
71 years 71-stories
'मेरे पति जिनका कुछ साल पहले ही देहांत हुआ है उन्होंने कभी जानबूझकर घर नहीं बनाया कहते थे... एक दिन हम गांव चले जाएंगे.. वहीं रहने.. तो हमें यहां घर की क्या जरूरत है।' यह पीड़ा है अख्तारी बेगम की। वे उन लोगों में शामिल हैं। जिन्हें रातोरात अपना घर, अपना देश हिंदुस्तान छोड़ कर पाकिस्तान जाना पड़ा, अख्तारी बेगम कहती है कि 'वह दिन मेरी जिंदगी के सबसे काले दिन थे। मैं अपने परिवार के साथ पाकिस्तान जा रही थी। तभी अचानक हम पर हमला हुआ। तभी एक हिंदू परिवार हमे बचाने कूद पड़ा। वह किसी तरह लड़ते हुए हमें भगाकर एक सुरक्षित जगह ले गए । इस बटवारें से पहले मैं और मेरा परिवार उत्तर भारत में रहता था। वहां हमारे दोनों पड़ोसी हिंदू थे। मैं उन दिनों स्कूल में थी। आज मेरी उम्र 88 साल है। मैं बेशक चल न पाती हूं लेकिन मेरी आज भी चाहत है कि मैं अपने देश वापिस आ जाऊं। आज मेरा सिर्फ एक ही सपना है कि दोनों देश वापिस से एक हो जाए। इतने गहरे दोस्त बनें की कोई अलग न कर पाए। मैं चाहती हूं कि दोनों देश शांति से रहे।'
-अख्तारी बेगम
एक रात में सब बदल गया था
बात 14 अगस्त 1947 की रात की है। जब मुसलमानों की टुकड़ियां अपने कंधे पर देश का एक नया झंड़ा ओड़े पाकिस्तान की ओर बढ़ रहे थे। वह समय कुछ लोगों के खुशियों भरा था। तो कुछ लोगों पर पहाड़ टूट पड़ा था। मैं एक हिंदू परिवार से हूं और हमारा पूरा परिवार के साथ उस रात जान बचाने के लिए हिंदुस्तान की ओर भाग रहा था। जहां हमारा परिवार रहता था अब वह पश्चिम पाकिस्तान बन चुका था। हमारी रक्षा एक क्रिश्चियन नौकर रहा था। मुझे आज भी याद है कि हमारा गांव एक परिवार की तरह था। सब लोग मिलकर जुलकर एक साथ रहते थे।
मेरे सामने हुए उन सभी घटनाओं को बयां नहीं कर सकता, लेकिन आज भी मुझे वह कराह देती हैं। आज मैं 81 साल का हूं। तब मेरी उम्र 12 साल के आसपास थी। हम सीमा पर भारत के लोगों के बने रिफ्यूजी कैंप में आ गए थे। अपना घर छोड़ कर एक ऐसी जगह आना जहां आपको कोई नहीं जानता हो वाकई पीड़ादायक होता है। मुझे याद है कि हम बटवारे की उस रात को भुला ही नहीं पा रहे थे। मैंने और मेरे तीनों भाइयों ने खुद को पढ़ाई में झोंक लिया। ताकी हम उस चीज से कुछ उबर पाएं। मेरे भाई स्कॉलरशिप के तहत कनाडा चले गए। 1973 में जब वह वापस आए तो देश उस समय सामाजिक अशांति और अत्यधिक गरीबी से जूझ रहा था। लेकिन भारत ने जिस तरह पिछले दशक में तरक्की की है। वह काफी सराहनीय है। मैं अभी भी कभी कभार अपने पुराने घर जाता हूं। मेरी पत्नी मुझे आज भी सांत्वना देती है।
-सोहिंदर नाथ चोपड़ा
मैं आज भी अकेले नहीं सोती.. क्योंकि मेरे जहन में 1947 के दंगे आज भी जिंदा है
मैं 10 साल की थी जब मेरे सामने हिंदूओं की भीड़ ने उनके मुस्लिम पिता, दादा और 6 अंकलों को मार दिया था। हम कश्मीर के उधमपुर में रहते थे। हमारे घर और हमारा जीवन सब तबाह हो चुका था। घर परिवार सब कुछ चले जाने के बाद हम भिखारियों की तरह सड़कों पर फिर रहे थे। मैं अपनी मां और चार भाइयों के साथ अपनी जान बचाकर भागी। हम एक मुस्लिम मौहल्ले में रहते थे। मन बहुत दुखी होता है जब मैं दोनों देशों को उस जगह के लिए लड़ता हुआ देखती हूं। जहां हम रहते थे। आज कुछ हिस्सा भारत के पास है, तो कुछ पाकिस्तान के पास और कुछ हिस्सा तो चीन ने भी हथिया लिया है। बंटवारे से पहले कश्मीर के टुकड़े नहीं हुए थे। लेकिन बंटवारे में सब कुछ छीन लिया। उन दिनों 100 में से 10 मुसलमानों को मार दिया गया था। वहीं काफी मुसलमानों को पाकिस्तान भागना पड़ा था। मैं अध्यापिका रह चुकी हूं। अभी हाल में मेरे पति का देहांत हुआ है। मैं आज भी अकेली नहीं सो सकती। जब मैं अकेले सोने की कोशिश करती हूं मुझे 1947 के वह दंगे याद आ जाते हैं। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगता है।
-शमसुल निसा
Updated on:
13 Aug 2017 11:38 am
Published on:
13 Aug 2017 11:20 am
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