
मुरैना. जिला अस्पताल में फायर सिस्टम जिसे ऑटोमैटिक फायर एक्सटिंग्विजर कहते हैं, उसको आठ माह पूर्व लगाया गया था। अस्पताल की पुरानी बिल्डिंग में इस पर करीब 1.70 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे ेलेकिन जब आग लगी तो न डिडेक्टर ने धूंआ को डिडेक्ट किया और न फायर अलार्म बजा, वह गनीमत रही, कोई बड़ा हादसा नही हो सका।
यहां बता दें कि जिला अस्पताल की पुरानी बिल्डिंग में जो फायर सिस्टम लगा है, उसमें स्मॉक डिडेक्टर, फायर अलार्म और स्प्रे नोजल गलाए गए हैं। इसमें सेंसर हैं जो एक दूसरे से मिलकर कार्य करते हैं। लेकिन बुधवार को लगी आग में सिस्टम ने काम नहीं किया। इसके कार्य करने का तरीका यह है कि जैसे ही आग लगेगी तो स्मॉक डिडेक्टर धुंआ को डिडेक्ट करेगा, उसके फायर अलार्म बजेगा और नोजल से पानी स्वतह ही स्प्रेल करने लगेगा जिससे आग पर काबू पाया जा सके। लेकिन जिला अस्पताल में ऐसा कुछ नहीं हुआ। कर्मचारियों ने अग्निशमन यंत्रों से आग पर काबू पाया, अगर कहीं आग विकराल रूप ले जाती तो इस फायर सिस्टम का क्या मतलब होता। शासन को करीब पौने दो करोड़ रुपया इस फायर सिस्टम पर खर्च हो चुका है, उसके बाद भी काम नहीं कर रहा है, यह गंभीर जांच का विषय है।
जिला अस्पताल में जब से फायर सिस्टम लगा है, तब से यह दूसरी बार आग लगी है। इससे एक साल पूर्व नई बिल्डिंग में आग लग चुकी है और अब पुरानी बिल्डिंग में। करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी फायर सिस्टम काम नहीं कर रहा है, इस मामले में सिस्टम लगाने वाली कंपनी और अस्पताल के अधिकारियों की कार्यशैली की भी जांच होना चाहिए। जब फायर सिस्टम काम ही नहीं कर रहा तो भुगतान कैसे कर दिया, यह भी अहम सवाल है। पहले आग लगी तभी जिला प्रशासन ने कमेटी बनाकर जांच कराने की बात कही थी, अब फिर कमेटी बनाने की बात सामने आई लेकिन पहले की जांच आज तक पूरी नहीं हो सकी है, तो फिर इस जांच का क्या उम्मीद करें।
जिला अस्पताल में एक साल में दूसरी बार आग लगना और फायर सिस्टम का काम नहीं करना गंभीर मामला है। जब अस्पताल ेमें ऑटोमैटिक फायर सिस्टम लगा था, फिर काम क्यों नहीं किया, यह जांच का विषय है। कलेक्टर द्वारा कमेटी बनाई जा रही है, जो इस पूरे मामले की जांच करेगी।
Published on:
20 Apr 2025 03:32 pm
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