
progressive ladies wellfare society : घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी निभाने के साथ सामाजिक कार्य कर बनीं मिसाल
सीमा पारीक
मुंबई. देश 21 वीं सदी में प्रवेश कर चुका है। वक्त के साथ-साथ देश-समाज में परिवार की महिलाओं की स्थिति में भी बदलाव हुआ है। महिलाएं भी अपने कर्तव्यों, क्षमता और कैरियर को लेकर सजग और जागरूक हो गईं हैं। महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर प्रगति पथ पर बढ़ रही हंंै। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें महिलाओं ने अपना दम-खम नहीं दिखाया हो। महिलाएं कुशल राजनीतिज्ञ हैं, कुशल व्यापारी हैं, इसके अलावा घर से बाहर अन्य विभिन्न जगहों पर अपने योगदान से उल्लेखनीय भूमिका अदा कर रही हैं। महिलाओं का एक तबका पढ़ी-लिखी आधुनिक गृहणियों का है, जो घर में रहकर बेहतर तरीके से घर की सारी जिम्मेदारियां निभाने के बाद अपने सामाजिक कार्यो से समाज के लिए मिसाल बन रही हैं। ऐसी ही गृहणियों की संस्था प्रोग्रेसिव लेडीज वेलफेयर सोसायटी से जुड़ी महिलाओं ने पत्रिका से विभिन्न विषयों पर बातचीत की। संस्था राजस्थानी महिलाओं का एक ऐसा संगठन है, जो जरूरतमंदों-मरीजों की सेवा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। संगठन 2002 में बनाया गया, इसमें करीब 118 महिलाएं जुड़ चुकी हैं जो निरंतर लोगों की सेवा कार्य सक्रिय हैं।
समाज के लिए कुछ करने की ठानी
पहले के समय में महिलाएं कामकाजी और इतनी महत्वाकांक्षी नहीं थी, इसलिए उन्होंने बाहर जाकर किसी और जगह काम करने के बजाए परिवार में रहकर ही समाज के लिए कुछ करने की ठान ली और यहीं से प्रोग्रेसिव लेडीज वेलफेयर सोसायटी संस्था की नींव रखी गई। पति के सहयोग से वर्ष 2002 में सात महिलाओं को लेकर छोटे-छोटे दान-धर्म से सामाजिक कार्य की शुरूआत की। अब यही संगठन बड़े धार्मिक कार्यों में योगदान दे रहा है। यह कोई जरूरी नहीं कि एक वर्किंग वूमेन होकर ही अपनी अलग पहचान बना सकते हैं। यदि कुछ करने की चाहत है, तो एक गृहिणी भी अपने आप में एक मिसाल कायम कर सकती है।
मीना राका, संस्थापक
लोगों को मदद करने का प्रयास
आज महिलाएं अपने कैरियर को लेकर महत्वाकांक्षी हैं और हर क्षेत्र में आगे हैं। हम गृहणियां भी बेहतर तरीके से घर चलाने के साथ संस्था के साथ मिलकर समाज के हजारों जरूरतमंद लोगों की मदद करने का प्रयास करती है। मैं पहले खुद ज्वैलरी डिजाइन का बिजनेस करती थीं, पर इस कार्य में आत्मसंतोष नहीं मिल रहा था। मैं अपना योगदान लोगों की सेवा में देना चाहती थी। इसी बीच छोटी बहन कैंसर से पीडि़त हो गई। इसी हादसे ने जीवन को एक नई प्रेरणा दी और अपनी सास के साथ मिलकर संस्था के माध्यम से कैंसर से पीडि़त लोगों की हर तरह से मदद करने की ठान ली। संस्था के माध्यम से टाटा हॉस्पिटल के साथ मिलकर अनेकों कैंसर रोगियों की मदद कर रही हूं। इसमें किसी भी कैंसर ग्रस्त हिस्से का इलाज, केमोथेरेपी, दवाइयां देने आदि कई काम किए जा रहे हैं।
स्मृति राका
गृहणियां भी अपने आप में मिसाल
समाज की विडम्बना है लोग अक्सर गृहणियों और बाहर जाकर काम करने वाली महिलाओं मेंं भेद करते हैं, जबकि गृहिणियां भी अपने आप में एक बहुत बड़ी मिसाल हैं। वे परिवार और रिश्तों को संस्कारों से जोडऩे की महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे घर पर रहकर भी कई तरह की अतिरिक्त गतिविधियां सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, मेहंदी के जरिए आर्थिक गतिविधियों में भी सक्रिय होती हैं। इसके बाद भी वे सामाजिक संस्थाओं से जुड़कर लोगों की सेवा में अपना योगदान दे रही हैं। इस पे्ररणा के साथ 2002 से आज तक वे संस्था के साथ जुड़कर लोगों की सेवा नि:स्वार्थ भाव से कर रही हंंै। बहुत स्थानों पर वे निजी तौर पर भी लोगों की मदद करने से कभी पीछे नहीं हटती।
