
नई दिल्ली।
देश में प्राकृतिक आपदाओं के दौरान ट्रांसमिशन लाइन टॉवरों के गिरने के तुरंत बाद आपातकालीन रिट्रीवल सिस्टम (ईआरएस) से बिजली बहाल की जा सकेगी। इससे चक्रवात, भूकंप या मानव निर्मित व्यवधानों के दौरान मुश्किल में फंसे लोगों को तत्काल राहत पहुचाई जा सकेगी।
आत्मनिर्भर भारत के तहत चेन्नई स्थित सीएसआइआर-एसईआरसी के वैज्ञानिकों की बड़ी खोज है। अभी तक इस सिस्टम को विदेशों से महंगे दामों पर खरीदा जाता था। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) की चेन्नई स्थित घटक प्रयोगशाला स्ट्र चरल इंजीनियरिंग रिसर्च सेंटर (एसईआरसी) की इस तकनीक से 40 फीसदी तक लागत कम हो सकेगी। एसईआरसी ने अहमदाबाद की अद्वैत इंफ्राटेक से व्यापारिक उत्पादन के लिए समझौते पर हस्ताक्षर भी कर लिए है।
देश में पहली बार निर्मित अभी ईआरएस सिस्टम बड़ी लागत में आयात होते हैं। तकनीकी विकास पहली बार भारत में विनिर्माण को सक्षम करेगा, आयात का विकल्प उपल ध कराएगा और उत्पादन लागत भी घटेगी। इसकी सार्क और अफ्रीकी देशों में भी बड़ी मांग है।
क्या है ईआरएस
ईआरएस एक हल्का मॉड्यूलर सिस्टम है जिसका इस्तेमाल आपदाओं के बाद गिरे बिजली के टॉवरों की जगह 2-3 दिनों तक अस्थाई रूप से विद्युत बहाली के लिए किया जाता है। स्वदेशी ईआरएस सिस्टम आपदा में आम लोगों को भी बचाएगा।
ईआरएस की विशेषताएं
Published on:
19 Nov 2020 11:28 am
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