
मुरैना. हम सभी श्री सिद्धचक्र विधान के अंतर्गत निरंतर सिद्धों की आराधना कर रहे हैं। विधान में पांचवे दिन हमने पूजन करते हुए जो अर्घ समर्पित किए हैं वो अपने अंदर बैठे मान कषाय (अहंकार) को दूर करने के लिए किए हैं। जब हम भगवान की पूजन भक्ति करते हैं, तब हमारे अंदर मान कषाय नहीं होना चाहिए। मान कषाय से बचने के लिए ही भगवान की पूजा, अर्चना, आराधना, भक्ति की जाती है। उक्त उदबोधन जैन संत मुनि विलोकसागर महाराज ने बड़े जैन मंदिर में श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के पांचवे दिन धर्मसभा को संबोधित करते हुए दिया।
जैन मुनि ने कहा कि मान कषाय ही हमें चार गति और चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करता है और इस असार संसार से मुक्त नहीं होने देता, हमारे अंदर दिव्य शक्ति को जागृत नहीं होने देता, हमें परमात्मा नहीं बनने देता। इन मान कषायों के कारण ही हम दिन रात पाप कर्मों में लिप्त रहते हैं। यदि हमारे जीवन में मृदुता, सरलता आ जाए तो इस संसार में हमारा कोई शत्रु या दुश्मन नहीं होगा, हमारा किसी से बैर नहीं होगा। हम जब भी इष्ट की, जिनेंद्र प्रभु की आराधना, पूजा भक्ति करते हैं तब हमारा चिंतन होना चाहिए कि हे भगवन, जो दिव्य शक्ति आपके अंदर विराजमान है, वो मेरे अंदर भी प्रगट हो। हम निरंतर पूजा भक्ति आराधना करते हुए इष्ट की प्रतिमाओं को घिसते रहते हैं लेकिन अपने अंदर के मान कषाय को नहीं छोड़ते। हमें प्रभु कृपा से जो मिला वह पर्याप्त था लेकिन कषाय के कारण हमें संतुष्टि नहीं हुई।
आचार्य संजय भैया ने सोमवार को मंत्रोच्चारण के साथ 128 अर्घ चढ़ाते हुए यही भावना की कि हम भी अपने आपसी विरोध को छोडकऱ कषायों को कम करते हुए अपने जीवन का कल्याण करें। यह जीव 108 प्रकार से कर्मों का आश्रव किया करता है। मंगलवार को सिद्धों की आराधना करते हुए 256 अर्घ समर्पित किए।
आठ दिवसीय श्री सिद्धचक्र विधान में भक्तिरस की वर्षा हो रही है। विधान के मुख्य पात्र अपने विशेष परिधान के साथ चांदी के हार, मुकुट एवं अन्य अलंकरणों से सुसज्जित होकर विधान का हिस्सा बने हुए हैं। विधानाचार्य अजय भैया दमोह अपने बुंदेलखंडी जैन भजनों से सभी को भक्ति नृत्य करने पर मजबूर कर देते हैं। साथ में भजन गायक एवं संगीतकार हर्ष जैन एंड कंपनी भोपाल अपनी संगीत लहरी से सभी को मंत्रमुग्ध कर रहे हैं।
Published on:
08 Jul 2025 11:39 am
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