह तक ढ़ोती है और गृहस्थी का सारा काम करती है । संसार में मां के सिवा कोई इतना धैर्यवान और सहनशील नहीं है, इसलिए माँ से बढ़ कर इस संसार में कोई और नहीं।
Published on:
11 Sept 2017 12:05 pm
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