देवबाला भंडारी
संस्था हर तरह से मदद के लिए आगे है
पिछले आठ सालों से संस्था से जुड़ी हूं। हमारी संस्था बेशक गृहिणियों का बनाया हुआ है। हम अपनी संस्था के माध्यम से समाज को अमूल्य योगदान देने की कोशिश कर रहे हैं। झोपड़पट्टियों में कपड़े बांटने से संस्था के कार्यो की शुरुआत हुई थी, धीरे-धीरे संस्था समाज के हर क्षेत्र में लोगों को सेवा दे रही है। चाहे वो शिक्षा का क्षेत्र हो या फिर नारी सशक्तीकरण हो। गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्च हो या किसी भी अस्पताल में इलाज की व्यवस्था हो या मशीनों की जरूरत हो, संस्था हर तरह से मदद के लिए आगे है। हम हमेशा जरूरतमंदो को ढूंढ़कर ही उनकी जरूरत के हिसाब से उनकी मदद करते हैं शायद इसी तरह हम समाज को अपनी ओर से कुछ वापस भी दे सकते हैं।
बिंदु जैन
लाखों रुपयों का अनुदान देते हैं
एक गृहिणी होने के नाते अपने बच्चों को संस्कार देना और परिवार की हर जिम्मेदारी निभाना हमारा कर्तव्य है। हमारी कुछ जिम्मेदारी हमारे समाज के प्रति भी हैं। यही सोच के साथ मैं पिछले आठ सालों से संस्था के साथ मिलकर काम कर रही हूं। हमारी संस्था का उद्देश्य केवल सेवा ही नहीं बल्कि पूरी इमानदारी के साथ नि:स्वार्थ भाव से लोगों की मदद करना है। आज लोग संस्था के कार्यों को देखते हुए लाखों रुपयों का अनुदान दे देते हैं। हम हमेशा अपने नैतिक मूल्यों को ध्यान में रख कर ही समाज सेवा करेंगे। यही हमारा मूल मंत्र है।
चंद्रा मुनोत
गृहिणी होने पर गर्व
आजकल की महत्वाकांक्षी महिलाएंं सिर्फ अपने कैरियर को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से ही काम काज करती है पर मुझे अपने गृहणी होने पर नाज है। हमारी संस्था से जुड़ी हर महिला अपने परिवार को साथ रखकर घर के आलावा समाज के लिए कुछ बेहतर करने का प्रयास करती हैं और हम जिस भी तरह से लोगों की जो मदद कर रहे हैं, उससे लोगों के चेहरों पर जो मुस्कान आती है वो हमारे लिए वरदान ही हैं। हम जब मरीजों की सेवा करते है, उनके इलाज में अपना योगदान देते हैं, ये ही हमारा आत्म संतोष इन्हीं चीजों से हमें भी खुशी मिलती है। यह अहसास भी होता हैं कि हम सही मायनों में समाज के प्रति अपना दायित्व निभा रहें हैं।
लीना जैन
मरीजों को देख विचलित हो गया
17 साल पहले जब प्रोग्रेसिव लेडीज वेलफेयर की नींव रखी गई, तभी से संस्था का हिस्सा बनना चाहती, परंतु पारिवारिक कारणों से मैं उस वक्त संस्था से नहीं जुड़ पाई , चूंकी ये संस्था अस्पतालों में जाकर मरीजों के इलाज का काम करती है। ऐसे ही एक प्रसंग में जब मैं टाटा कैंसर हॉस्पिटल में मरीजों को देखा तो मन विचलित हो गया और इन लोगों के लिए ही सेवा में जीवन का कुछ वक्त देना चाहिए। इसी उद्देश्य से 10 सालों से संस्था के साथ जुड़कर मैंने अपने परिवार की जिम्मेदारियों को निभाते हुए सेवा को भी अपने जीवन का हिस्सा बना लिया है। आज बहुत गर्व होता है कि वे भी समाज में नेक कार्यों में अपना योगदान दे रही हैं।
सुनीता खिंवसरा
महिलाओं को रोजगार दिया
आठ साल पहले सस्था से जुड़कर लोगों की सेवा करने का बीड़ा उठाया था, तबसे मैंने संस्था के साथ भी लोगों की सेवा की और स्वयं अपनी मेहनत से बेसहारा महिलाओं को एकत्रित करके उन्हें पापड़ और अचार बनाने का लघु उद्योग स्थापित करने में मदद की। महिलाओं को रोजगार मिला और साथ ही इस उद्योग से होने वाले लाभ से भी वो अन्य लोगों की सेवा कर रही हैं। इसी कड़ी में अपनी निजी पूंजी से सौ लोगों को घर बनाकर आसरा देने का कार्य भी पूरा किया। आगे भी मैं अपने सम्पूर्ण जीवन को लोगों की सेवा में ही लगाना चाहती हूं।
तेजू बाई कश्यप
Published on:
26 Jun 2019 03:34 pm
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