
पहाड़ जैसे विरोध भी नहीं रोक पाए इस महिला के हौसले को,आज बन गयी है गांव की बेटियों के लिए मिसाल
जय प्रकाश @पत्रिका
मुरादाबाद: कहते हैं बिना चाह के कभी राह नहीं मिलती। इसलिए कुछ भी करने से पहले मन में बड़ा संकल्प लेना पड़ता है तभी मंजिल मिल पाती है। जी हां कुछ ऐसी ही कहानी मुरादाबाद में पिछले 27 सालों से शिक्षा की अलख जगा रहीं रेहाना रहमान की है। 1991 से खादर के गांवों में स्कूल से ड्राप आउट लड़कियों को स्कूल में दाखिला कराने से लेकर उन्हें आगे पढ़ाने और बढाने की जिम्मेदारी के साथ बढ़ रहीं रेहाना का समाज के विरोध के बाद भी हौसला कम नहीं हुआ है। तभी उन्होने हवा के विपरीत चलकर आज वो मुकाम हासिल किया है। जिसमें विरोध करने वाला न समाज आज उनके साथ खड़ा है बल्कि उन्हें तमाम सरकारी और गैर सरकारी संगठन भी खड़े हैं। शिक्षा के लिए काम करने वाला मलाला फंड ने भी रेहाना रहमान के जज्बे को देखते हुए उन्हें चुना है।
इतने साल से कर रहीं काम
पत्रिका से बातचीत में रेहाना रहमान ने बताया कि उन्होंने इस सफ़र की शुरुआत 27 साल पहले 1991 में की थी। मुझे तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा साक्षर अभियान से जोड़ा गया। मैंने देखा की कुन्दरकी और आसपास के इलाके में तो लोग बेटियों को स्कूल भेजते ही नहीं थे। उन्होंने बताया कि जहां से उन्होंने शुरुआत की गांव अब्दुल्लापुर में कोई भी स्कूल नहीं था। सड़कें तक पक्की नहीं थी। वो लोगों के घरों तक पहुंचती थीं तो लोग उन्हें भगा देते थे। यही नहीं उन्होंने बताया कि चूंकि वो मुस्लिम समाज से ताल्लुक रखती थीं तो उन पर बिना परदे के घूमने पर काफी तोहमत लगाईं गयी। लेकिन उन्होंने लोगों को समझाना जारी रखा।
ये था शिक्षा का स्तर
रेहाना रहमान ने बताया कि उस वक्त जब उन्होंने 1991 में इस काम को शुरू किया था तो कुन्दरकी में लड़कियों का शिक्षा का प्रतिशत महज 7 फीसदी था। जबकि लड़कों का 14 फीसदी। उन्होंने नदी के खादर क्षेत्र में पैदल घूम घूम कर लोगों को समझाया कि बेटियों को पढ़ाना बेहद जरुरी है। जिसका लोगों पर धीरे धीरे असर हुआ और उन्हें समझ में आया। उन्होंने बताया कि अल्पसंख्यक व् दलित समुदाय की बेटियां तो न के बराबर ही स्कूल जातीं थी। फिर ये भी था कि गांव में कोई स्कूल ही नहीं था यहां तक कि मजरे में भी उस वक्त कोई स्कूल नहीं था। आज अब्दुल्ला पुर में जरुर प्राइमरी स्कूल है।
घर पर ही पहले पढवाया
उनके मुताबिक उन्होंने बेटियों के मां-बाप से बात कर उनका दाखिला करवाया और फिर अपने एनजीओ के जरिये उन्हें आस पास ही पढवाया फिर इम्तिहान के लिए स्कूल ले गए। ये सब लगातार जारी रहा। रेहाना ने इन सालों में हजारों बेटियों को न सिर्फ स्कूल पहुंचाया बल्कि जीने की एक नई दिशा भी।
ये है अगला लक्ष्य
रेहाना रहमान का अब अगला लक्ष्य हर साल एक हजार बेटियों को स्कूल पहुंचाने से लेकर उनके भविष्य को बेहतर बनाने के लिए काम करना है। जिसमें उन्हें अब मलाल फंड की भी मदद मिल रही है।
Updated on:
23 Oct 2018 04:16 pm
Published on:
23 Oct 2018 10:53 am
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