
नई दिल्ली। उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग हमेशा अपने नए फैसलों से सुर्खियों में आते रहते हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ। शनिवार को किम जोंग ने एक फैसले से सभी को चौंका दिया। किम ने सार्वजनिक तौर पर ऐलान किया है कि अब उनका देश किसी भी तरह का कोई परमाणु परीक्षण नहीं करेगा। उनके इस ऐलान से अमरीका बहुत खुश है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उनके फैसले को अच्छी खबर बताया है। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भारत के लिए यह अच्छी खबर नहीं है। शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार के क्षेत्र में से सशक्त बनाने का श्रेय सीधा-सीधा पाकिस्तान को जाता है।
उत्तर कोरिया की कामयाबी के पीछे पाकिस्तान
पाकिस्तान ने इस बात को कभी सार्वजनिक तौर पर स्वीकार नहीं किया कि वो उत्तर कोरिया का परमाणु हथियार के क्षेत्र में मदद करता है। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स में कई बार इस बात का खुलासा हो चुका है कि उत्तर कोरिया की कामयाबी के पीछे पाकिस्तान का ही हाथ है। बता दें कि साल 2017 में उत्तर कोरिया ने 20 मिसाइलों का परीक्षण किया था। तीन सितंबर को उत्तर कोरिया ने एक ऐसे हथियार का परीक्षण किया जिसे अमरीका ने हाइड्रोजन बम माना। इसके बाद 28 नवंबर को नॉर्थ कोरिया ने एक नई इंटरकॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया जिसकी रेंज 8,100 मील थी और यह आसानी से अमरीका के किसी भी शहर को निशाना बना सकती है।
2006 से शुरू हुआ परमाणु हथियारों का दौर
रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया के बीच परमाणु हथियार बनाने का सिलसिला 2006 में शुरू हुआ था। अपने पिता किम जोंग इल की मौत के बाद किम जोंग उन ने उत्तर कोरिया की जिम्मेदारी संभाली। किम का सपना था कि उनका देश परमाणु हथियार के क्षेत्र में नंबर वन देश बने। अभी नॉर्थ कोरिया के पास आधिकारिक तौर पर छह परमाणु हथियार हैं लेकिन माना जाता है इनकी संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है। इसके अलावा इसके पास अच्छी-खासी मात्रा में केमिकल और बॉयो-लॉजिकल वेपंस भी हैं। साल 2003 में नॉर्थ कोरिया ने खुद को परमाणु हथियार के लिए बनाई जरूरी नॉन-प्रॉलिफिकेशन ट्रीटी से खुद को बाहर कर लिया था। फिलहाल इस देश पर एक के बाद एक परमाणु परीक्षण करने की वजह से कई तरह के प्रतिबंध लगे हैं।
70 के दशक से उत्तर कोरिया को मदद पहुंचा रहा है पाकिस्तान
पाकिस्तान और उत्तर कोरिया के बीच इस क्षेत्र में सहयोग 70 के दशक से ही जारी था। दोनों देशों ने बैलेस्टिक मिसाइल और दूसरे परमाणु हथियारों के डेवलपमेंट से जुड़ी टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे थे। साल 1976 में तत्कालीन पाक प्रधानमंत्री जुल्लिफिकार अली भुट्टो उत्तर कोरिया की यात्रा पर गए थे। यहां से वह अमेरिका और चीन की वजह से एक अजीब सी परेशानी में फंस गए थे। इसके बाद फिर से साल 1990 से दोनों देश इस मुद्दे पर करीब आने लगे थे। 1990 के शुरुआत में बेनजीर ने उत्तर कोरिया से लंबी दूरी की मिसाइलें रोडोंग खरीदीं और इसके बदले में पाकिस्तान ने उत्तर कोरिया को असैन्य परमाणु टेक्नोलॉजी सप्लाई की। इसके अलावा उत्तर कोरिया के छात्रों के लिए पाकिस्तान ने अपनी यूनिवर्सिटीज के दरवाजे भी खोल दिए।
Published on:
21 Apr 2018 05:18 pm
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