
अंग्रेज़ी मीडियम : मजेदार है इरफ़ान और दीपक की जोड़ी
अरुण लाल
मुंबई. मनोरंजन और इमोशन से भरपूर अंग्रेजी मीडियम फिल्म भारतीय दर्शकों को लुभाने वाली है। पिता पुत्री के रिश्तों के धागों से बुनी गई एक युवती के सपनों की इस कहानी में जीवन के कई रंग देखने को मिलेंगे। बेहतर डॉयलॉग और बेहतरीन एक्टिंग के चलते फिल्म पैसा वसूल फिल्मों में शामिल हो जाती है।
डायरेक्शन और राइटिंग के मामले में फर्स्ट हॉफ बहुत अच्छी तरह से दिखाया गया है। पर दूसरे हॉफ में स्क्रिप्ट के मामले में फिल्म बिखरने लगती है। ऐसा लगता है जैसे कि दूसरे हॉफ में कहानी के नाम पर राइटर के पास कुछ नहीं था। वे बिना सोचे-समझे, कड़ी से कड़ी जोड़ते गए। इसका परिणाम यह हुआ कि फर्स्ट हॉफ को देखते हुए लगा था कि यह बेहतरीन फिल्म होगी, लेकिन सामान्य एंटरटेनर फिल्म बनकर रह गई।
स्क्रिप्ट की कमजोरियों के बावजूद हर फ्रेम में इरफान, दीपक डोबरियाल और राधिका मदान की मौजूदगी फिल्म को खराब होने से बचा लेती है। फिल्म में पिता पुत्री के संबंधों के कई दृश्य दर्शकों की आंखों के कोर को नम कर देंगे।
कहानी
कहानी राजस्थान के एक शहर में रहने वाले व्यापारी चंपक बंसल (इरफान खान) और उसकी बेटी तारिका बंसल (राधिका मदान) की है। वह एक सिंगल फादर है, जो अपनी बेटी के सपनों को पूरा करने में जान लगा देता है।
चंपक अपने चाचा के बेटे गोपी बंसल (दीपक डोबरियाल) से अपने पुरखों के नाम "घसीटाराम हलवाई" के नाम को लेकर लड़ता है। कोर्ट केस के बावजूद दोनों भाई शाम को साथ में शराब पीते हैं। दोनों की नोक-झोंक कहानी की जान है। खैर, तारिका लंदन जाकर पढऩा चाहती है।
पहले तो चंपक बंसल उसे जाने नहीं देना चाहता, पर बाद में वह तारिका के साथ खड़ा होता है। तारिका भी रात दिन मेहनत करते हुए स्कूल की तरफ से लंदन जाकर पढ़ाई करने वाले तीन लोगों में अपनी जगह बना लेती है। स्कूल के ऐनुअल फंक्शन में चंपक गलती से जज की पोल खोल देता है, जो प्रिंसिपल का पति है। इससे गुस्साई प्रिंसिपल तारिका का फार्म फाड़ देती है और फिर चंपक चुनौती देता है कि बेटी का लंदन में एडमिशन करवाकर रहेगा।
यहां रोज लडऩे वाले भाई एक साथ खड़े नजर आते हैँ। वे लंदन पहुंचते हैं, और एडमिशन के लिए जद्दोजहद शुरू हो जाती है। वहां वे लंदन पुलिस में काम करने वाली नैना (करीना कपूर) और उसकी मां (डिंपल कपाड़िया) से टकराते हैं। यहां पहुंचकर तारिका चंपक पिता से आजाद होना चाहती है। एडमिशन, पिता-पुत्री का प्यार और दो भाइयों के संबंधों के इर्द-गिर्द चलती है यह कहानी। पूरी कहानी जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
डायलॉग पंच
डॉयलॉग में कहीं कोई झोल नजर नहीं आता। हल्के-फुल्के अंदाज में बोले गए डॉयलॉग बेहतर बने हुए हैं। एक बेटी का अपने पिता के लिए कहे गए "नॉक करके आना चाहिए था", "मिस्टर बंसल यहां की सड़कों को गंदा नहीं करते", जैसे सामान्य डॉयलॉग भी दर्शकों की आंखें नम कर देते हैं।
डायरेक्शन
डायरेक्शन के मामले में फर्स्ट हॉफ बहुत अच्छी तरह से बनाया गया है। हर दृश्य को सलीके से प्रस्तुत किया गया है। दूसरे हॉफ में पहुंचते ही फिल्म से लॉजिक का दामन छूट जाता है। जैसे एयरपोर्ट पर अंग्रेजी न आने के चलते उन्हें अपराधी मान कर डिपोट करना बचकाना है।
पाकिस्तानी पासपोर्ट पर दुबई के रास्ते लंदन पहुंचना और वहां लंदन पुलिस नैना से टकराना और नैना का उन पर शक करना और बिना जांच के छोड़ देना, यह सब बिना लॉजिक की बातें फिल्म को कमजोर बना देतीं है। यहां डायरेक्टर और राइटर ने फिल्म को पूरी तरह से छोड़ दिया है।
लंदन पहुंची बेटी और पिता के बीच की दरार भी अन लॉजिकल तरीके से प्रस्तुत किया गया है। अंत भी ऐसा लगा है जैसे कि बस अंत करना था सो कर दिया। कुल मिलाकर पहले हॉफ में फिल्म डायरेक्टर के हाथ में थी, वह दर्शकों पर जबरजस्त पकड़ बनाए हुए थे, पर दूसरे हॉफ में डायरेक्टर ने अपने हाथ की फिल्म को छोड़ दी।
एक्टिंग
हर किरदार ने अपने हिस्से का बेहतरीन काम किया है। इरफान, दीपक की जोड़ी तो दर्शकों को भाएगी ही। इसके साथ ही इतने मझे हुए कलाकारों के बीच छोटे परदे से बड़े परदे पर आई राधिका मदान ने बेहतरीन एक्टिंग की है।
कह सकते हैं कि इन तीन लोगों की एक्टिंग ने फिल्म को उठा रखा है। इसके बाद छोटी-छोटी भूमिकाओं में करीना कपूर, कीकू शारदा, डिंपल कपाड़िया, पंकज त्रिपाठी, रणवीर शौरी और दूसरे कलाकारों ने भी अपना-अपना रोल बखूबी निभाया है।
क्यों देखें
पिता पुत्री के संबंधों को भावनाओं की चाशनी में लपेट कर बेहतरीन तरीके से बुनी कहानी आपकी आंखों को नम करेगी, मन को आनंद से भरेगी भी। दो भाइयों की टकराहट और प्यार भी आपके मन को छुएगा। एक बार फिल्म देखने में मजा आएगा।
Published on:
13 Mar 2020 11:29 pm
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