scriptChhalaang Movie Review: स्कूली बच्चों को खेल सिखाने के फिल्मी फंडे और नायिका के बोल्डनेस की अति | Chhalaang Movie Review in starring Rajkummar Rao and Nushrat Bharucha | Patrika News

Chhalaang Movie Review: स्कूली बच्चों को खेल सिखाने के फिल्मी फंडे और नायिका के बोल्डनेस की अति

locationमुंबईPublished: Nov 17, 2020 06:53:32 pm

‘छलांग’ ( Chhalaang Movie ) का किस्सा यह है कि राजकुमार राव ( Rajkummar Rao ) एक स्कूल के खेल शिक्षक हैं। उनके पास खेलों का कोई अनुभव नहीं है। सिफारिशी नौकरी है, इसलिए टाइम पास कर रहे हैं। स्कूल में कम्प्यूटर टीचर नुसरत भरूचा ( Nushrat Bharucha ) की एंट्री के बाद वह रोमांटिक तौर पर एक्टिव होते हैं और जब नेशनल स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट का डिग्रीधारी नया खेल शिक्षक (जीशान अयूब) एंट्री लेता है, तो एक्शन मोड में आ जाते हैं।

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-दिनेश ठाकुर

माना कि कोई किसी को ‘बोल्ड’ और ‘ओल्ड’ होने से नहीं रोक सकता, लेकिन फिल्म में तथाकथित बोल्डनेस दिखाते समय ध्यान रखा जाना चाहिए कि इससे समाज में क्या संदेश जाएगा। ओटीटी पर यह जो हंसल मेहता ( Hansal Mehta ) की ‘छलांग’ ( Chhalaang Movie ) आई है, इसकी कहानी हरियाणा के झज्जर शहर की है। हमें नहीं लगता कि इस शहर की लड़कियां इतनी एडवांस हो गई हैं कि खुलेआम शराब पीती होंगी, जैसा कि इस फिल्म की हीरोइन नुसरत भरूचा ( Nushrat Bharucha ) को करते दिखाया गया। हीरो राजकुमार राव ( Rajkummar Rao ) को अपने ऊपर डोरे डालते देख हीरोइन बिंदास होकर पूछती है- ‘फ्रेंड बनना है.. दारू पिलाओगे?’ अगले सीन में वह हीरो के साथ जाम टकराती नजर आती है। शायद यह काफी नहीं था। बाद में वह हीरो और उसके पिता (सतीश कौशिक) के साथ भी ‘महफिल’ में शरीक है। भावी ससुर जी भांप गए थे कि भावी बहू पीने का शौक फरमाती है, सो उन्होंने ‘ले ले बेटी ले ले’ कहते हुए उसे गिलास थमा दिया। राजकुमार राव खुद झज्जर के हैं। उनका ध्यान भी इस तरफ नहीं गया कि फिल्म में उनके शहर की लड़की की कैसी इमेज पेश की जा रही है। खेलों की पृष्ठभूमि वाली फिल्म में इन प्रसंगों की तुक समझ से परे है।

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इस तरह तो बच्चों को नहीं सिखाते दौडऩा
‘दंगल’, ‘चक दे इंडिया’, ‘सांड की आंख’, ‘पंगा’ आदि फिल्मों की तरह ‘छलांग’ भी खेल प्रतिभाओं को उभरने के मौके देने की बात करती है। यह दूसरी बात है कि इसकी कुछ घटनाएं हद से ज्यादा फिल्मी हो गई हैं। स्कूल के मासूम बच्चों को दौड़ का अभ्यास कराने के लिए क्या यह जरूरी है कि उनके पीछे ‘भौं-भौं’ करते खूंखार जर्मन शेफर्ड (श्वानों की एक नस्ल) छोड़ दिए जाएं? अभ्यास में यह ट्रिक आजमाने के बाद क्लाइमैक्स में दौड़ का मुकाबला हुआ, तो मैदान के बाहर फिर जर्मन शेफर्ड की रेकॉर्डेड ‘भौं-भौं’ का शोर किया गया। शायद ही भारत के किसी धावक ने इस तरह दौड़ लगाना सीखा हो। एक पुराना लतीफा याद आता है। एक साहब बुरी तरह भागते हुए एक मैदान में घुस गए। काफी दौड़ लगाने के बाद हांफते हुए थमे, तो कुछ लोग उनकी पीठ थपथपा रहे थे। लोगों ने कहा- ‘आप दौड़ में अव्वल आए हैं। आपने कमाल कर दिया।’ साहब बोले- ‘कमाल को गोली मारो, पहले यह पता लगाओ कि मेरे पीछे जर्मन शेफर्ड को किसने छू किया था।’

