
बड़ी खबर: जमीन घोटाले में आईएएस अफसर समेत आठ अधिकारी बिजलेंस जांच में फंसे, मुकदमा दर्ज
मुरादाबाद: सूबे में भ्रष्टाचार के खेल में छोटे ही नहीं बल्कि बड़े अफसरों की भी मिलीभगत साथ होती है। ये बात आज फिर साबित हो गयी। जी हां बिजलेंस ने जनपद के पूर्व जिलाधिकारी आई ए एस अधिकारी और पीसीएस अफसर अरुण कुमार श्रीवास्तव समेत आठ सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ सरकारी जमीन के गबन और पद के दुरपयोग के दो मामले दर्ज करवाए हैं। जिससे शासन स्तर तक हडकंप मच गया है। सीलिंग जमीन घोटाले में सिविल लाइन थाने में और जेल की जमीन घोटाले में मूंडापाण्डेय थाने में मुकदमा दर्ज करवाया गया है। पीसीएस अफसर अरुण कुमार श्रीवास्तव फ़िलहाल रिटायर्ड हो चुके हैं।
इन्होने की थी शिकायत
महानगर के अधिवक्ता दुष्यंत चौधरी ने 13 अप्रैल 2017 में तत्कालीन डीएम पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए शासन में शिकायत की थी। भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने के लिए कमिश्नर की अध्यक्षता में जांच समिति गठित हुई। तीन सदस्यीय जांच समिति ने 13097.17 वर्ग मीटर सीलिंग की जमीन छोडऩे के मामले में डीएम, एडीएम सिटी के साथ आठ को आरोपी बनाया। शासन ने इस जांच रिपोर्ट के आधार विजिलेंस को दोबारा जांच करने के निर्देश दिए थे। 12 जुलाई 2017 को बरेली विजिलेंस विभाग के अफसरों ने जांच शुरू की। दो साल की लंबी जांच के बाद इन सभी आरोपितों के खिलाफ शासन के निर्देश पर मुकदमा दर्ज करने की कार्रवाई की गई है। तत्कालीन डीएम जुहैर बिन सगीर वर्तमान में विशेष सचिव लघु सिंचाई एवं एडीएम अरुण कुमार श्रीवास्तव मुरादाबाद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। बाकी आरोपितों की तैनाती मुरादाबाद में ही हैं।
एक साल चली जांच
एक साल तक चली जांच में डीएम, एडीएम सिटी के साथ ही तहसीलदार सदर संजय कुमार, सीलिंग दफ्तर के सहायक अधिशासी अभियंता सुरेन्द्र प्रकाश गुप्ता, सीलिंग दफ्तर के कनिष्ठ लिपिक हरवेन्द्र कुमार,पेशकार इंद्रजीत सिंह,कनिष्ठ लिपिक रीता सिंह व अधिवक्ता लियाकत अली की पत्नी नसीम बानो को आरोपित बनाया है। इन सभी आरोपितों के खिलाफ सिविल लाइन थाने में विजिलेंस विभाग के निरीक्षक प्रमोद कुमार शर्मा के द्वारा मुकदमा दर्ज कराने की कार्रवाई की गई है।
इनसे खरीदी गयी जेल की जमीन
जेल भूमि खरीद में किए गए घोटाले में विजिलेंस ने दूसरा मुकदमा मूंढापांडे थाने में दर्ज कराया है। इस मुकदमे में भी आठ लोगों को आरोपित बनाया गया है। तत्कालीन अफसरों ने एनआरएचएम घोटाले के आरोपित सौरभ जैन और उसके बेटे सौम्य जैन से जमीन खरीदी थी। विजिलेंस ने अपनी जांच में इन बाप-बेटे को भी आरोपित बनाया है। अफसरों ने जेल भूमि खरीद में किसानों की जगह व्यापारियों को लाभ पहुंचाने का खेल खेला। अधिकारी अपने मकसद में कामयाब भी हो गए। इस दौरान वक्फ बोर्ड की जमीन का समायोजन भी नियमों की अनदेखी कर किया गया था।
जेल का निर्माण रुका
जेल जमीन खरीद में हुए घोटाले के चलते अभी तक जेल का निर्माण शुरू नहीं हो पाया है। जेल अफसरों ने दावा किया था कि इस वर्ष जेल का निर्माण शुरू हो जाएगा। साल 2012 में जेल के लिए सिरसखेड़ा में जमीन चिह्नित कर खरीद प्रक्रिया शुरू की गई थी। लेकिन, अभी तक केवल 98 फीसद जमीन ही खरीदी गई है। घोटाले और विवादों के कारण भी जमीन खरीद की प्रक्रिया प्रभावित हुई।
ताक पर रख दिए नियम
