
अमरोहा: सूबे की सरकार भले ही सूबे में शिक्षा की तस्वीर बदलने के तमाम दावे कर रही हो। लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। जी हां अभी जनपदों के दूर दराज में स्थित प्राथमिक विद्यालयों में पठन पाठन का वो ढर्रा नहीं बन पाया जिससे ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे पब्लिक स्कूल की दौड़ में शामिल हो पायें। गलती इनमें बच्चों से ज्यादा इन्हें शिक्षा देने वाले शिक्षकों की नजर आ रही है। क्यूंकि उनका ये काम है कि वे इन कोरे कागज पर भविष्य की तस्वीर उतारें । जबकि हालात ये हैं कि कुछ शिक्षकों को ही अभी अध्ययन की जरुरत लग रही है। कुछ यही हाल अमरोहा जनपद में देखने को मिला। जब कैमरे के सामने कई शिक्षक सामान्य ज्ञान के मामूली सवालों के जबाब नहीं दे पाए। कुछ ने दिया भी तो इस तरह झिझक कर की लगा ही नहीं वे उत्तर दे पा रहे हैं।
नहीं मालूम राष्ट्रपति का नाम
जनपद के बुढ़नपुर ,जोया ,पतोई खालसा समेत कई प्रथमिक विद्यालयों में शिक्षकों का सामन्य ज्ञान जानने की कोशिश की। तो कई शिक्षकायें यूं बिगड़ गयीं जैसे उन पर कौन सा जुर्माना डाला गया है। ज्यादातर को यहां नहीं पता था कि उत्तर प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री कौन था। जबकि कई क्लासों में इसी की क्लास भी चल रही थी। यही नहीं मौजूदा राष्ट्रपति का नाम कुछ शिक्षकों ने वेंकैया नायडू बताया और कुछ ने बड़ी हिचक के साथ रामनाथ कोविंद की जगह कुछ और ही उच्चारण किया। कुछ महिला शिक्षक नाराज भी हो गयीं और पहले परमिशन लाने को कहा। इनमें सभी टीचर परमामेंट थे कोई भी शिक्षामित्र या संविदा वाले नहीं थे। उसके बाद भी उनके सामन्य ज्ञान का ये स्तर समझ से परे है।
अधिकारी बयान से बचे
उधर इस मामले पर शिक्षा विभाग के अधिकारीयों ने बोलने से इनकार करते हुए कहा कि समय के हिसाब से अपडेट कभी कभार नहीं हो पाता। इस बारे में विचार किया जायेगा।
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फ़िलहाल खस्ताहाल व्यवस्था
यहां बता दें कि इससे पहले भी सूबे में कई जगह इस तरह के मामले आये कि शिक्षकों को मालूम ही नहीं क्या पढ़ा रहे हैं। लेकिन सरकारी ढर्रे पर चली आ रही व्यवस्था कब सुधरेगी। इस तस्वीर को देखकर यही लगता है कि अभी वक्त लगेगा।
Published on:
15 May 2018 12:02 pm
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