यह है फिल्म का किस्सा
‘छलांग’ का किस्सा यह है कि राजकुमार राव एक स्कूल के खेल शिक्षक हैं। उनके पास खेलों का कोई अनुभव नहीं है। सिफारिशी नौकरी है, इसलिए टाइम पास कर रहे हैं। स्कूल में कम्प्यूटर टीचर (नुसरत भरूचा) की एंट्री के बाद वह रोमांटिक तौर पर एक्टिव होते हैं और जब नेशनल स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट का डिग्रीधारी नया खेल शिक्षक (जीशान अयूब) एंट्री लेता है, तो एक्शन मोड में आ जाते हैं। उन्हें लगता है कि नया खेल शिक्षक उनकी प्रेमिका के साथ-साथ नौकरी भी छीन सकता है। कल तक बुजुर्ग टीचर (सौरभ शुक्ला) के साथ इधर-उधर टहलने में वक्त काटने वाले राजकुमार राव अब स्कूल के बच्चों को खेल सिखाना शुरू करते हैं और फिल्मी अंदाज में कैसे सिखाते हैं, इसका जिक्र ऊपर किया जा चुका है। आसानी से हजम नहीं होने वाली घटनाएं दिखाकर यह किस्सा तमाम होता है। कुछ हिस्सों में फिल्म ठीक-ठाक है, लेकिन ‘दंगल’ या ‘चक दे इंडिया’ जैसी धार इसमें कहीं नहीं है।

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सभी कलाकारों का काम ठीक-ठाक
‘छलांग’ में राहत की बात यह है कि इसकी कहानी जितनी ‘ओवर’ है, कलाकारों की एक्टिंग में उतनी ही सहजता है। राजकुमार राव हरियाणवी बोलते हुए अच्छे लगते हैं, तो नुसरत भरूचा ने भी उनका अच्छा साथ दिया है। सतीश कौशिक और सौरभ शुक्ला पुराने चावल हैं। दोनों हर किरदार में रंग जमा देते हैं। हालांकि ‘छलांग’ में उन्हें ज्यादा उभरने का मौका नहीं मिला। जीशान अयूब का काम भी अच्छा है। एक सीन में, जब उन्हें पता चलता है कि राजकुमार राव के पास खेल का कोई अनुभव नहीं है, उनका यह संवाद चुभते सवाल जैसा है- ‘सारे देश का यही हाल है। ज्यादातर लोगों को यही पता नहीं है कि पीटीआइ बनने के लिए भी डिग्री की जरूरत होती है। चलिए, धीरे-धीरे सब बदलेगा। हम ही बदलेंगे।’

० फिल्म : छलांग
० रेटिंग : 3/5
० अवधि : 2.16 घंटे
० निर्देशक : हंसल मेहता
० लेखक : लव रंजन, असीम अरोड़ा, जीशान कादरी
० फोटोग्राफी : ईशित नारायण
० संगीत : हितेश सोनिक
० कलाकार : राजकुमार राव, नुसरत भरूचा, जीशान अयूब, सौरभ शुक्ला, सतीश कौशिक, गरिमा कौर, राजीव गुप्ता, इला अरुण आदि।

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