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Women’s Equality Day: महिला समानता दिवस का इतिहास, अमरीका में क्यों अहम है ये दिन?

Highlights न्यूजीलैंड (New Zealand) दुनिया का पहला ऐसा देश है, जिसने 1893 में महिला समानता दिवस की शुरुआत की। अमरीका (America) में '26 अगस्त', 1920 को 19वें संविधान संशोधन के माध्यम से पहली बार महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला।

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woman equality day

महिला समानता दिवस

नई दिल्ली। महिला समानता दिवस (Women's Equality Day 26 अगस्त को हर साल मनाया जाता है। न्यूजीलैंड दुनिया का पहला ऐसा देश है, जिसने 1893 में महिला समानता दिवस की शुरुआत की। इसके बाद पूरे विश्व का इस समस्या की ओर ध्यान गया। भारत में आजादी के बाद से ही महिलाओं को मतदान का अधिकार तो था। मगर पंचायतों तथा नगर निकायों में चुनाव लड़ने का कानूनी अधिकार 73 वे संविधान संशोधन के जरिए हो सका। ये प्रयास पूर्व पीएम राजीव गांधी के प्रयासों के कारण हुआ। आज के दौर में भारत की पंचायतों में महिलाओं की 50 प्रतिशत से अधिक भागीदारी है।

26 अगस्त ही क्यों

न्यूजीलैंड दुनिया का पहला देश है, जहां से 1893 में 'महिला समानता' की शुरुवात की गई। अमरीका में '26 अगस्त', 1920 को 19वें संविधान संशोधन के माध्यम से पहली बार महिलाओं को मतदान का अधिकार दिया गया। इसके तहत महिलाओं को द्वितीय श्रेणी नागरिक का दर्जा दिया था। इसके बाद महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली एक महिला वकील बेल्ला अब्ज़ुग के प्रयास से 1971 से 26 अगस्त को 'महिला समानता दिवस' मनाया जाने लगा।

अमरीका में 19 वें संशोधन संशोधन में महिलाओं के लिए प्रजनन अधिकारों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, एक राजनीतिक एजेंडे के साथ एक नई मतदान आबादी में प्रवेश किया। परिणामस्वरूप, परिवार नियोजन सेवाओं और आपूर्ति की बढ़ती उपलब्धता के साथ महिलाओं ने भी आर्थिक प्रगति का अनुभव किया और अधिक महिलाओं को उच्च शिक्षा में दाखिला लेने और व्यावसायिक व्यवसायों में प्रवेश करने की अनुमति दी।

भारत में महिलाओं की स्थिति

भारत ने महिलाओं को आजादी के बाद से ही मतदान का अधिकार पुरुषों के बराबर दिया गया। मगर वास्तविक समानता की बात करें तो देश में अभी भी महिलाओं की स्थिति चिंताजनक है। आज भी छोटे शहरों में महिलाओं की जिंदगी में समानता का आभाव है। परिवार में महिलाओं के निर्णय को अहमियत नहीं मिलती है। उन्हें भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। प्रगति और विकास के मामले में दक्षिण अफ्रीका, नेपाल, बांग्लादेश एवं श्रीलंका भले ही भारत से पीछे हों, परंतु स्त्रियों और पुरुषों के बीच सामनता को लेकर इनकी स्थिति भारत से बेहतर है। स्वतंत्रता के छह दशक बाद भी ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में महिलाओं को दोयम दर्जे का समझा जाता है।

साक्षरता महिलाएं पीछे

साक्षरता दर में महिलाएं आज भी पुरुषों से पीछे हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार महिलाओं की साक्षरता दर में 12 प्रतिशत की वृद्धि जरूर हुई है। वहीं केरल में जहाँ महिला साक्षरता दर 92 प्रतिशत है, वहीं बिहार में महिला साक्षरता दर अभी भी 53.3 प्रतिशत है।

हर कदम पर खुद को साबित किया

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इस दौर में भी लड़कियों को बोझ माना जाता है। आए दिन कन्या भ्रूणहत्या जैसे मामले सामने आते रहते हैं। हालांकि लड़कियों ने हर क्षेत्र, हर कदम पर खुद को साबित किया है। इसके बावजूद महिलाओं की स्थिति और उनके प्रति समाज के रवैये में अधिक फर्क नहीं देखने को मिला है।