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क्या खत्म हो चुका है भारत-नेपाल के बीच सीमा का विवाद, दोनों देशों ने मिलकर किया 108 किमी लंबी नई सडक़ का उद्घाटन

Highlights. - नेपाल और भारत ने 108 किलोमीटर लंबे नवनिर्मित सडक़ का संयुक्त रूप से उद्घाटन किया- 108 किलोमीटर लंबी यह सडक़ भारतीय सीमा को नेपाल के कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों से जोड़ती है - पिछले साल मानसरोवर लिंक को लेकर दोनों देशों के बीच काफी तनाव उत्पन्न हो गया था

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Ashutosh Pathak

Feb 07, 2021

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नई दिल्ली।
कई दशकों तक अच्छे पड़ोसी रहे भारत और नेपाल के बीच पिछले साल सीमा विवाद को लेकर तनातनी काफी बढ़ गई थी। दोनों देशों के नेताओं के बीच तीखी बयानबाजी भी खूब हो रही थी। हालांकि, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद की मौजूदा स्थिति क्या है, मगर भारतीय सीमा लक्ष्मीपुर-बालरा पर शनिवार को जो हुआ, वह सुखद अहसास कराने और भविष्य में सकारात्मक संकेत देने के लिए बेहतर कदम कहा जा सकता है।

बता दें कि पिछले साल मानसरोवर लिंक को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव उत्पन्न हो गया था। तब भारत के सडक़ निर्माण करने पर नेपाल ने आपत्ति जताई थी। वहीं, नेपाल ने दावा किया था कि लिपुलेख और कालापानी के अलावा लिंपियाधुरा उसकी सीमा में आते हैं। यहीं नहीं, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने नेपाल का नया नक्शा भी जारी कर दिया था।

हालांकि, केपी शर्मा ओली को तब अपने ही देश के लोगों की नफरत और आलोचना का शिकार होना पड़ा था। वहीं, विपक्षी दलें ने भी आरोप लगाया था कि शर्मा भारत के साथ सीमा का विवाद छेडक़र नेपाल में भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से ध्यान भटकाना चाहते हैं।

बहरहाल, नेपाल और भारत दोनों देशों ने 108 किलोमीटर लंबे नवनिर्मित सडक़ का संयुक्त रूप से उद्घाटन किया। बता दें कि यह सडक़ भारतीय सीमा को नेपाल के कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों से जोड़ती है। भारतीय दूतावास के मुताबिक, यह सडक़ भारत के सहयोग से बनी है और देश की सीमा लक्ष्मीपुर-बालरा को नेपाल के सरलाही जिला स्थित गढ़ैया क्षेत्र को जोड़ती है। यह सडक़ बन जाने के बाद से दोनों देशों की सीमा के आरपार लोगों की आवाजाही और बढ़ेगी।

अधिकारी के अनुसार, इस सडक़ का उद्घाटन बीरगंज स्थित भारतीय महावाणिज्य दूतावास में नियुक्त भारतीय अधिकारी नीतेश कुमार और चंद्रनिगाहपुर में सडक़ विभाग के मंडलीय प्रमुख बिनोद कुमार मौवार ने संयुक्त रूप से किया। काठमांडु स्थित भारतीय दूतावास की ओर से जारी किए गए बयान के मुताबिक, भारत की 44.448 करोड़ रुपये की अनुदान सहायता का इस्तेमाल सडक़ के निर्माण के लिए किया गया था।