
नई दिल्ली। साल 1518 में फ्रांस के स्ट्रॉसबर्ग शहर में अचानक एक महिला ने नाचना शुरू कर दिया और इसके कई दिनों बाद भी वो महिला नाचती रही। एक सप्ताह के भीतर करीब 100 और लोगों को नाचने की तलब होने लगी। वहां के अधिकारियों को उस वक्त ये लगा कि इस बीमारी का इलाज भी नाचने से ही होता है फिर उन लोगों को एक हॉल में ले जाया गया। डांस जारी रखने में मदद करने के लिए वहां बांसुरी और ड्रम बजाने वालों की व्यवस्था की भी गई लेकिन कुछ ही दिनों के बाद कमजोर दिल वाले लोगों ने दम तोडऩा शुरू कर दिया और अगस्त 1518 के अंत तक करीब 400 लोग इस पागलपन का शिकार हो चुके थे। आखिरकार उन्हें ट्रकों में भरकर स्वास्थ्य केंद्र में ले जाना पड़ा ।
कुछ लोगों इसे कलेक्टिव हिस्टीरिया मानते थे। कुछ लोग मानते है कि उस दौरान स्ट्रॉसबर्ग कई समस्याओं से जूझ रहा था जिसके चलते वहां के लोग बहुत परेशान थे।ये नर्तक अवचेतन की अवस्था में थे क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता तो वो इतनी देर तक नहीं नाच पाते। ये अवस्था उन्हीं लोगों में होती है तो कि दिमागी तौर से काफी परेशान रहते हैं या फिर आध्यात्मिक तौर ध्यान की अवस्था में होते हैं।
कुछ लोग ऐसा भी मानते थें कि उस दौरान लोग सेन वीटो नाम के एक संत पर विश्वास करते थे जो उनके दिमाग पर काबू करने की शक्ति रखता था और उनसे ऐसे नृत्य करवा सकता था। अभिशाप का डर भी लोगों को अवचेतन में धकेलने में कामयाब हो सकता है और एक बार यह हो जाता है तो लोग दिन रात नाचते रहते हैं। हालांकि ये भी कहा जा सकता है कि ये महामारी निराशा और डर का नतीजा था। माना जाता है कि ये महामारी खत्म होने के पीछे का कारण था कि लोगों को धार्मिक मान्यताओं से विश्वास धीरे-धीरे कम होने लगा। बाद में इस शहर में काफी बदलाव लाए गए। लोगों की मानसिक स्थिति में भी परिवर्तन आया जिसके बाद लोग हर बात को वैज्ञानिक आधार पर ही मानने लगे।
Updated on:
19 Jan 2018 06:05 pm
Published on:
19 Jan 2018 05:49 pm
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