
Fire in Verkhoyansk
नई दिल्ली। प्राकृतिक संसाधनों के बेजा इस्तेमाल से ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming) का खतरा बढ़ गया है। ग्लेशियर के पिघलने के साथ जंगलों में आग लगने की घटनाएं भी बढ़ने लगी हैं। जनवरी में आस्ट्रेलिया के जंगलों (Australia Fire) में हुई तबाही को भला कौन भूल सकता है। इसी बीच दुनिया के सबसे ठंडे इलाके यानी रूस के वर्खोयान्स्क (Fire in Verkhoyansk ) कस्बे से भी एक भयंकर दृश्य देखने को मिल रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक माइनस 67 तक रहने वाला यहां का पारा अब बढ़कर 38 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। यहां की धरती तपने लगी है। इससे जंगलों (Forest Burnt) से आग की भयकर लपटें उठ रही हैं, जो कई किलोमीटर तक फैलती जा रही हैं।
ये जगह साइबेरिया (Cyberia) के पूर्वी इलाके में स्थित है। यहां का तापमान हमेशा काफी कम रहता है। एक बार तो इस इलाके का पारा लुढ़ककर माइनस 68 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। मगर इन दिनों यहां का तापमान इतना गर्म है कि जमीन से आग निकल रही है। यहां 20 जून को इतिहास का सबसे गर्म दिन रिकॉर्ड किया गया। तब पारा 38 डिग्री सेल्सियस था। इस सिलसिले में एक नक्शा जारी किया गया है। जिसमें आर्कटिक क्षेत्र में साइबेरिया समेत अन्य इलाकों की जमीन गर्म होती दिख रही है। नासा गोडार्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज के निदेशक गैविन स्मिट ने बताया कि आर्कटिक के इस क्षेत्र में तापमान का इतना बढ़ जाना खतरे की घंटी है।
गैविन स्मिट ने बताया कि पिछले 100 सालों के आंकड़ों के अनुसार इस इलाके में तापमान में औसत बढ़ोतरी 3 डिग्री सेल्सियस थी, लेकिन अचानक से इतनी गर्मी का बढ़ना भयंकर तबाही की ओर इशारा कर रहे हैं। उन्होंने मैप में गर्मी को लाल रंग से दर्शाया है। उनका कहना है कि जिन इलाकों में ज्यादा लाल रंग यानी उतनी ज्यादा गर्मी की आशंका। चढ़ते पारे की वजह से वर्खोयान्स्क के जंगलों में आग लगी गई है। ये 10.3 हजार हेक्टेयर से ज्यादा बड़े इलाके में लगी हुई है। इससे करीब 1768 क्यूबिक मीटर लार्च के पेड़ जल चुके हैं। इससे निकलने वाला धुआं पूरे आसमान में छा रहा है, जिसे अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है।
Published on:
26 Jun 2020 12:44 pm
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