अधिकारीयों के भ्रष्टाचार में डूबने का आलम ये था कि शासनादेशों को ताक पर रखकर मुरादाबाद में सीलिंग भूमि घोटाले को अंजाम दिया गया। घोटाले में कलक्ट्रेट से लेकर तहसील के अधिकारी और कर्मचारी शामिल रहे। शासन में शिकायत होने पर उच्च पदों में बैठे अधिकारियों ने पहले प्रकरण को दबाने के प्रयास शुरू कर दिए। लेकिन, विजिलेंस की सक्रियता के चलते इस घोटाले के साक्ष्य सामने आने पर मुकदमा दर्ज कराया गया।
इस दिन से हुई थी शुरुआत
जांच में सामने आया कि घोटाले की शुरूआत 28 मई 2016 से हो गई थी। इसी दिन सीलिंग की जमीन छोडऩे का पहला आदेश जारी हुआ। एक साल में सीलिंग की 11 करोड़ दस लाख रुपये की जमीन छोडऩे को 12 आदेश किए गए। यह तब हुआ जब सीलिंग की जमीन छोडऩे का अधिकार तत्कालीन डीएम के पास नहीं था। बेख़ौफ़ अधिकारीयों का भ्रष्टाचार का सिलसिला यहीं नहीं रुका। उच्च अधिकारियों के आदेश पर जिन लोगों के नाम पर जमीन छोड़ी जा रही थी, उन्हें प्रशासनिक अधिकारी कब्जा दिलाने के लिए भी पहुंच रहे थे। कुछ अधिकारियों ने इन आदेशों का विरोध भी किया। लेकिन, जो भी विरोध में आया उसे किनारे कर दिया गया।
लेखपालों ने लगाई फर्जी रिपोर्ट
चूंकि सीलिंग की जमीनों पर मुरादाबाद विकास प्राधिकरण का कब्जा था। लेकिन, जब भी तहसील से रिपोर्ट मांगी जाती तो तहसीलदार, लेखपाल और कानूनगो दफ्तर में बैठकर रिपोर्ट लगा देते थे। किसी अफसर ने मौके पर जाकर जमीन का निरीक्षण तक नहीं किया। रिपोर्ट में सीलिंग की जमीनों को खाली बताया जाता था, जबकि जमीन पर लोग बसे थे और एमडीए का कब्जा था। विजिलेंस विभाग की रिपोर्ट में भी इस बात का जिक्र किया गया है।
वीसी डीएम में हुआ था विवाद
यही नहीं सीलिंग की जमीन छोडऩे को लेकर तत्कालीन उपाध्यक्ष और जिलाधिकारी के बीच विवाद भी हुआ था। जिस भूमि पर एमडीए का कब्जा था, उन्हें भी सीलिंग दफ्तर से छोडऩे का आदेश जारी कर दिया गया था। इस मामले में तत्कालीन मुरादाबाद विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष राजेश कुमार यादव अपना पक्ष रखने जिलाधिकारी के पास पहुंचे थे, इस दौरान दोनों के बीच बहस हुई थी। मामला काफी आगे बढ़ गया। इसके बाद एमडीए उपाध्यक्ष ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी। इस अपील पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सीलिंग के आदेश को रद्द करने का फैसला सुनाया। हाईकोर्ट के फैसले के बाद जारी किए गए दो आदेशों को तत्कालीन जिलाधिकारी ने रद्द कर दिया था।
कमिश्नर ने दिए थे जांच के आदेश
सीलिंग भूमि घोटाले की जांच करने के लिए तत्कालीन कमिश्नर एल. वेंकटेश्वर लू ने अपर आयुक्त की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया था। इसमें एमडीए के तत्कालीन सचिव सीपी त्रिपाठी व मौजूदा एडीएम प्रशासन लक्ष्मीशंकर सिंह को जांच का जिम्मा सौंपा गया था। 15 दिन में समिति ने जांच कर रिपोर्ट मंडलायुक्त को सौंप दी थी। 17 पन्नों की इस जांच रिपोर्ट में इन्हीं आठ लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनके खिलाफ विजिलेंस ने मुकदमा दर्ज कराया है।
ये छोड़ी गयी थी जमीन
शाहपुर तिगरी 357 1707.84, सोनकपुर 779 3520.89, सोनकपुर 645 1995.03, सोनकपुर 792 1993.01, ढक्का 369 3895.33, सोनकपुर 620 4168.41, सोनकपुर 547 629.17, भीमाठेर 296 8255.88,
मानपुर 745 2913.84, नरायनपुर 756 617.35
Updated on:
23 Oct 2018 09:10 am
Published on:
23 Oct 2018 07:20 am
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