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पृथ्वी पर आने वाला है बड़ा संकट! शोधकर्ताओं का दावा- 2067 तक आर्कटिक महासागर में खत्म हो जाएगी बर्फ

यह शोध लॉस एंजिलस स्थित कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने की है शोधकर्ताओं ने कहा कि 2044 से 2067 के बीच आर्कटिक महासागर में मौजूद बर्फ खत्म हो जाएगी

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लॉस एंजिलस। जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनिया भर के वैज्ञानिक चिंतित हैं, क्योंकि इसका असर अब दिखना शुरू हो गया है। समय से पहले बारिश होना, बाढ़ या सूखा का पड़ना, चक्रवाती तूफान का आना, समुद्र का जल स्तर बढ़ना, आर्कटिक व अंटार्कटिका में बर्फ का पिघलना आदि ऐसे कुछ संकेत हैं जो जलवायु परिवर्तन के संकेत सीधे तौर पर दे रहे हैं।

अब शोधकर्ताओं ने एक ऐसा दावा किया है, जिसको लेकर वैज्ञानिक चिंतित हैं। माना जा रहा है कि यदि शोधकर्ताओं की बात सही साबित हो गई तो दुनिया बहुत जल्द खत्म हो जाएगी।

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दरअसल, एक अध्ययन में ये बात सामने आई है कि मानव जनित जलवायु परिवर्तन के कारण 2044 से 2067 के बीच आर्कटिक महासागर में मौजूद बर्फ खत्म हो जाएगी।

बता दें कि यह शोध लॉस एंजिलस स्थित कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने की है। शोधकर्ताओं ने हालांकि यह माना है कि जब तक पृथ्वी पर मनुष्य का अस्तित्व रहेगा तब तक आर्कटिक क्षेत्र पर बर्फ रहेगी। लेकिन इसमें बदलाव होता रहेगा। सर्दियों में जहां इस बर्फ का क्षेत्रफल बढ़ेगा वहीं गर्मियों में कम होगा।

1979 से बर्फ का पिघलने का सिलसिला है जारी

शोधकर्ताओं का कहना है कि सितंबर के महीने में जब आर्कटिक महासागर में सबसे कम बर्फ होती है, उसमें लगातार गिरावट देखी जा रही है।

शोधकर्ताओं की मानें तो हर दस साल में 13 फीसद की गिरावट देखी गई है और यह सिलसिला 1979 से चल रहा है। हालांकि कई वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण कई दशकों से आर्कटिक की बर्फ पिघल रही है।

2026 में आर्कटिक मे गायब हो जाएगी बर्फ!

जलवायु परिवर्तन की गति को देखते हुए कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि 2026 तक सितंबर के महीने में आर्कटिक महासागर में बर्फ बिल्कुल खत्म हो जाएगी। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसी स्थिति 2132 तक आएगी।

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आपको बता दें कि जब महासागर में जमी बर्फ का एक टुकड़ा पूरी तरह से पिघल जाता है, जिसके कारण समुद्र का जल सीधे सूर्य के संपर्क में आता है और फिर अधिक उष्मा अवशोषित करने लगती है। जिसके कारण बाकी जगहों पर भी बर्फ तेजी से पिघलने लगता है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि सूर्य के प्रकाश की परावर्तनशीलता या एल्बेडो में परिवर्तन से स्थानीय वार्मिंग अधिक होती है, जिससे बर्फ पिघलती है। बर्फ पिघलने के कारण समुद्र का जल स्तर बढ़ता जा रहा है और आशंका जाहिर की जा रही है कि इसी गति से बर्फ पिघलता रहा तो समुद्र के किनारे बसे शहर डूब जाएंगे।

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