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आतंकवाद पर दोहरा रवैया अपना रहा है संयुक्त राष्ट्र, सुरक्षा परिषद की कोई जवाबदेही नहीं: भारत

locationनई दिल्लीPublished: Nov 12, 2018 08:12:24 am

भारत ने आतंकवाद के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र को आईना दिखाते हुए कहा है कि संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध समितियों मे जवाबदेही का अभाव है

syed akbaruddin

आतंकवाद पर दोहरा रवैया अपना रहा है संयक्त राष्ट्र, सुरक्षा परिषद की कोई जवाबदेही नहीं: भारत

न्यूयार्क। भारत ने आरोप लगाया है कि संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद पर दोहरा रवैया अपना रहा है। भारत ने यह भी कहा है कि इस मुद्दे पर सुरक्षा परिषद अपनी जवाबदेही से भाग रही है। संयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधि सैयद अकबरुदद्दीन ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समितियों में कोई उत्तरदायित्व की भावना नहीं है। सैयद अकबरुद्दीन संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित एक सम्मलेन में बोल रहे थे।

भारत की दो टूक

भारत ने आतंकवाद के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र को आईना दिखाते हुए कहा है कि संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध समितियों मे जवाबदेही का अभाव है। अकबरुद्दीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद पर आरोप लगाया कि वह सुरक्षा संबंधी बड़े मुद्दों को दरकिनार करती है और उन पर कोई कड़ा कदम उठाने से बचती है। भारतीय प्रतिनिधि ने कहा कि आज की वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के मामले में सुरक्षा परिषद पर विश्वसनीयता का संकट मंडरा रहा है। भारत का यह रुख पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी सूची में डालने के उसके प्रयासों के तौर पर देखा जा रहा है।

सुरक्षा परिषद को तरीका बदलने की जरुरत

भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समितियों पर हमला करते हुए कहा कि उनके काम करने का तरीका अस्पष्ट हैं और उनमें जवाबदेही का अभाव है। बहुपक्षवाद को मजबूत करने और बदलती दुनिया में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर शुक्रवार को एक संवाद कार्यक्रम में सैयद अकबरूद्दीन ने कहा कि सुरक्षा परिषद ने अपने कामकाज की सहूलियत के लिए कई अधीनस्थ संस्थान बना रखे हैं, लेकिन इससे परिषद का काम काफी जटिल बन गया है। सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समितियों की आलोचना करते हुए सैयद अकबरूद्दीन ने कहा कि प्रतिबंध समितियां संयुक्त राष्ट्र की ओर से काम करती हैं फिर भी वो आम सदस्यों को कुछ नहीं समझतीं। अकबरूद्दीन ने बेहद कड़ी बात बोलते हुए यह कहा कि सुरक्षा परिषद विश्वसनीयता, औचित्य और प्रासंगिकता के संकट का सामना कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि परिषद की वर्तमान सदस्यता वैश्विक शक्ति के वितरण के अनुसार नहीं है और इसलिए यह दुनिया की मौजूदा जरूरत को पूरा नहीं करती है।

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