रोजगार और कारोबार में तरक्की मिलती है विश्वकर्मा पूजा बंगाली माह भाद्र के आखिरी दिन भाद्र संक्रांति को मनाया जाता है। इसे कन्या संक्रांति भी कहा जाता है। इस वर्ष कन्या संक्रांति 16 सितंबर को ही था लेकिन परंपरा के मुताबिक लोग आज ही भगवान विश्वकर्मा की पूजा मना रहे हैं। भारतीय समाज में यह मान्यता है कि विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर देशशिल्पी की पूजा-अर्चना से रोजगार और कारोबार में तरक्की मिलती है।
PM Modi का 70वां जन्मदिन आज, सोशल मीडिया पर लगा बधाइयों का तांता, राष्ट्रपति कोविंद, अमित शाह ने बताया ‘लोकप्रिय नेता’ पूजा का मुहूर्त विश्वकर्मा पूजा के समय राहुकाल का खासतौर से ध्यान रखा जाता है। गुरुवार को राहुकाल दोपहर डेढ़ बजे से तीन बजे तक है। इसलिए सुबह के समय पूजा करना सबसे बेहतर काल माना गया है। भगवान विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन के देवता हैं। वे संसार के पहले अभियंता और वास्तुकार कहे माने हैं। गुरुवार को अमृत काल दोपहर 12 बजकर 09 मिनट से दोपहर 1 बजकर 33 मिनट तक है। जबकि विजय मुहूर्त दोपहर 02 बजकर 23 मिनट से दोपहर 03 बजकर 12 मिनट तक है।
देवशिल्पी की पूजा का महत्व भारतीय समाज में यह मान्यता है कि जो भी निर्माण या सृजन कार्य होता है, उनके मूल में भगवान विश्वकर्मा विद्यमान होते हैं। उनकी पूजा अर्चना से सभी कार्य बिना बाधा के पूरे होते हैं। माना तो यहां तक जाता है कि इससे बिगड़े काम भी पूरे हो जाते हैं।
Monsoon Session : पक्ष और विपक्ष के बीच बनी सहमति, इन मुद्दों पर दोनों पक्ष बहस के लिए तैयार बता दें कि वास्तुशिल्पी विश्वकर्मा माता अंगिरसी की संतान हैं। वे शिल्पकारों और रचनाकारों के अराध्य देव हैं। सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा जी की मदद देवशिल्पी ने ही की थी। भगवान विश्वकर्मा ने स्वर्ग लोक, श्रीकृष्ण की नगरी द्वारिका, सोने की लंका, पुरी मंदिर के लिए भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्तियों, इंद्र के अस्त्र वज्र आदि का निर्माण किया था। यही वजह है कि आज दिन यंत्रों की पूजा का विशेष महत्व है। इससे न केवल रोजगार के अवसर पैदा होते हैं बल्कि कारोबार में भी वृद्धि होती है।