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सेना क्यों नहीं चाहती कि पुलिस और अर्धसैनिक बल पहनें उनकी जैसी यूनिफॉर्म

भारतीय सेना ( Indian Army ) के सूत्रों ने कहा कि नीतिगत दिशानिर्देशो के मुताबिक अर्धसैनिक बल ( Paramilitary Forces ) और राज्य पुलिस ( State Police ) के जवान सेना द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली यूनिफॉर्म नहीं पहन सकते।

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Indian Army Soldiers

Indian Army Soldiers

नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून ( CAA ) के खिलाफ दिल्ली स्थित जाफराबाद ( Jafrabad ) में हो रहे प्रदर्शन के दौरान दिल्ली पुलिस की एक फुटेज सामने आई है, जिसमें पुलिसकर्मियों ने भारतीय सेना ( Indian Army ) के जवानों जैसी यूनिफॉर्म पहन रखी है।

सोशल मीडिया ( Social Media ) पर शेयर किए गए इस वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि दिल्ली पुलिस के जवान, भारतीय सेना जैसी यूनिफॉर्म पहन कर जाफरादबाद मेट्रो स्टेशन पर दिख रहे हैं। इस पूरे वीडियो को देख भारतीय सेना ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वो जांच कर इस मसले पर एक्शन लेगी।

जिस पर भारतीय सेना के प्रवक्ता के ट्विटर अकाउंट से ट्वीट किया गया, 'हमारी ओर से यह स्पष्ट किया जाता है कि आंतरिक सुरक्षा के लिए भारतीय सेना की तैनाती नहीं की गई थी। अब जब सेना ने खुद इस बात की पुष्टि की हो तो फिर बवाल होना भी तय है कि पुलिस और अर्धसैनिक बल के जवानों को सेना की यूनिफॉर्म इस्तेमाल करने की अनुमति है भी या नहीं।

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भारतीय सेना के सूत्रों ने कहा कि नीतिगत दिशानिर्देश हैं, जिसके हिसाब से अर्धसैनिक और राज्य पुलिस बल के जवान सेना द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली यूनिफॉर्म ( Uniform ) नहीं पहन सकते। भारतीय सेना के सूत्रों के मुताबिक सेना की यूनिफॉर्म पहनने वाले राज्य पुलिस बलों और निजी सुरक्षा एजेंसियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

सेना ने रक्षा और गृह मामलों के मंत्रालयों को दिशानिर्देश जारी करने के लिए कहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य पुलिस बल और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) 'विघटनकारी पैटर्न' यूनिफॉर्म नहीं पहनते हैं, जिसे आमतौर पर 'लड़ाकू यूनिफॉर्म' कहा जाता है।

सेना ने क्यों जाहिर की चिंता

सेना ने पिछले कई वर्षों में बार-बार यह अनुरोध किया है कि उनके पैटर्न के हिसाब से बनाई गई यूनिफॉर्म का इस्तेमाल न किया जाए, क्योंकि अधिक से अधिक सीएपीएफ और राज्य पुलिस बल के जवानों ने दंगा-नियंत्रण ड्यूटी पर भी हमारी पैटर्न पर बनी यूनिफॉर्म पहनना शुरू कर दिया है।

CAPF ने सेना के वरिष्ठ रैंकों के रूटीन एकसमान वस्तुओं की भी नकल की है जैसे कि कॉलर टैब पर सितारे। हालांकि यूनिफॉर्म पर पैटर्न कभी-कभी सेना से थोड़ा अलग जरूर होता है। मगर सेना के मुताबिक हर आम नागरिक उनके बीच अंतर करने में असमर्थ है - और एक गलत धारणा बनाई गई है कि सेना को तैनात किया गया है।

केंद्रीय सशस्त्र पुलिस और राज्य पुलिस के जवान कानून-व्यवस्था को बहाल करने के दौरान युद्धक यूनिफॉर्म पहनना शुरू कर दिया, जो भारतीय सेना की यूनिफॉर्म से मिलती-जुलती है। यूनिफॉर्म में मामूली अंतर को ज्यादातर आम नागरिक पहचान नहीं पाते हैं और उन्हें ऐसा भ्रम होता है कि सेना को आंतरिक सुरक्षा, वीवीआईपी की सुरक्षा या चुनाव ड्यूटी में लगा दिया गया है।

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इससे सेना की छवि पर उल्टा असर पड़ेगा, क्योंकि हम एक लोकतांत्रिक देश हैं। सेना ने केंद्रीय बलों और राज्य पुलिस ( Police ) के सेना से मिलती-जुलती लड़ाकू यूनिफॉर्म ( Uniform ) पहनने के बढ़ते चलन के बारे में गृह मंत्रालय को समय-समय पर लिखते हुए सचेत भी किया है।

मंत्रालय ने भी साल 2016 में सेना से मिलती-जुलती यूनिफॉर्म नहीं बेचने के बारे में तो कहा, लेकिन इसके बावजूद भी अब तक कोई औपचारिक निर्देश जारी नहीं किए।सेना का मानना है कि बुलेट प्रूफ जैकेट धड़ के ज्यादातर हिस्से को कवर कर लेती है, इसलिए केंद्रीय बलों और पुलिस को खाकी रंग की बुलेट प्रूफ जैकेट पहननी चाहिए, सेना के रंग वाली नहीं।

नियंत्रित हो यूनिफॉर्म की बिक्री

सेना ने कहा है कि आर्मी की यूनिफॉर्म से अलग पोशाकों का इस्तेमाल नक्सल प्रभावित जंगलों तक सीमित रखा जाना चाहिए। सेना का मानना है कि खुले बाजार में सेना की यूनिफॉर्म से मिलते-जुलते पोशाकों की बिक्री पर रोक लगाई जानी चाहिए। जबकि निजी विक्रेताओं को सेना से मिलते-जुलते यूनिफॉर्म को बेचने वाले लोगों का हिसाब रखना चाहिए।