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कोरोना से पुरी की रथ यात्रा पर लगा ब्रेक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा ‘अनुमति देने पर भगवान उन्हें नहीं करेंगे माफ’

Puri Jagannath Rath Yatra 2020 : 23 जून से पुरी में शुरू होने वाली थी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा, कोरोना संक्रमण की वजह से लगाई गई रोक सुप्रीम कोर्ट में एक एनजीओ की ओर से रथ यात्रा को इस साल स्थगित करने के लिए दायर की गई थी याचिका

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Soma Roy

Jun 18, 2020

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Puri Jagannath Rath Yatra 2020

नई दिल्ली। कोरोना महामारी (Coronavirus Pandemic) की वजह से महज देश की अर्थव्यवस्था ही नहीं चरमराई है। बल्कि इसका असर तीज-त्योहारों और उत्सवों पर भी पड़ रहा है। चैत्र नवरात्रि और ईद की चमक फीकी करने के बाद अब कोरोना की मार जगन्नाथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) पर भी पड़ी है। सुप्रीम कोर्ट ने पुरी में आयोजित होने वाली मशहूर रथ यात्रा को लेकर फैसला सुनाया है। जिसमें इस साल पुरी में आयोजित होने वाले भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा पर रोक लगा दी है। कोर्ट (Supreme Court) का कहना है कि ऐसे समय में लाखों लोगों की भीड़ को एक स्थान पर नहीं जुटने दिया जा सकता है।

मालम हो कि इस सिलसिले में पहले केंद्र सरकार को फैसला लेना था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी इसी की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आज फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे ने कहा कि ये एक गंभीर मामला है। अगर वो इसके लिए अनुमति देते हैं को भगवान उन्हें कभी माफ नहीं करेंगे। मालूम हो कि रथ यात्रा 23 जून से शुरू होनी थी। यह उत्सव अगले 20 दिनों तक जारी रहता।

रथयात्रा पर रोक लगाने की मांग ओडिशा विकास परिषद नामक एनजीओ की ओर से दायर किया गया था। याचिकाकर्ता का कहना था कि इस रथयात्रा में दस लाख लोग इकट्ठा होते हैं। उत्सव में जुटने वाली भीड़ से कोरोना संक्रमण फैलने का ख़तरा बहुत ज़्यादा है। अगर दीपावली पर पटाखे जलाने पर रोक लगा सकता है तो रथयात्रा पर रोक क्यों नहीं लगाई जा सकती? इसी याचिका पर सुनवाई में कोर्ट ने कहा, 'महामारी के समय ऐसी सभाएं नहीं हो सकती हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य और नागरिकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस साल रथ यात्रा की अनुमति नहीं दी जा सकती है। हालांकि इस मामले में मंदिर प्रशासन पहले बिना भक्तों के रक्ष यात्रा निकालने पर विचार कर रहे थे। धारा-144 के तहत मंदिर समिति ने रथ खींचने के लिए कई विकल्पों को पेश किया। इसमें पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में हाथियों से रथ को गुंडिचा मंदिर तक ले जाने की बात कही जा रही थी।