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चमोली में आई त्रासदी से कब लेंगे सबक, पुराने बांधों को नष्ट करने की प्रक्रिया कब होगी शुरू

Published: Feb 12, 2021 10:41:09 am

Submitted by:

Ashutosh Pathak

Highlights. – विशेषज्ञ इस बात की आशंका जता रहे हैं कि बड़े बांधों का चलन बंद हो – लघु पनबिजली परियोजनाओं पर विचार करना बेहद जरूरी हो गया है – पुराने बांधों को नष्ट करना जरूरी है, जिससे खतरों को कम किया जा सके
 

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नई दिल्ली।

क्या गत 7 फरवरी को उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने से हुई तबाही का सबक हम कभी सब सिखेंगे। क्योंकि एक बात तो तय है कि प्रकृति से छेड़छाड़ कर आप ज्यादा दिन सुखी और सफल नहीं रह सकते। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या देश में ऐसे तमाम बांध खतरे का सबब बन गए हैं।
उत्तराखंड की त्रासदी ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी है। तमाम विशेषज्ञ अपनी राय इस पर जाहिर कर रहे हैं। इसमें यह भी समने आया कि इस बात की आशंका पहले भी जताई गई थी, लेकिन किसी ने तब नहीं सुनी, मगर क्या अब इन आपत्तियों पर सुनवाई होगी। उन्हें ठीक करने की पहल की जाएगी। क्या तमाम बांध, जिनमें सैंकड़ों पुराने बांध भी शामिल हैं, को अब ठिकाने लगाया जाएगा।
असल में जब किसी हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट का खाका खींचा जाता है और उस पर काम शुरू होता है, तब ऐसे तमाम खतरों का जिक्र और उनसे बचने के उपायों के अलावा उनके अल्टरनेटिव क्या हों, इसका जिक्र भी किया जाता है, मगर ज्यादातर मामलों में कंपनियां इसकी अनदेखी करती हैं। इन खतरोंं में स्थानीय लोगों, दूसरे सामाजिक प्रभाव, वन्य स्थितियां और उन पर होने वाले प्रभाव, जैवविविधता तथा खेती के लिए उपयोग में ली जाने वाली जमीनों पर पडऩे वाले असर पर भी विचार किया जाता है, मगर अक्सर कई पहलुओं की अनदेखी होती है। यही नहीं, संबंधित परिजयोजना की उम्र कितनी होगी और इसके पूरे होने पर इसे खत्म कैसे किया जाएगा, इसका भी उल्लेख होता है।
विशेषज्ञों की मानें तो हिमालय क्षेत्र जहां गत रविवार को यह घटना हुई, वहां ऐसे कई पुराने बांध पहले से है, जिनकी उम्र पूरी हो चुकी है और उन्हें नष्ट किया जाना जरूरी है। यही नहीं, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बड़े बांध अब प्राकृतिक तौर पर खतरे के रूप में संकेत दे रहे हैं। विशेषज्ञ इस बात से इनकार नहीं करते कि बड़े बांध दुनियाभर में पर्यावरण के अनुकूल तो दूर, उससे सामंजस्य बिठाती गतिविधियों में भी शामिल नहीं होते। यही वजह है कि अब लघु पनबिजली परियोजनाओं का चलन बढ़ा है।
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