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22 वर्षों से शहर में निवास, फिर भी नहीं पहचान का प्रमाण

पत्थर का काम करने वाले परिवारों के पास राशनकार्ड, आधार कार्ड, वोटर कार्ड जैसे दस्तावेज भी नहीं

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बदहाली में गुजर-बसर कर रहे परिवार।

मुरैना. शहर में कुछ ऐसे परिवार भी हैं, जिनकी अधिकृत तौर पर कोई पहचान नहीं। मेला मैदान के पास सड़क किनारे पत्थर से रसोई की जरूरत का सामान बनाने वाले लोगों की भी यही कहानी है। इन लोगों के कुछ परिवार पिछले दो दशक से शहर में निवासरत हैं, लेकिन इनके पास ऐसा कोई दस्तावेज नहीं, जिसे वे अपनी पहचान के प्रमाण के तौर पर पेश करके सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकें।
पत्थर के चकला, सिल-बट्टे, चक्की आदि बनाने वाले लोगों के कुछ परिवार शहर में २२ वर्ष पहले आए थे। तब से ये एक ही स्थान पर निवासरत हैं। जिन हालातों में ये लोग अपनी आजीविका चला रहे हैं और जिस तरह का इनका बसेरा है, उस लिहाज से ये गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी में आते हैं, लेकिन इस बात का कोई अधिकृत प्रमाण इनके पास नहीं है। इसलिए किसी भी सरकारी योजना का लाभ इन्हें नहीं मिल रहा है। ये लोग अब स्थाई तौर पर शहर में बस चुके हैं, लेकिन सरकारी दस्तावेजों में इन्हें यहां का नागरिक स्वीकार नहीं किया गया है। इनके पास न तो वोटर कार्ड हैं, न आधार कार्ड और न ही इनके परिवार की समग्र आईडी बनी है। इन लोगों का कहना है कि कई बार उन्होंने संबंधित वार्ड के पार्षद से मिलकर बीपीएल कार्ड बनवाने का प्रयास किया, लेकिन उनकी गुहार को अनसुना कर दिया गया। मतदाता सूची में नाम जुड़वाने तथा आधार कार्ड जैसा जरूरी दस्तावेज बनवाने के संबंध में किए गए प्रयासों में भी इन्हें अब तक सफलता नहीं मिली।
पढ़ नहीं पा रहे बच्चे
पहचान संबंधी प्रमाण नहीं होने के कारण इन लोगों के बच्चे पढ़ नहीं पा रहे हैं। पत्थर का काम करने वाले लोगों ने बताया कि वे भी चाहते हैं कि उनके बच्चे भी पढ़ें, लेकिन स्कूल में प्रवेश के लिए सबसे पहले समग्र आईडी तथा अन्य दस्तावेजों की मांग की जाती है। चूंकि इस तरह के कागजात उनके पास नहीं हैं, इसलिए बच्चों को स्कूलों में प्रवेश नहीं मिल पा रहा है।
कबाड़ में बीत रहा बचपन
पत्थर का काम करने वाले लोगों के बच्चों का बचपन कबाड़ बीनते हुए गुजर रहा है। शुक्रवार को बाल कल्याण समिति के पदाधिकारी जब इन परिवारों से मिलने पहुंचे तो उनके बच्चे पास ही कबाड़ बीनते नजर आए। समिति के पदाधिकारियों ने इस बारे में बातचीत की तो उनके माता-पिता ने अपनी मजबूरी की दास्तां सुनाई। इस पर समिति के पदाधिकारियों ने उनके सहयोग का आश्वासन दिया।
पत्थर का काम करने वाले परिवारों की स्थिति दयनीय है। उनके पास अपनी पहचान साबित करने के लिए कोई सरकारी दस्तावेज भी नहीं है। हमने उनके बच्चों को शिक्षा दिलाने की पेशकश की है। इन परिवारों के हित में सरकारी स्तर पर अन्य प्रयास भी किए जाएंगे।
अमित जैन, अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति