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महामंडल में करोड़ों रुपए जमा फिर भी मजदूर दूसरों का मुंह ताकने को मजबूर

locationमुंबईPublished: Dec 13, 2018 11:54:56 pm

Submitted by:

arun Kumar

ठेकेदारों और अधिकारियों की साठ गांठ परेशानी का सबब

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इलाज, बच्चों को डाक्टर इंजीनियर बनाने को हर साल एक लाख तक अनुदान
प्रत्येक वर्ष जमा होता है एक हजार करोड़ और खर्च होता है मात्र 80 करोड़ रुपए

रामदिनेश यादव

मुंबई . शहर में ऊंची ऊंची आलीशान इमारतों का निर्माण कर शानो शौकत को चार चांद लगाने वाले मजदूरों का शोषण बदस्तूर जारी है। उनके सामाजिक उत्थान, स्वास्थ्य सेवाओं और सुरक्षा को लेकर बने महामंडल में 6500 करोड़ रुपए जमा होने के बावजूद उन्हें दूसरों के आगे हाथ फैलाने पड़ रहे हैं। असंगठित मजदूरों के लिए सरकार ने महामंडल तो बनाया है लेकिन खामियां इतनी कि 10 फीसदी मजदूरों को भी लाभ नहीं मिल पा रहा है।
हर वर्ष 1000 करोड़ रुपए जमा होते हैं जबकि खर्च मात्र 80 करोड़ रुपए ही है। अब तक कुल 687620 मजदूरों को ही इसका लाभ मिला है। ठेकेदारों की मनमानी और अधिकारीयों की लापरवाही के चलते मजदूर आसानी से पंजीकृत भी नहीं हो पाते है। नतीजन आज भी वे बदहाली के जीवन गुजार रहे है। अनियंत्रित ठेकदारों की मनमानी के चलते उन्हें न्यूनतम मेहनताना भी नहीं मिलता है। महाराष्ट्र राज्य बांधकाम असंगठित मजदूर महामण्डल में वैसे तो कागजी तौर पर तमाम तरह की बेहतरीन सुविधाएं है लेकिन महामण्डल में पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन ) की जटिल प्रक्रिया और ठेकेदारों की मनमानी के चलते वे सदस्य तक नहीं बन पाते हैं।
क्या कहते हैं आला अधिकारी

राज्य के असंगठित कर्मचारी विभाग के अधिकारी श्रीरंगन ने कहा कि हम अभियान चलकर बड़ी संख्या में मजदूरों का पंजीकरण कर रहे है। नियमों में ढिलाई देकर लाभार्थीयों की संख्या बढ़ रही है। पिछले दो वर्ष में 3.5 लाख से अधिक नए पंजीकरण किए गए हैं। 60 रुपए शुल्क के साथ 5 वर्ष की सदस्यता उन्हें दी जाती है। इसके लिए वर्ष भर में 90 दिन काम का प्रमाण उन्हें देना पड़ता है। योजना के लिए 16 से 60 वर्ष की आयु तक के मजदूर ही पात्र हैं। इस योजना में मजदूर को प्रत्येक बड़ी बीमारी के इलाज के लिए सहायता राशि, बीमा, मजदूरों को औजार के लिए, बच्चों को इंजीनियर और डाक्टर की पढ़ाई के लिए प्रत्येक वर्ष एक लाख रुपए तक अनुदान मिलता है। कामगार मंत्री, संभाजी पाटील निलंगेकर ने मजदूरों की समस्या पर जोर दिया है। हमने तेजी से 4 लाख नए सदस्य बनाये हैं। हाल ही में तीसरी बार मजदूरों के लिए सदस्यता अभियान शुरू किया गया है।
रजिस्टर में नाम तक नहीं दर्ज करते

ठेकदार मजदूरों को कम मेहनताना के साथ रजिस्टर पर उनका नाम तक नहीं दर्ज करते हंै। ठेकदार जितना मजदूरों की संख्या को दर्शाएगा, उसे उतने ही मजदूरों की सुरक्षा, वित्तीय और सामाजिक जिम्मेदारी का वहन करना पड़ता है। टैक्स सहित अन्य जिम्मेदारियों से बचने के लिए ठेकेदार महामंडल में सदस्यता के लिए लगने वाले 90 दिन का प्रमाणपत्र भी नहीं देता है। उधर विभाग भी उन्हें आधार कार्ड, पैनकार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, राशनकार्ड, वोटर कार्ड की मांग करता है। बिल्डर को भी इसमे फायदा ही मिलता है। कुल निर्माण कार्य की कीमत का एक प्रतिशत देकर वह मुक्त हो लेता है। ऐसे में मजदूर चाहकर और पात्र होकर भी वंचित होते है। सरकारी आकड़ों के अनुसार राज्य में बांधकाम क्षेत्र में कुल 28 लाख असंगठित मजदूर हैं। अब भी 17 लाख से अधिक मजदूर महामंडल के सदस्य नहीं है , पिछले 7 वर्षों में सिर्फ 11 लाख मजदूर ही पंजीकृत किये गए हैं।

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