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देशद्रोह कानून को सुप्रीम कोर्ट ने बताया अंग्रेजों का कानून, पूछा- क्या देश को अब भी इसकी जरूरत है?

भारतीय दंड संहिता के तहत देशद्रोह कानून (124A) को चुनौती देने वाली अपील पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई।

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Sunil Sharma

Jul 15, 2021

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने देशद्रोह कानून को रद्द करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि यह औपनिवेशिक (अंग्रेजों द्वारा विद्रोहियों को कुचलने के लिए बनाया गया) कानून है और इसकी जांच की जाएगी कि क्या यह कानून आजादी के 75 वर्ष बाद भी जरूरी है। कोर्ट ने कहा कि संविधान की इस धारा को जांचा जाएगा और इस पर केन्द्र सरकार से जवाब मांगा जाएगा।

कोर्ट ने यह भी कहा कि देशद्रोह कानून को रद्द करने को लेकर कई अन्य याचिकाएं भी दाखिल की गई हैं। उन सबकी सुनवाई एक साथ ही की जाएगी। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हम देखेंगे कि किसी कानून को दुरुपयोग न हो तथा जिम्मेदारी से कानून का पालन किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट में धारा 124ए (देशद्रोह) को दी गई थी चुनौती
मैसूर के मेजर जनरल एस.जी. वोम्बटकेरे द्वारा दायर की गई इस अपील में आईपीसी की धारा 124ए (देशद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए इसे संविधान के अनुच्छेद 19(1) (ए) के तहत भारतीय नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया है।

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अपीलकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (देशद्रोह) द्वारा लगाया गया प्रतिबंध अनुचित है तथा संविधान के अनुच्छेद 19(2) में दिए गए एक मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। अत: कोर्ट से प्रार्थना की जाती है कि वह धारा 124ए को असंवैधानिक और शून्य घोषित कर इसे भारतीय दंड संहिता से बाहर करने का आदेश जारी करें।

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सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार कर लिया है तथा आज इस पर कोर्ट में बहस और सुनवाई होगी। याचिका की सुनवाई जस्टिस एन.वी रमना, जस्टिस ए.एस. बोपन्ना तथा जस्टिस ह्रषिकेश रॉय की पीठ करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने 30 अप्रैल को याचिका पर अटॉर्नी जनरल (एजी) को नोटिस जारी करते हुए जवाब देने के लिए कहा था। इस पर कोर्ट में केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि वेणुगोपाल तथा सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब के लिए दो सप्ताह का समय देने की प्रार्थना की थी जिस पर अदालत ने उन्हें समय देते हुए मामले की अगली सुनवाई 27 जुलाई तक के लिए टाल दी।

इसी मामले पर सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य पीठ ने भी 12 जुलाई आईपीसी की धारा 124ए के तहत देशद्रोह के अपराध की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर केन्द्र सरकार और महान्यायवादी से अपना पक्ष रखने के लिए कहा था।