
Study reveals the reason behind maximum deaths due to Coronavirus
नई दिल्ली। कोरोना वायरस महामारी के बीच हुई भारी संख्या में मौतों ( Deaths From Coronavirus ) के पीछे एक ऐसी वजह है, जो ज्यादातर लोगों में एक समान रही। शुक्रवार को प्रकाशित हुए एक वैश्विक अध्ययन में इस बात का खुलासा किया गया है। शोध में बताया गया है कि विश्व में लगातार बढ़ती पुरानी बीमारियों और इससे जुड़े जोखिम जैसे मोटापा, हाई ब्लड शुगर और पिछले 30 वर्षों में वायु प्रदूषण ने कोविड-19 से भारत और अन्य जगहों पर होने वाली मौतों को बेहद तेजी से बढ़ावा दिया है।
द लैंसेट में प्रकाशित ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी के ताजा निष्कर्ष इस बात पर नई जानकारी प्रदान करते हैं कि कोविड-19 महामारी के लिए बुनियादी स्वास्थ्य के मामले में दुनियाभर के देश कितनी अच्छी तरह तैयार थे और नई महामारी के खतरों से बचाव के लिए चुनौती का पैमाना कैसे तय किया।
देश में बढ़ी औसत आयु
भारत को लेकर इस अध्ययन के प्रमुख निष्कर्षों में एक बात यह भी सामने आई है कि अब देश में औसत आयु ( असल में life expectancy है) में एक दशक की बढ़ोतरी हो गई है। जहां 1990 में औसत आयु 59.6 साल थी, 2019 में यह बढ़कर 70.8 साल हो गई है। हालांकि देश के अलग-अलग राज्यों में औसत आयु के बीच व्यापक असमानताएं हैं। जहां केरल में यह 77.3 साल है, उत्तर प्रदेश में यह 66.3 साल है।
स्वस्थ्य औसत आयु में कोई बेहतरी नहीं
वहीं, शोध के मुताबिक भारत में स्वस्थ औसत आयु (यानी बीमारी के बिना जीवन) में इस तरह की अप्रत्याशित बढ़ोतरी देखने को नहीं मिली है और वर्ष 2019 में यह 60.5 साल थी। इसके चलते लोग बीमारी और विकलांगता के साथ ज्यादा वर्षों तक जीवन जी रहे हैं।
जान के जोखिम भरे पांच कारक
भारत में पिछले 30 वर्षों में स्वास्थ्य हानि को बढ़ाने में सबसे बड़ा योगदान इस्कीमिक हृदय रोग, पुरानी प्रतिरोधी फेफड़े की बीमारी, मधुमेह, स्ट्रोक और मस्कुलोस्केलेटल विकारों का रहा है। अध्ययन के मुताबिक, "वर्ष 2019 में भारत में मौत के लिए शीर्ष 5 जोखिम कारकों में वायु प्रदूषण (अनुमानित 16.7 लाख मौतें), उच्च रक्तचाप (14.7 लाख), तंबाकू का उपयोग (12.3 लाख), खराब आहार (11.8 लाख) और हाई ब्लड शुगर (11.2 लाख) शामिल हैं।"
कुपोषण बड़ा कारण
शोध की मानें तो, "1990 के बाद से भारत ने स्वास्थ्य के परिदृश्य में काफी बेहतर काम किया है, लेकिन भारत में बीमारी और मृत्यु के लिए बाल और मातृ कुपोषण अभी भी नंबर-एक जोखिम कारक हैं। उत्तरी भारत के कई राज्यों (बिहार और उत्तर प्रदेश) में इनका योगदान कुल बीमारी के भार का 20 फीसदी से ज्यादा है। उच्च रक्तचाप तीसरा प्रमुख जोखिम कारक (वायु प्रदूषण के बाद) है, जो भारत के आठ राज्यों मुख्य रूप से दक्षिण में, सभी स्वास्थ्य हानि के 10-20 फीसदी के लिए जिम्मेदार है।"
रोका जा सकता है जोखिम
शोध का नेतृत्व करने वाले वाशिंगटन विश्वविद्यालय के क्रिस्टोफर मरे कहते हैं, "इन जोखिम कारकों में से अधिकांश रोके जा सकने योग्य और इलाज योग्य हैं और इनसे निपटने से भारी सामाजिक और आर्थिक लाभ होंगे। हम अस्वास्थ्यकर व्यवहारों को बदलने में विफल हो रहे हैं, विशेष रूप से आहार की गुणवत्ता, कैलोरी सेवन और शारीरिक गतिविधि से संबंधित, जो कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और व्यवहार संबंधी अनुसंधान के लिए अपर्याप्त नीतिगत ध्यान और वित्त पोषण के कारण हैं।"
सामाजिक असमानताएं भी कारण
द लैंसेट के प्रधान संपादक रिचर्ड होर्टन कहते हैं, "जिस खतरे का सामना करना पड़ रहा है उसकी सिनडेमिक (कई महामारी मिलने की स्थिति) प्रकृति यह है कि हम न केवल हर कष्ट का इलाज करें, बल्कि इन्हें आकार देने वाली मौजूदा सामाजिक असमानताओं- गरीबी, आवास, शिक्षा आदि को भी ठीक करें, जो सेहत बिगाड़ने के सबसे खतरनाक निर्धारक हैं।"
गैर-संचारी रोगों की भूमिका
वह कहते हैं, "कोविड-19 पुरानी स्वास्थ्य आपात स्थिति पर और विकट है। और हमारे भविष्य के संकट में वर्तमान संकट की गंभीरता को नजरअंदाज किया जा रहा है। गैर-संचारी रोगों ने आज तक कोविड-19 से हुई 10 लाख से अधिक मौतों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और महामारी के बाद भी इसका हर देश में स्वास्थ्य को आकार देना जारी रहेगा।"
Updated on:
16 Oct 2020 09:13 pm
Published on:
16 Oct 2020 09:02 pm
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