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यूपी की 128 सीटों पर कुर्मी समीकरण की सियासी चाल: ‘पंकज चौधरी दांव’ से अनुप्रिया पटेल से लेकर सपा तक क्यों बढ़ी बेचैनी

UP Politics: भाजपा ने पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर यूपी की 128 विधानसभा सीटों पर कुर्मी वोटबैंक को साधने की रणनीति अपनाई है। इस सियासी चाल का असर अपना दल (एस) की ताकत, अनुप्रिया पटेल की भूमिका और सपा के पीडीए फॉर्मूले पर पड़ सकता है।

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यूपी की 128 सीटों पर कुर्मी समीकरण की सियासी चाल | Image Source - 'X' @IANS

BJP kurmi card up politics: भाजपा ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक अहम रणनीतिक चाल चलते हुए महराजगंज से सांसद पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। यह फैसला केवल संगठनात्मक बदलाव नहीं, बल्कि सीधे तौर पर ओबीसी राजनीति, खासकर कुर्मी/पटेल वोटबैंक को साधने की कोशिश माना जा रहा है। यादवों के बाद ओबीसी वर्ग में कुर्मी समाज को सबसे बड़ा और प्रभावशाली वोट समूह माना जाता है, ऐसे में भाजपा का यह दांव राज्य की राजनीति की दिशा बदलने वाला साबित हो सकता है।

कुर्मी आबादी और प्रभावशाली सीटों का गणित

देश में 1931 के बाद जाति आधारित जनगणना न होने के कारण कुर्मी समाज की आबादी के आंकड़े अनुमान पर आधारित हैं। 2001 में यूपी सरकार की हुकुम सिंह कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में कुर्मी/पटेल समाज की हिस्सेदारी करीब 7.4% मानी गई थी। 2025 में यूपी की अनुमानित आबादी करीब 25 करोड़ होने के आधार पर कुर्मी समाज की संख्या 1.75 से 2 करोड़ के बीच आंकी जाती है। यही कारण है कि प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 128 सीटों पर कुर्मी वोटर प्रभावी भूमिका निभाते हैं, जबकि 48 से 50 सीटों पर वे निर्णायक स्थिति में रहते हैं।

विधानसभा से लोकसभा तक कुर्मी प्रतिनिधित्व

वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर नजर डालें तो यूपी विधानसभा में कुर्मी समाज के कुल 40 विधायक हैं। इनमें भाजपा के 27, समाजवादी पार्टी के 12 और कांग्रेस का एक विधायक शामिल है। विधान परिषद में कुर्मी समाज के 5 सदस्य हैं। वहीं, 80 लोकसभा सीटों में 11 सांसद कुर्मी समाज से आते हैं, जिनमें सपा के 7, भाजपा के 3 और अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल शामिल हैं। यह आंकड़े बताते हैं कि सत्ता और विपक्ष, दोनों के लिए कुर्मी समाज कितना अहम है।

अपना दल (एस) की सियासी ताकत पर सीधा असर

2014 से भाजपा और अपना दल (एस) का गठबंधन यूपी की राजनीति में मजबूती से चला है। इस गठजोड़ से अपना दल (एस) को पहचान और सत्ता में हिस्सेदारी मिली, तो भाजपा को कुर्मी वोटबैंक का लाभ। फिलहाल अपना दल (एस) के पास 12 विधायक, एक एमएलसी और एक लोकसभा सांसद हैं। पार्टी की पूरी राजनीति कुर्मी/पटेल समाज के इर्द-गिर्द घूमती रही है। ऐसे में भाजपा द्वारा पंकज चौधरी को आगे बढ़ाना अपना दल (एस) की बारगेनिंग पावर को कमजोर करने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।

अनुप्रिया पटेल पर बढ़ता राजनीतिक दबाव

अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल हाल के वर्षों में कई मुद्दों पर भाजपा सरकार के फैसलों पर सवाल उठाती रही हैं। विश्लेषकों का मानना है कि पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा ने साफ संकेत दिया है कि वह कुर्मी समाज में अपना स्वतंत्र नेतृत्व खड़ा करने की स्थिति में है। इससे अनुप्रिया पटेल की राजनीतिक सौदेबाजी की ताकत सीमित हो सकती है।

भाजपा की पुरानी रणनीति और नया प्रयोग

भाजपा की रणनीति हमेशा से यह रही है कि वह किसी जाति विशेष के प्रभावशाली चेहरे को पार्टी के भीतर ही स्थापित करे। केशव प्रसाद मौर्य इसका बड़ा उदाहरण हैं, जिन्होंने कभी स्वामी प्रसाद मौर्य के प्रभाव को चुनौती दी थी। इसी तरह अब पंकज चौधरी को आगे बढ़ाकर भाजपा कुर्मी समाज में अपना मजबूत चेहरा तैयार करना चाहती है, जिससे वह सहयोगी दलों पर निर्भरता कम कर सके।

सपा के पीडीए फॉर्मूले को सीधी चुनौती

2024 के लोकसभा चुनाव में कुर्मी वोटबैंक के दम पर सपा ने कई सीटों पर भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी। सपा का पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) फॉर्मूला कुर्मी समाज में भी असरदार रहा। लेकिन भाजपा ने गैर-यादव ओबीसी नेतृत्व को मजबूत करने के इरादे से पंकज चौधरी को आगे कर सपा की इस रणनीति को सीधी चुनौती दी है।

पंचायत चुनाव बनेंगे अग्निपरीक्षा

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि पंकज चौधरी के नेतृत्व की असली परीक्षा आगामी पंचायत चुनावों में होगी। यदि इन चुनावों में कुर्मी वोटों का बड़ा हिस्सा भाजपा की ओर शिफ्ट होता है, तो यह साफ संकेत होगा कि पार्टी अपनी रणनीति में सफल हो रही है। इसके बाद भाजपा अपना दल (एस) के साथ सीटों के बंटवारे और गठबंधन की शर्तों पर ज्यादा सख्त रुख अपना सकती है।

सपा के लिए बढ़ती चिंता

विश्लेषकों के मुताबिक, किसी भी जाति में 15 से 20 फीसदी वोट फ्लोटिंग होते हैं। यदि पंकज चौधरी के नेतृत्व में भाजपा कुर्मी वोटबैंक में 40 से 50 फीसदी तक सेंध लगाने में सफल होती है, तो इसका सीधा नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा। पंचायत चुनावों के बाद सपा के कुछ बड़े कुर्मी चेहरे भी पाला बदल सकते हैं, जिससे सपा की ओबीसी रणनीति को झटका लगना तय माना जा रहा है।


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