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11वीं सदी में बबूल पेड़ की खुदाई में निकला शिवलिंग, कहलाए बमूरा वाले महादेव

श्रावण मास: चौथे सोमवार को पढि़ए 11वीं सदी के बमूरा वाले महादेव की कहानी

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11वीं सदी का शिवलिंग, दूसरे चित्र में बमूर वाले महादेव का मंदिर।,11वीं सदी का शिवलिंग, दूसरे चित्र में बमूर वाले महादेव का मंदिर।

अंबाह। तहसील मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत रूपाहटी में स्थित 11वीं सदी के बमूर वाले महादेव मंदिर में प्रतिष्ठित शिवलिंग लोगों की श्रद्धा व आस्था का केंद्र है। क्वारी नदी के किनारे स्थित इस मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में क्वारी नदी की ओर स्थित है और मंदिर के मुख्य गुंबद के नीचे भगवान भोलेनाथ का लगभग 4 फीट ऊंचा शिवलिंग है।
-औरंगजेब ने खंडित किया था मंदिर, ग्रामीणों ने दोबारा कराया जीर्णाेद्धार
मान्यता है कि बमूर वाले महादेव मंदिर को मुगल शासक औरंगजेब ने मिटाने की कोशिश की थी। मूर्तिपूजा का विरोध करते हुए मंदिर की दीवारों पर उकेरी गई देवी-देवताओं की आकृतियों को खंडित करवा दिया था। ग्रामीणों ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
-11वीं सदी पुराना है पेड़ की खुदाई में निकले शिवलिंग:
बमूर वाले महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग के बारे में ग्रामीणों ने बताया कि यह शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ है। स्थानीय लोगों के अनुसार यह शिव पिंडी बबूल के पेड़ की खुदाई के दौरान निकली थी, इसीलिए यह शिवलिंग बमूरा वाले महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुए। पुजारी सीताराम दास के अनुसार इस मंदिर में सच्चे मन से जो साधक भगवान भोलेनाथ से याचना करते हैं, उनकी मुराद भगवान भोलेनाथ जरूर पूरी करते हैं।
-सोमवार को कांवड़ चढ़ाएंगे हजारों श्रद्धालु:
प्राचीन बमूरा महादेव मंदिर के पुजारी सीताराम दास बताते हैं कि यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था एवं भक्ति का केंद्र है। सावन के महीने में दूर-दराज से श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। मान्यता है कि श्रावण मास में यहां पर गंगा जल एवं प्रसाद चढ़ाने से सभी की मनोकामना पूर्ण होती है। श्रावण मास में मंदिर में दूरदराज से कांवडय़िे गंगा जल चढ़ाकर अपनी मन्नत मांगते हैं। शिवरात्रि पर यहां विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है।