
प्रगतिशील युवाओं को जाति व सामुदायिक बंधनों को मानने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लाइफ पार्टनर चुनने के मामले में युवा लड़के और लड़कियां जाति-सम्मान या सामुदायिक सोच के आगे नहीं झुक सकते। एक मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस संजय किशन कौल और हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने कहा कि शिक्षित युवा लड़के और लड़कियां आज समाज के उन मानदंडों से इतर होकर अपने लिए लाइफ पार्टनर चुन रहे हैं, जो उनका अधिकार है।
परिवार और जाति की सहमति बाध्यकारी नहीं
शीर्ष अदालत ने इस मामले में साफ कर दिया है कि लाइफ पार्टनर चुनने के मामले में उन्हें जाति, परिवार और समाज के लोगों से सहमति लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
पुलिस से मिली थी धमकी
दरअसल, कुछ समय पहले कर्नाटक में एक व्यक्ति ने थाने में अपनी बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। उस लड़की ने अपने पिता को सूचित किए बगैर अपनी मर्जी से उत्तर भारत में रहने वाले एक व्यक्ति से शादी कर ली। इस मामले में पुलिस द्वारा लड़के को पुलिस द्वारा गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दिए जाने के बाद दंपति ने सुप्रीम कोर्ट में इस बाबत गुहार लगाई थी।
अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति की पसंद गरिमा का एक अटूट हिस्सा है और गरिमा के लिए यह नहीं सोचा जा सकता है कि पसंद का क्षरण कहां है। बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 21 में एक वयस्क व्यक्ति को अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार है।
Updated on:
12 Feb 2021 03:34 pm
Published on:
12 Feb 2021 03:27 pm
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