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सुप्रीम कोर्टः तलाक नहीं हुआ हो तो महिला मांग सकती है स्त्रीधन

स्त्रीधन एेसी चल-अचल संपत्ति होती है जो किसी महिला को उसकी शादी से पहले या शादी के वक्त या बच्चे के जन्म के वक्त दी जाती है

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siddharth tripathi

Nov 22, 2015

Supreme Court

Supreme Court

नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट ने स्त्रीधन पर स्पष्ट रूप से महिला के अधिकार को परिभाषित किया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि यदि तलाक नहीं हुआ हो तो कोई भी महिला अपने पति और उसके परिवार के सदस्य से अपना स्त्रीधन वापस मांग सकती है। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति प्रफुल्ल सी पंत की अध्यक्षता वाली पीठ ने न्यायिक अलगाव और तलाक के आदेश के बीच फर्क करते हुए कहा कि यदि महिला तलाकशुदा नहीं है तो उसे अपने संरक्षकों से उसे वापस मांगने का अधिकार है जिसमें उससे अलग रह रहे पति और उसके परिजन शामिल हैं।


स्त्रीधन एेसी चल या अचल संपत्ति होती है जो किसी महिला को उसकी शादी से पहले या शादी के वक्त या बच्चे के जन्म के वक्त दी जाती है। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि हमें देखना है कि पति या किसी अन्य परिजन द्वारा स्त्रीधन रखे रहना अपराध है या नहीं। इसमें कोई विवाद नहीं हो सकता कि पत्नी स्त्रीधन वापस पाने के लिए मुकदमा दायर कर सकती है।


न्यायालय ने कहा कि हमारा विचार है कि जब तक पीड़ित की स्थिति बनी रहती है और स्त्रीधन पति के पास रहता है, पत्नी घरेलू हिंसा कानून से महिला का संरक्षण कानून, 2005 की धारा 12 के तहत हमेशा अपना दावा पेश कर सकती है। न्यायालय ने कहा कि स्त्रीधन से वंचित किए जाने की तारीख से अपराध की संकल्पना प्रभावी होगी, क्योंकि न तो पति को और न उसके परिजन का स्त्रीधन पर कोई अधिकार है और न ही वे इसे रख सकते हैं।


एक महिला की अर्जी पर निर्णय लेते हुए उच्चतम न्यायालय ने एक सुनवाई अदालत और त्रिपुरा उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि अपने पति से अलगाव के बाद कोई महिला अपने स्त्रीधन पर दावा नहीं कर सकती और पति एवं ससुराल के लोगों के खिलाफ संपत्ति न सौंपने के लिए आपराधिक कार्यवाही नहीं चलाई जा सकती। पीठ ने कहा कि घरेलू हिंसा से महिला का संरक्षण कानून का मकसद महिलाओं की मदद करना है और अदालतों को एेसी शिकायतों के प्रति संवेदनशील रवैया अपनाना चाहिए।

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