विविध भारत

वह समुदाय जिसके लिए लाया गया सीएए, बंगाल चुनाव में फिर बना हुआ है राजनीति का केंद्र!

Highlights. - सडक़, बिजली, पानी जैसे तमाम बुनियादी मुद्दों की तरह बंगाल के चुनाव में मटुआ समुदाय अहम मुद्दे में शामिल रहा है - अनुसूचित जाति वाले मटुआ समुदाय की आबादी बंगाल में करीब 3 करोड़ है और कई सीटों पर इसका अच्छा प्रभाव है - माना जाता है कि शरणार्थी का तमगा मिलने के बाद इन्हें सीएए के जरिए देश में ही रखने के लिए भाजपा प्रयासरत रही है  

2 min read
Feb 24, 2021

नई दिल्ली।

बंगाल में मटुआ समुदाय है। पिछले कुछ चुनावों के दौरान यह रोटी-कपड़ा-मकान-सडक़-बिजली-पानी-स्वास्थ्य-शिक्षा और रोजगार की तर्ज पर चुनावी मुद्दा बनकर चर्चा में आ जाता है। पूरे चुनावों के दौरान यह राजनीति के केंद्र में आ जाता है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बंगाल में इसकी खूब चर्चा रही। अब वहां इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं और यह समुदाय एक बार फिर चर्चा में है।

2019 के लोकसभा चुनाव में बंगाल में अपने अभियान की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बोरो मां बीनापाणि देवी मंदिर से आशीर्वाद लेकर शुरू किया था। बोरो मां के परिवार पर मटुआ समुदाय का अच्छा खासा प्रभाव है। तब इसी वजह से भाजपा ने इसी परिवार के शांतनु ठाकुर को टिकट दिया और यह सही फैसला साबित हुआ था।

माना जाता है कि इस समुदाय का इतिहास करीब 200 साल पुराना है। हरिचंद ठाकुर ने इस समुदाय की स्थापना की थी। यह भी कहा जाता है कि शुरू से यह समुदाय राजनीति के केंद्र में रहा है। आजादी के बाद प्रमथ रंजन ठाकुर का नाम हो या उनकी मौत के बाद उनकी पत्नी बीणापाणि देवी का और अब उनके बेटों तथा पोतों का। यह परिवार और समुदाय बंगाल की राजनीति में हमेशा चर्चित और अहम रहे हैं।

अनुसूचित जाति से ताल्लुक, कई सीटों पर अहम रोल
मटुआ समुदाय अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखता है। बंगाल में इसकी आबादी करीब 3 करोड़ है। राज्य की 70 विधानसभा सीटों पर इसका प्रभाव माना जाता है। यही नहीं, राज्य की 42 संसदीय सीटों में से 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इनमें से 4 सीटें भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में जीती थीं। भाजपा ने वादा किया था कि पार्टी इस समुदाय के हित में नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए बनाएगी। तो अब आप समझ गए होंगे कि सीएए बनवाने में मटुआ समुदाय का कितना बड़ा रोल है।

शरणार्थी का दर्जा मिला
बंगाल में नामशूद्र समुदाय में शामिल मटुआ को बंगाल में अब भी कई जगह चांडाल नाम से पुकारा जाता है। यह पुराने दौर की परंपरा से जुड़ा शब्द है। आजादी के बाद इनकी स्थिति कापुी बेहतर हुई। विभाजन के बाद से जातीय गणित इस तरह रहे कि मटुआ समुदाय को बंगाल में शरणार्थी माना गया, जबकि इनकी आबादी इतनी अधिक रही। इस आबादी का एक बड़ा हिस्सा हिंदू समुदाय है। इसके बाद ही तमाम गणित देखते हुए सीएए की रणनीति के तहत इन्हें बचाने का काम शुरू हुआ।

एनआरसी का भूल सुधार कदम सीएए
शरणार्थी माने जाने से परेशान इस समुदाय को सीएए ने काफी राहत दी। हालांकि, भाजपा का यह अहम कदम भूल सुधार कार्यक्रम के तहत भी यहां देखा जाता है। यानी कि जब एनआरसी के तहत शरणार्थियों को हटाए जाने की बात हुई तो यह समुदाय परेशान हो गया, तब सीएए लाकर उन्हें राहत दी गई। भाजपा के लिए यह कदम इस समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है, जिसे वोट बैंक में बदलकर भाजपा भुना रही है। दूसरी ओर ममता बनर्जी इनके लिए भूमि सुधार की बात करके इन्हें अपने पक्ष में करने की कोशिश में जुटी हैं।

Published on:
24 Feb 2021 08:37 am
Also Read
View All

अगली खबर