आलम है कि नदी के विभिन्न घाटों से प्रतिदिन हजारों की संख्या में ट्रैक्टर-ट्रॉलियां रेत लादकर बेरोकटोक बाजार में पहुंच रही हैं। अब तक राजघाट सबसे बड़ा अवैध रेत खनन और परिवहन का अड्डा माना जाता था, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के कारण अब रेत का खनन चंबल के हर घाट से हो रहा है। अंबाह के बीचकापुरा घाट पर रेत खनन और परिवहन की जो तस्वीर सामने आई है वह किसी भी रोंगटे खड़े कर देने वाली है। यह मंजर देखकर कहा जा सकता है कि यहां रेत माफिया को प्रशासनिक तंत्र का रत्तीभर खौफ नहीं है।
अंबाह व पोरसा क्षेत्र में अन्य कई घाटों से माफिया रेत का उत्खनन कर रहा है। इनमें नगरा के पास भदावली घाट, खुर्द-रायपुर घाट, अंबाह में बीच का पुरा घाट प्रमुख हैं। बीच का पुरा घाट से तो इस समय प्रतिदिन तकरीबन एक हजार ट्रॉली रेत खोदा जा रहा है। इसी तरह अंबाह के चुसलई घाट पर भी व्यापक स्तर से रेत का उत्खनन किया जा रहा है। चंबल के घाट से दिनभर कतार में ट्रैक्टर-ट्राली रेत लादकर निकल रहे हैं। ये वाहन रास्ते में विभिन्न थाना क्षेत्रों से होते हुए अंबाह व पोरसा के बाजार तक पहुंच रहे हैं। हैरत की बात यह कि रेत का परिवहन व विक्रय किसी खास समय में नहीं, बल्कि 24 घण्टे चल रहा है। चंबल के घाटों से रेत के अवैध उत्खनन, परिवहन व विक्रय की जानकारी समूचे सरकारी अमले को है। लेकिन लंबे समय से इस मामले में किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई है। यही वजह है कि शहर में हाइवे पर सुबह पांच बजे और उससे पहले से लेकर सात बजे तक करीब एक हजार ट्रैक्टर ट्रॉलियां चंबल के रेत से भरकर बेखौफ ले जाई जा रही हैं। बानमोर में शनिश्चरा रोड पर सुबह चंबल के रेत से भरी ट्रैक्टर ट्रॉलियों की मंडी लगती है। शहर में बड़ोखर के पास भी ऐसी ही मंडी लगती है।
डरा हुआ है सरकारी अमला
रेत के अवैध उत्खनन व परिवहन के मामले में किसी तरह की कार्रवाई न होने की खास वजह सरकारी अमले का डर है। दरअसल अवैध खनन रोकने के लिए अब तक की गई कार्रवाइयों में हमेशा रेत माफिया ही प्रशासन पर भारी पड़ा है। यही वजह है कि अधिकारियों ने भी इस काले कारोबार की तरफ देखना बंद कर दिया है। हालांकि कुछ सरकारी नुमाइंदों के रेत माफिया के साथ लेन-देन वाले संबंध भी हैं, इसलिए वे अवैध उत्खनन व परिवहन के खिलाफ कार्रवाई नहीं करते।
जलीय जीवों के लिए सबसे मुफीद
चंबल नदी जलीय जीवों के लिए सबसे मुफीद मानी जाती है। इसलिए यहां दुर्लभ जलीय जीव घडिय़ाल सेंचुरी की स्थापना की गई। ताजा गणना के अनुसार चंबल में इस समय 1700 के करीब घडिय़ाल स्वच्छंत विचरण कर रहे हैं। चंबल में डॉल्फिन भी करीब एक सैकड़ा हैं। लेकिन रेत का अब जिस तरह से पानी में घुसकर भी खनन और परिवहन हो रहा है, उसे देखते हुए जलीय जीव राजघाट सहित सभी रेत खनन वाले स्थानों से पलायन कर रहे हैं।
इन अनियमितताओं पर भी ध्यान नहीं
-रेत के अवैध परिवहन में उपयोग किए जा रहे सभी ट्रैक्टर-ट्रॉली बिना नंबर के हैं। रेत माफिया ने जानबूझकर अपने ट्रैक्टरों पर रजिस्ट्रेशन नंबर नहीं लिखवाए। ताकि पकड़े जाने पर आसानी से उनकी पहचान न हो सके।
-रेत लादकर दौडऩे वाले वाहनों की वजह से कई बार रास्तों पर हादसे भी घटित हो चुके हैं। इन वाहनों की वजह से मॉर्निंग वाक पर जाने वाले लोगों को भी जान का खतरा बना रहता है।
-प्रतिबंध के बावजूद चंबल के रेत का उपयोग निर्माण कार्यों में भी किया जा रहा है। कई जगह तो सरकारी निर्माण कार्यों में भी चंबल के रेत का खुलेआम उपयोग किया जा रहा है।
ऐसा मामला जानकारी में नहीं आया था, यदि रेत का खनन और परिवहन हो रहा हे तो तहसीलदार को भेजकर जांच करवाते हैं और सही मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।
नीरज शर्मा, एसडीएम अंबाह।
नीरज शर्मा, एसडीएम अंबाह।
रेत का अवैध उत्खनन व परिवहन रोकना यूं तो वन विभाग का काम है। लेकिन जैसी स्थिति बताई जा रही है, यदि वैसी ही है तो हम दिखवाते हैं। कार्रवाई भी करेंगे।
केएल शाक्य, थाना प्रभारी अंबाह