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अगले जनम मोहे इंसान ही कीजौ…ताकि कर सकें प्रभु की भक्ति-सेवा

आषाढ़ी एकादशी: महाराष्ट्र के कोने-कोने से हजारों दिंडी-पालखी पंढरपुर रवाना पंढरपुर में 10 जुलाई को जुटेंगे 20 लाख से ज्यादा श्रद्धालुजाप करते सैकड़ों किमी पैदल चलते हैं वारकरी

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अगले जनम मोहे इंसान ही कीजौ...ताकि कर सकें प्रभु की भक्ति-सेवा

अगले जनम मोहे इंसान ही कीजौ...ताकि कर सकें प्रभु की भक्ति-सेवा

मुंबई. बारिश की फुहारों के बीच पंढरपुर में आषाढ़ी एकादशी की तैयारियां शुरू हो गई हैं। महाराष्ट्र के कोने-कोने से हजारों दिंडी (समूह) और संत तुकाराम व संत ज्ञानेश्वर की पालकी रवाना हो चुकी है। हर क्षेत्र से आ रही दिंडी और पालकी के समूह आलंदी व मालशेज के आगे तय स्थान पर मिलते हैं। इसके बाद जनसमूह भगवान वि_ल-माता रुक्मिणी का दर्शन करने पंढरपुर का रुख करता है। प्रत्येक दिंडी में भजन-कीर्तन मंडली होती है। आषाढ़ी एकादशी या देवशयनी एकादशी रविवार को है। पताका-दिंडी और पालकी के साथ ज्यादातर श्रद्धालु नौ जुलाई की रात तक पहुंच जाएंगे। कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान सहित देश-विदेश के श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। एकादशी Ekadashi को पंढरपुर Pandharpur में 20 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं के जुटने की उम्मीद है। कोरोना के चलते दो साल यात्रा नहीं हो पाई थी। पाबंदियां हटने के बाद इस साल वारकरियों (तीर्थ यात्रियों) में खासा उत्साह है। आराध्य के दर्शन के लिए अधिकांश वारकरी पैदल ही मंदिर पहुंचते हैं। वारकरी यही प्रार्थना करते हैं कि भगवान अगले जनम में मनुष्य योनि में ही जन्म दीजिएगा ताकि हम आपकी भक्ति-सेवा कर सकें।

पर्यटन विभाग भी शामिल
श्रद्धालुओं और पर्यटकों की सुविधा के लिए महाराष्ट्र पर्यटन विभाग ने भी इंतजाम किए हैं। पर्यटन विभाग की दिंडी एक जुलाई को रवाना हुई। पर्यटन निदेशक मिलिंद बोरीकर ने बताया कि यह वर्षों पुरानी परंपरा है। छत्रपति संभाजी महाराज ने इस यात्रा को संरक्षण-प्रोत्साहन दिया था। धर्म क्षेत्र पंढरपुर और राज्य के अन्य पर्यटन स्थलों की जानकारी देने के लिए दिंडी के साथ डिजिटल वैन लगाई गई है।

कमर पर हाथ रख खड़े हैं भगवान
भीमा नदी के तट पर बने ऐतिहासिक मंदिर में भगवान वि_ल कमर पर हाथ रखे खड़े हैं। भगवान वि_ल को वि_ोबा, श्री पुण्डरीकनाथ और पांडुरंग के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में यादव वंश के शासकों ने कराया था। मुख्य परिसर में देवी रुक्मिणी, बलरामजी, सत्यभामा, जाम्बवती व श्रीराधा के भी मंदिर हैं। आषाढ़ी एकादशी पर भगवान वि_ल व देवी रुक्मिणी की पूजा एक साथ होती है।

क्यों कहते हैं पुण्डरीक
पौराणिक कथानुसार पुण्डरीक नामक एक हरि भक्त था। वह माता-पिता की सेवा में लगा रहता था। उसकी भक्ति से खुश होकर एक दिन भगवान वि_ोबा (श्रीकृष्ण) देवी रुक्मिणी के साथ पुण्डरीक के घर पहुंचे। भगवान ने पुण्डरीक को बुलाया, मगर माता-पिता की सेवा में तल्लीन भक्त का ध्यान भगवान की तरफ नहीं गया। पुण्डरीक ने दो ईंट देकर कहा कि मेरे पिता जी सो रहे हैं। आप थोड़ा खड़े होकर प्रतीक्षा कीजिए। पुण्डरीक के सेवा भाव से भगवान खुश हो गए। पुण्डरीक ने वरदान मांगा का आप इसी रूप में यहां श्रद्धालुओं को दर्शन देंगे। यह स्थान पुण्डरीकपुर व पंढरपुर के नाम से जाना जाता है।

बीमारों का उपचार
तीर्थ क्षेत्र पंढरपुर की ओर बढ़ रहे हजारों वारकरियों में 1000 से 1500 रोजाना बीमार पड़ रहे। महाराष्ट्र टूरिज्म Maharashtra Tourism की दिंडी के साथ मौजूद डॉक्टरों की टीम इनका उपचार करती है। डॉ. सुयोग कुमार भावरे ने पत्रिका को बताया कि ज्यादातर लोगों को थकान-वायरल बुखार की समस्या होती है। उन्होंने कहा कि रास्ते में भोजन की कमी नहीं है। भीड़ इतनी ज्यादा है कि शौचालय कम पड़ रहे।