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UP के बाद MP में भी बना ‘लव जिहाद’ कानून, अब तक एक दर्जन FIR, 35 गिरफ्तार

Published: Dec 26, 2020 04:11:55 pm

उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश- 2020 को भले ही केंद्र सरकार और अदालत ने अभी आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी है, लेकिन हरियाणा जैसे भाजपा शासित राज्यों में भी इस तरह का कानून लागू करने की कवायद तेज हो गई है।

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उत्तरप्रदेश में ‘लव जिहाद’ कानून को बने एक महीना हो चुका है। इस एक महीने में पुलिस ने अब तक लगभग एक दर्जन एफआईआर दर्ज की है तथा 35 दोषियों को गिरफ्तार कर लिया है। इनमें से इटा से आठ, सीतापुर से सात, ग्रेटर नोएडा से चार, शाहजहांपुर तथा आजमगढ़ से तीन-तीन, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, बिजनौर तथा कन्नौज से दो (प्रत्येक शहर से) तथा बरेली में एक और हरदोई में एक को गिरफ्तार किया गया है।
कानून लागू होने के अगले दिन ही दर्ज हुई पहली FIR
नए लव जिहाद कानून के अन्तर्गत पहली एफआईआर कानून लागू होने के अगले दिन बरेली में लिखाई गई थी। इसमें टीकाराम राठौड़ ने उवैश अहमद के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाते हुए लिखा था कि अहमद उसकी 20-वर्षीय बेटी को प्रेम संबंध में फांस कर धर्म परिवर्तन करवाना चाहता था। इसके बाद कई अन्य जगहों पर भी नए कानून के तहत एफआईआर दर्ज करवाई गई और पुलिस ने भी त्वरित कार्यवाही करते हुए दोषियों को गिरफ्तार कर लिया। इनमें से कुछ दोषियों को कोर्ट द्वारा रिहा भी किया जा चुका है। हालांकि पुलिस द्वारा इस प्रकार त्वरित कार्यवाही किए जाने से नए कानून पर सवाल उठने भी शुरु हो गए हैं।
ये प्रावधान रखे गए हैं यूपी के कानून में
यूपी के नए कानून में यदि यह सिद्ध हो जाता है कि धर्म परिवर्तन के लिए ही विवाह किया गया है तो दोषी को 10 वर्ष की कैद हो सकती है। कानून के तहत जबरन, लालच देकर या धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन कराने को भी गैर जमानतीय अपराध माना गया है। पुलिस बिना वारंट के भी आरोपी को गिरफ्तार कर पूछताछ कर सकती है। धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति के माता-पिता अथवा रिश्तेदार भी केस दर्ज करा सकते हैं। इस विधेयक की सबसे बड़ी बात यह है कि यदि व्यक्ति अपने पुराने धर्म में लौटता है तो उसे धर्म परिवर्तन नहीं माना जाएगा।
अन्य राज्यों में छिड़ी बहस
उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश- 2020 को भले ही केंद्र सरकार और अदालत ने अभी आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी है, लेकिन हरियाणा जैसे भाजपा शासित राज्यों में भी इस तरह का कानून लागू करने की कवायद तेज हो गई है। फिलहाल इस कानून के खिलाफ कई याचिकाएं इलाहाबाद उच्च न्यायालय और सर्वोच्च अदालत में विचाराधीन हैं।
मध्यप्रदेश ने भी लागू किया नया धर्म परिवर्तन विरोधी कानून
एक तरफ जहां विपक्ष और अन्य राजनीतिक पार्टियां इसे धर्म विशेष के अनुयायियों को परेशान करने का हथकंड़ा बता रही हैं तो वहीं दूसरी ओर कई दूसरे राज्यों में भी इसी तरह के कानून बनाए जाने की बात हो रही है। यहीं नहीं मध्यप्रदेश में तो आज इसी तरह के एक कानून मप्र धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक-2020 को केबिनेट की मंजूरी भी मिल गई है। इस विधेयक को आगामी विधानसभा के सत्र में पेश किया जाएगा।
यूपी के कानून की ही भांति मध्यप्रदेश के नए कानून में जोर-जबरदस्ती से धर्म परिवर्तन कर शादी करने वालों को अधिकतम 10 साल की सजा और एक लाख रुपये के अर्थदंड का प्रावधान किया गया है। इस कानून के मुताबिक किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रलोभन देकर, धमकाकर, धर्म परितर्वन कराने को गैर कानूनी माना गया है।
क्या खास है MP सरकार द्वारा बनाए गए कानून में
इस विधेयक में लव जिहाद जैसे शब्द का उल्लेख नहीं है। फिर भी तय किया गया है कि स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करने वाले को 60 दिन पहले जिला दंडाधिकारी को सूचना आवश्यक तौर पर देना होगी। सूचना न देने पर तीन से पांच साल की सजा और 50 हजार रुपए का जुमार्ना होगा।
राज्य के गृहमंत्री डा नरोत्तम मिश्रा ने बताया है कि कोई भी व्यक्ति दूसरे का प्रलोभन, धमकी, बल, दुष्प्रभाव, विवाह के नाम पर अथवा अन्य कपटपूर्ण तरीके से धर्म परिवर्तन का प्रयास नहीं कर सकेगा। कोई भी व्यक्ति धर्म परिवर्तन किए जाने का दुष्प्रेरण अथवा षड़यंत्र नहीं कर सकेगा। इस अधिनियम में प्रावधान किया गया है कि तय प्रावधानों का उल्लंघन कर धर्म परिवर्तन करनो पर एक साल से पांच साल की सजा और 25 हजार रुपए का अर्थदंड दिया जाएगा। वहीं महिला, नाबालिग, अनुसूचित जाति व जनजाति के धर्म परिवर्तन किए जाने पर दो साल से 10 साल तक की सजा और 50 हजार रुपए का अर्थदंड होगा। इसके साथ ही धर्म छिपाकर धर्म परिवर्तन कराने पर 50 हजार रुपये का अर्थदंड और तीन से 10 साल तक की सजा होगी। इसके साथ ही धर्म परितर्वन कराने वाली संस्था और संगठन से जुड़े लोगों के विरुद्ध कार्रवाई होगी और उसके खिलाफ व्यक्ति के समान ही कारावास और अर्थदंड का प्रावधान है।
कैबिनेट में पारित किए गए विधेयक में तय किया गया है कि दो या उससे अधिक लोगों का सामूहिक धर्म परिवर्तन कराने पर पांच से 10 साल तक की सजा और एक लाख रुपये का अर्थदंड होगा। वहीं धर्म परितर्वन केा लेकर दर्ज होने वाला अपराध संज्ञेय और गैर जमानती होगा, इस मामले की सुनवाई सत्र न्यायालय में ही हो सकेगी। विधेयक में तय किया गया है कि धर्म परिवर्तन के बाद दंपति का संतान पिता की संपत्ति का उत्तराधिकारी होगा और महिला व बच्चे को भरण पोषण का अधिकार होगा।
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