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ये है टाडा कानून, संजय दत्त को भी हो चुकी है सजा

टाडा कानून 21 जुलाई, 1990 को बना था और उसी दिन यह अरुण गवली पर लगा दिया गया। इसकी अवधि को 1987 और 1993 में बढ़ाया गया। 1994 तक टाडा में 76166 लोग गिरफ्तार किए गए और केवल 4%  ही अपराधी साबित हुए। टाडा 1995 में ख़त्म हो गया। 

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NICS Team

Jun 16, 2017

Abu salem-Convicted in TADA

Abu salem-Convicted in TADA

नई दिल्ली: TADA - (टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज) एक्ट नाम का यह कानून 1985 से 1995 के बीच लागू था। पंजाब में बढ़ते आतंकवाद के चलते सुरक्षाबलों को विशेषाधिकार देने के लिए यह कानून लाया गया था।

कब और क्यों बना टाडा कानून
इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है कि टाडा सबसे पहला कानून था जिसे विशेष रूप से आतंकी गतिविधियों के प्रतिरोध के लिए लागू किया गया था। इस कानून को पंजाब में खालिस्तान के अलगाववादी आन्दोलन की पृष्ठभूमि में लाया गया था। शुरुआत में, इसे केवल लागू किये जाने के दो वर्षों तक पंजाब और उसके सीमावर्ती राज्यों में जारी रहना था। बाद में टाडा को और अधिक कठोर और व्यापक बनाते हुए इसकी अवधि को 1987 और 1993 में बढ़ाया गया। इस कानून ने आतंकवाद से लड़ने के लिए शासनात्मक सत्ता की शक्तियों में वृद्धि की, इसने टाडा मामलों के संदिग्ध अपराधियों के मुकदमों के लिए विशेष मनोनीत न्यायालयों को बनाने के लिए प्रावधान बनाये।


ये थे टाडा कानून के मुख्य प्रावधान
टाडा में आतंकवाद की परिभाषा, संदिग्धों की गिरफ्तारी, जमानत, रिमांड इत्यादि के सम्बन्ध में विशेष प्रावधान किये गए थे। इसके दायरे में आने वाले प्रावधानों में से एक प्रावधान जांच से पहले की रिमांड अवधि को एक साल के लिए बढाया जाना था। इसकी परिधि में गिरफ्तार लोगों के लिए जमानत को मुश्किल बना दिया गया था। इस कानून के प्रावधान का महत्वपूर्ण पक्ष पुलिस के सामने इकबालिया जुर्म को जांच के दौरान साक्ष्य के तौर पर मान लिया जाना है।

गिरफ्तार होने वाले लोग
रिटायर्ड एसीपी सुरेश वालीशेट्टी के अनुसार, टाडा कानून 21 जुलाई, 1990 को बना था और उसी दिन यह अरुण गवली पर लगा दिया गया । इस तरह गवली टाडा में गिरफ्तार पहला आरोपी था। बाद में टाडा ऐक्ट 1993 के बम धमाकों के अबू सलेम सहित 123 आरोपियों पर भी लगा। इनमें से 100 उस केस में दोषी ठहराए गए। टाडा कोर्ट ने इनमें से 12 को फांसी की सजा सुनाई थी। संजय दत्त पर भी टाडा लगा था, लेकिन टाडा कोर्ट ने बाद में उसे सिर्फ आर्म्स ऐक्ट में सजा सुनाई।1994 तक इस टाडा में 76166 लोग गिरफ्तार किया जा चुके थे। केवल 4% प्रतिशत लोग ही इसमें अपराधी साबित हुए, लेकिन इस कानून के कड़े प्रावधानों के चलते कई लोग इसमें सालों साल जेल में सड़ते रहे।


इसलिए 1995 में हटाया गया टाडा कानून
इस प्रावधान को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी मगर इस कानून को संवैधानिक रूप से सही ठहराया गया। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उक्त विधि की कार्यपद्धति की समीक्षा करते हुए सुझाव दिया कि इसे रद्द कर दिया जाना चाहिए क्योंकि इसमें कठोर प्रावधान किये गए थे जिसमें गंभीर रूप से प्रमाणिक कानूनी मानकों से समझौता किया गया था। यह भी देखा गया कि इसे सांप्रदायिक और कट्टरपंथी ढंग से भी इस्तेमाल किया गया था। टाडा 1995 में ख़त्म हो गया।

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